Jaipur: सरिस्का टाइगर फाउंडेशन के सचिव दिनेश दुरानी ने वन और पर्यावरण अपर मुख्य सचिव को पत्र लिखा है. पत्र में बताया कि बाघ अभयारण्य के अंदर के गांवों को बाहर निकालने की सख्त आवश्यकता है. सरिस्का जंगल के अंदर के 25 गांव ऐसे है जिन्हें जंगल से बाहर निकालने की जरुरत है क्योंकि जंगल के अंदर के गांवों द्वारा  यहां अशांति और साउंड पोलुशन से हो रहे शोरगुल से आंतरिक प्रजनन (इनब्रीडिंग) के चलते जानवरों की मृत्यु के मामले सामने आए है. इस संबंध में सरिस्का टाइगर फाउंडेशन ने राज्य सरकार,वन विभाग और संबंधित अधिकारियों को कई बार पत्र लिख चुके है. जंगल से गांवों के बाहर होने पर सरिस्का एक प्रमुख बाघ अभयारण्य में विकसित होगा. वन और पर्यावरण अपर मुख्य सचिव शिखर अग्रवाल ने शिकायत पर आश्वासन दिया की इस समस्या को दुरस्त करने पर कार्रवाई की जाएगी.सरिस्का टाइगर फाउंडेशन कुछ मुद्दों और चिंताओं को उजागर करते हुए जानकारी दी.


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बाघ का स्थानांतरण
बाघों को सरिस्का में स्थानांतरित करने के कई प्रयास हुए हैं जो कि अब तक कुल 9 बाघों को रणथंभौर से स्थानांतरित किया जा चुका है. बाघिन ST—3 और ST—5 (जो अब दोनों मर चुकी हैं) किसी भी शावक को जन्म नहीं दे सकीं. ST—7 और ST—8 नाम की बाघिन का भी वही हश्र हो सकता है. क्योंकि वे अब लगभग 10 साल की हैं और उन्होंने अभी तक कोई भी बच्चा नहीं दिया है.

फाउंडेशन संस्थपक दिनेश वर्मा दुरानी का मानना है कि संभावित कारणों में से एक साथ ही जंगल के अंदर के गांवों द्वारा अशांति के कारण उत्पन्न तनाव, इनब्रीडिंग हो सकता है. बाघों की अधिक संख्या वाले महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्य जिनमें विविधता लाने के लिए बाघों के आदान-प्रदान में भाग लेने के इच्छुक हैं. प्रजातियों का पूल जो सीधे तौर पर जीवित रहने और संतानों के उत्पादन की संभावनाओं में सुधार करेगा. इस पहल के तहत सरिस्का एक प्रमुख बाघ अभयारण्य के रूप में विकसित होगा.


गांव ऐसे हैं जिन्हें जंगल से बाहर निकालना जरूरी
बाघ अभयारण्य के अंदर से गांवों का स्थानांतरण अन्य बाघ अभयारण्यों की तुलना में सरिस्का में बाघों के दर्शन दुर्लभ हैं. इसका कारण बाघ अभयारण्य के अंदर के गांवों द्वारा बनाई गड़बड़ी है. एफडी और डीएफसी के नेतृत्व में सरिस्का वन टीम की बदौलत कुछ गांवों को पहले ही सरिस्का से बाहर स्थानांतरित कर दिया गया था.


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अभी भी, करीब 25 गांव ऐसे हैं जिन्हें जंगल से बाहर निकालना बाकी है. सरिस्का से संबंधित कई मुद्दों पर अपनी चिंताओं के संबंध में राज्य सरकार, वन विभाग और अन्य संबंधित अधिकारियों को कई पत्र लिख चुके हैं. जागरूकता पैदा करने की दिशा में कई प्रयास किए गए हैं जैसे कि 2019 में राजपूताना शेरेटन, जयपुर में आयोजित सरिस्का के पुनर्निर्माण पर सम्मेलन किए जिसमें पूर्व वन मंत्री सुखराम बिश्नोई भी शामिल रहे थे.


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