दक्षिण राजस्थान पर नया संग्राम, 10 जिलों को तोड़ने की क्यों हो रही मांग, पूरा गणित समझिए
Rajasthan Bhilistan : देश में नए भील राज्य की मांग काफी पुरानी है, लेकिन पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने सोमवार को राजस्थान विधानसभा में यह कहकर सबको सोचने पर मजबूर कर दिया कि दक्षिण राजस्थान में नक्सलवाद के साथ माओवाद के बीज पनप रहे हैं.
Rajasthan Bhilistan : दक्षिणी राजस्थान में भीलीस्तान की उठाई जा रही मांग से क्या नक्सलवाद की आहट हो रही है ! दक्षिण राजस्थान में उपजे हालातों को लेकर विधानसभा तक में मामला गूंज चुका है. विधानसभा में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने नक्सलवाद के पनप रहे बीजों को रोकने के लिए गंभीरता से विचार करने पर भी जोर दिया. अब सवाल उठ रहा है कि राजस्थान को खंडित करने वाली इन परिस्थितियों को बदलने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं ?
देश में नए भील राज्य की मांग काफी पुरानी है, लेकिन पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने सोमवार को राजस्थान विधानसभा में यह कहकर सबको सोचने पर मजबूर कर दिया कि दक्षिण राजस्थान में नक्सलवाद के साथ माओवाद के बीज पनप रहे हैं, जिन्हें रोका जाना चाहिए. यह समझना जरूरी होगा कि आखिर मेघवाल ने यह आशंका क्यों जाहिर की. मेघवाल ने कहा कि राजस्थान में उठ रही भीलीस्तान की मांग राजस्थान को खंडित करने वाली है. इस पर गंभीरता से सोचना होगा कि हमारा एक भूभाग क्यों अलग होना चाहता है.
- पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल का इशारा प्रदेश के आदिवासियों को लेकर है, जो सुविधाएं नहीं मिलने से वंचित और नाराज भी हैं
- प्रदेश के करीब दस जिले हैं जिनमें प्रदेश की 80 प्रतिशत आदिवासी आबादी रहती है, शेष बीस प्रतिशत दूसरे जिलों में रहती है
- आदिवासियों का भरण पोषण वन उपज पर निर्भर था, लेकिन विकास की रफ्तार में धीरे धीरे वन खत्म होते जा रहे हैं
- वहीं दूसरी ओर आदिवासियों की जनसंख्या भी बढ़ रही है, जिससे जीवन यापन व भरणपोषण की सुविधाओं का असंतुलन बढ़ रहा है.
- राज्य सरकार की आदिवासियों के लिए बनाई गई योजनाएं और कार्यक्रम पूरी तरह वहां के नौजवान रिसीव नहीं कर पा रहें, ऐसे में उनमें असंतोष पनप रहा है
- आदिवासियों की एक तिहाई या एक चौथाई जनसंख्या गुजरात में मजदूरी के लिए जा रहे हैं, प्रदेश में उन्हें स्थाई रोजगार नहीं मिल रहा है.
- सरकार ने आदिवासियों के लिए घोषणाएं बहुत की है, लेकिन उनका जीवन स्तर पर उंचा नहीं उठ पा रहा है.
- आजादी के 75 साल बाद भी आरक्षण होने के बावजूद आदिवासियों में एक दाे छोड़ दें तो ऊंचे प्रशासनिक ओहदे पर नहीं पहुंच पाया है.
- शिड्यूल कास्ट-ट्रायबल कमिशन का गठन हुआ, लेकिन कमिश्नर की रिपोर्ट विधानसभा में नहीं रखी गई
- आदिवासियों के पास भरण पोषण के साधन नहीं हैं तो भूखा क्या न करता की तर्ज पर वो समाज की मुख्यधारा से दूर हटकर अपराध की ओर मुड रहे हैं.
- आदिवासियों के पास न शिक्षा न चिकित्सा और न ही अन्य संसाधन, - दूसरी ओर बड़ी संख्या में प्रलोभन में आकर धर्मातंरण भी कर रहे हैं
- उदयपुर में रेलवे ट्रेक को डिटोनेटर से उडाने का प्रयास का मामला सामने आया था. इसमें जांच एजेंसियों ने दो आदिवासी पिता-पुत्र को पकड़ा था,
- बताया जा रहा है कि राजस्थान के आदिवासी कई दफा बिहार के नक्सलवादी क्षेत्र में बैठकों में शामिल होने जाते हैं.
- मेघवाल ने कहा कि सरकार को योजनाओं के माध्यम से आदिवासियों को संतुष्ट करना होगा ताकि वो मुख्यधारा से जुड़े रहें.
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