Rajasthan History: कहा जाता है कि, 'आज की राजनीति, कल का इतिहास है, लेकिन क्या कल के इतिहास पर आज राजनीति हो रही है? हो सकता है सवाल कुछ हैरान करने वाला हो लेकिन यह सवाल देश के इतिहास के तथ्यों को दर्शाने के तरीके से उठ रहा है.

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

2 अक्टूबर को गांधी जयन्ती पर राजधानी में गांधी वाटिका आमजन के लिए खोल दी गई. इस वाटिका में महात्मा गांधी के जीवन दर्शन और इतिहास की घटनाओं को दिखाया है.  यहां 1857 के सेक्शन को दो जगह दिखाया है. एक जगह इसे भारतीय स्वतन्त्रता का पहला युद्ध बताया है, लेकिन दूसरी जगह बगावत. हालांकि बेसमेन्ट में बना यह सेक्शन विस्तार है. लेकिन वाटिका में जाने के लिए जैसे ही आप लिफ्ट में सवार होते हैं उससे पहले ही 1857 के संग्राम को बगावत बताता विषय परिचय आपके कदमों को ठिठकने पर मजबूर कर सकता है.



हालांकि पर्यटन विभाग के सचिव रवि जैन कहते हैं कि स्टूडेन्ट्स म्यूज़िय देखेंगे तो यहां के मॉडल्स और दूसरी जानकारी से काफी कुछ समझ सकेंगे. गांधी वाटिका में स्टूडेन्ट्स के साथ सैलानियों और आमजन की आवाजाही शुरू भी हो गई है, लेकिन यहां पहुंचे एक दर्शक से 1857 के संग्राम को डिस्प्ले किये जाने के तरीके पर बात की तो उन्होंने इसे बगावत लिखे जाने पर ऐतराज जताया.



जब आमजन की इस भावना और 1857 के संग्राम को डिस्प्ले करने के तरीके के बारे में  म्यूज़ियम निर्माण कराने वाली ऐजेन्सी .... यानि जेडीए के अधिकारियों बात कीउन्होंने इस काम में सलाहकार की भूमिका में रही कॉन्ट्रेक्टर कम्पनी के शरद बड़वे को आगे कर दिया. शरद बड़वे कहते हैं कि इस म्यूज़ियम को पूरी स्टडी और ऐतिहासिक तथ्यों को ध्यान में रखकर बनाया गया है. जब 1857 की क्रान्ति के बारे में बगावत शब्द के इस्तेमाल पर पूछा गया तो बड़वे कहते हैं कि यह अंग्रेजों का नज़रिया था.



1857 को स्वतन्त्रता संग्राम का पहली लड़ाई कहा जाए या बगावत? इस सवाल के बीच ही म्यूज़ियम देखने कांग्रेस के पुराने नेता अश्क अली टाक भी पहुंच गए. चलने में तकलीफ़ होने के बावजूद गांधी जीवन-दर्शन को देखने म्यूज़ियम पहुंचे टाक ने भले ही व्हील चेयर पर म्यूज़िम देखा. जब उनसे 1857 की लड़ाई पर सवाल किया तो वे खड़े हो गए. उन्होंने कहा,'' साहब इस लड़ाई ने तो देश के लोगों के मन में आज़ादी का बीजारोपण किया था. आप इसे केवल बगावत बताकर कैसे बैठ सकते हैं? यही तो वह लड़ाई थी. जिसमें भारतीय सैनिकों के साथ आमजन भी जुड़े थे. इन सब बातों के बाद लगातार चल रहा सवालों का द्वन्द्व अभी तक जीवित दिखता है. 



सवाल अभी भी यही है कि 


1857 का संग्राम आजादी की पहली लड़ाई है या बगावत? 


अगर 1857 का संग्राम बगावत थी तो वो किसके खिलाफ़?



अगर बगावत अंग्रेजों के खिलाफ़ थी तो क्या इसे हिन्दुस्तान में भी बगावत ही माना जाएगा?


अगर यह बगावत थी  तो फिर इसमें आम जनता की भागीदारी को क्या माना जाए?


क्या इन सब पहलुओं को समझने के बाद सरकार जागेगी?


ये भी पढ़िए- Rajasthan Politics: 'देवली के संग्राम' में किस दल का कौन होगा सेनापति,कहीं BJP की गुटबाजी ही ना कर दे खुद के 'नांव' में छेद!