EWS Reservation : सुप्रीम कोर्ट ने दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानि की ईडब्ल्यूएस के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में 10 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखा है. 


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EWS कोटा पर सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों में से दो ने आरक्षण को संवैधानिक ठहराया. जिसके बाद आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण बना रहेगा. संविधान पीठ ने 2019 को संविधान में हुए 103 वें संशोधन को संवैधानिक और वैध करार दिया.


कोर्ट ने कहा कि EWS कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ. हालांकि इस दौरान जस्टिस भट ने आरक्षण को असंवैधानिक माना और उन्होंने बाकी जजों से असहमति जताई. जिसके बाद फिर संविधान पीठ ने बहुमत से संवैधानिक और वैध करार दिया. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बहुमत से ये फैसला दिया.


आपको बता दें कि मामले में सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था, कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है. शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे ‘‘पिछले दरवाजे से'' आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था.


पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला भी शामिल रहें. तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण का आधार हो ही नहीं सकता है और शीर्ष अदालत को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से सोचना चाहिए अगर वो इस आरक्षण को बनाए रखने का फैसला करता है.


दूसरी ओर, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने संशोधन का बचाव करते हुए कहा था कि इसके तहत प्रदान किया गया आरक्षण अलग है और सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया है. उन्होंने कहा था कि इसलिए, संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन बिल्कुल नहीं करता है. 


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