जयपुर: देश को एनीमिया मुक्त बनाने में मदद करेगा ये इंजेक्शन, एसएमएस मेडिकल कॉलेज में चल रहा ट्रायल
अब ओरल आयरन टेबलेट्स के स्थान पर इंजेक्शन (इंट्रावेनस) के माध्यम से आयरन देने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए एसएमएस मेडिकल कॉलेज में अमरीका की जैफरसन यूनिवर्सिटी और कर्नाटक के एक मेडिकल कॉलेज के साथ मिल कर ट्रायल किया जा रहा है.
Jaipur: एसएमएस मेडिकल कॉलेज में एक इंजेक्शन का ट्रायल चल रहा है, जो अगर सफल रहता है तो गर्भवती महिलाओं में हिमोग्लोबिन की वृद्धि करने के लिए मददगार साबित होगा. इस प्रक्रिया में गर्भवती महिलाओं को ऑरल आयरन टेबलेट्स के स्थान पर इंजेक्शन (इंट्रावेनस) के माध्यम से आयरन दिया जा रहा है. दावा किया जा रहा है कि इससे गर्भवती महिलाओं के हीमोग्लोबिन के स्तर में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि की जा सकती है.
अक्सर गर्भवती महिलाओं में खून की कमी के चलते प्रसुता और बच्चों में कई शारीरिक दिक्कतें सामने आती हैं, ऐसे में एनीमिया मुक्त भारत बनाने के लिए देशभर में अभियान चलाया जा रहा है. गर्भवती महिलाओं को रोजाना आयरन फोलिक एसिड की दवा दी जाती है, लेकिन अब ओरल आयरन टेबलेट्स के स्थान पर इंजेक्शन (इंट्रावेनस) के माध्यम से आयरन देने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए एसएमएस मेडिकल कॉलेज में अमरीका की जैफरसन यूनिवर्सिटी और कर्नाटक के एक मेडिकल कॉलेज के साथ मिल कर ट्रायल किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत जयपुर जिले के चार ब्लॉक और एक सीएचसी पर चिकित्सकों की टीमें स्क्रीनिंग कर रही हैं, जिनमें जयपुर जिले के सांगानेर, चाकसू, जमवारामगढ़, बस्सी ब्लॉक के अलावा आमेर की एक सीएचसी शामिल है. इस दौरान चिन्हित महिलाओं को तीन श्रेणियों में बांटकर एक को गोली व दो को अलग-अलग इंजेक्शन की डोज लगाई जा रही है.
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प्रोजेक्ट के तहत अब तक 7 हजार 240 महिलाओं को चिन्हित किया गया है, जिसमें से 813 महिलाओं में खून की कमी पाई गई है, जिनमें 268 महिलाओं को ओरल रूटिन दवा आयरन फोलिक एसिड दी जा रही है, जबकी 545 महिलाओं को इंजेक्टेबल श्रेणी में रखते हुए दो अलग-अलग दवाएं लगाई जा रही है. एसएमएस मेडिकल कॉलेज में अभी कुल 2100 महिलाओं पर यह प्रोजेक्ट किया जाना है.
दावा किया जा रहा है कि इससे गर्भवती महिलाओं के हीमोग्लोबिन के स्तर में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि की जा सकती है. ट्रायल के दौरान महिलाओं की मॉनिटरिंग की जा रही हैं, माना जा रहा है कि डिलीवरी के वक्त महिला के हिमोग्लोबिन और बच्चे के वजन के हिसाब से ही तय होगा कि इंजेक्टेबल दवा कितनी कारगर साबित हो रही है. अगर सब कुछ सही रहा तो भविष्य में ओरल की जगह इंजेक्शन के माध्यम से आयरन दिया जाएगा.
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