Jaipur: बीजेपी (BJP) के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया (Satish Poonia) ने 18 से 44 वर्ष की आयु वर्ग में युवाओं के वैक्सीनेशन (Vaccination) पर राजस्थान सरकार (Rajasthan Government) के रवैये को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के रवैये के कारण राजस्थान के नौजवानों का जीवन खतरे में पड़ गया है.


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पूनिया ने कहा कि पहले तो राजस्थान सरकार ने कहा कि वह 18 से 44 आयु वर्ग के लोगों को मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध कराएगी. इसके लिए सरकार ने एक पब्लिक अकाउंट भी जारी कर दिया. पूनिया ने कहा कि युवाओं के वैक्सीनेशन के नाम पर विधायक कोष से पैसा भी ले लिया गया. सभी विधायकों के फंड से 3-3 करोड़ रुपए लेकर कुल 600 करोड़ रुपए का फंड भी जुटा लिया गया, लेकिन अभी भी वैक्सीनेशन को लेकर आए दिन गफलत की स्थिति बन रही है.


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वैक्सीनेशन के नाम पर भ्रमित कर रहे मुख्यमंत्री 
पूनिया ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) राज्य की जनता को वैक्सीनेशन के नाम पर भ्रमित कर रहे हैं. पूनिया ने कहा कि केन्द्र सरकार पर लगाये गए आरोप भी तथ्यहीन और झूठे हैं. उन्होंने कहा कि राज्य के लोगों को भ्रमित करने के लिये सरकार ने ग्लोबल टेंडर के लिए बड़ी-बड़ी बातें की, लेकिन उस टेंडर का क्या हुआ? जो वैक्सीन राज्य को केन्द्र सरकार से मिली उसकी आपने कद्र नहीं की और उसे कचरे के ढेर में फेंक दिया.
पूनिया ने कहा कि कचरा पात्र में वैक्सीन की वायल मिलना, यह हकीकत और आंख खोलने वाली सच्चाई है. इस तरीके की लापरवाही से यदि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मुकरते हैं तो वो जनता की अदालत में सबसे बड़े दोषी हैं.


कोरोना के कुप्रबंधन के आरोप
पूनिया ने कहा कि प्रदेश में ऑक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन के असंतुलित वितरण के कारण कोरोना का कुप्रबंधन हुआ और जिसके कारण राज्य में अफरा-तफरी का माहौल रहा. नौजवान अस्पताल के दरवाजे पर दम तोड़ते रहे और सरकार सियासत करती रही. उन्होंने कहा कि, राजस्थान की जनता कोरोना कुप्रबंधन को लेकर गहलोत सरकार से जवाब मांगेगी.


वैक्सीन कचरे में क्यों फेंकी
पूनिया ने कहा कि कचरे के ढेर में वैक्सीन को देखकर राजस्थान का नौजवान आपसे यही पूछता है कि हमारी वैक्सीन कचरे में क्यों फेंकी? उन्होंने कहा कि सरकार के पास सिर्फ कुतर्क और व्यर्थ के मुद्दे हैं, जबकि कोरोना प्रबंधन में वे पूरी तरह नाकाम रहे हैं. पूनिया ने चुनौती देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री में हिम्मत है तो स्वास्थ्य मंत्री पर मेहरबान होने के बजाय इस मामले की ऑडिट करवायें.