जयपुर: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के खिलाफ अपने रुख का बचाव करते हुए रविवार (28 जनवरी) को कहा कि इस पहल से उन नेताओं को कोई फायदा नहीं होगा जो हिंदी नहीं बोल सकते. संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने को लेकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और थरूर के बीच इस महीने की शुरुआत में लोकसभा में बहस हुई थी. सुषमा ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए सरकार सभी खर्च उठाने के लिए तैयार है जिस पर थरूर ने इसके उद्देश्य को लेकर सवाल उठाए थे.


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हिंदी केवल भारत की आधिकारिक भाषा है
थरूर ने कहा था कि भारत को इस तरह का कोई प्रयास नहीं करना चाहिए क्योंकि हिंदी केवल भारत की आधिकारिक भाषा है न कि राष्ट्रीय भाषा. जयपुर साहित्य उत्सव में उन्होंने कहा, ‘‘मैं लोकसभा में सुषमा स्वराज को जवाब दे रहा था कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए जरूरत पड़ने पर भारत 400 करोड़ रुपये तक खर्च करने के लिए तैयार है... मैं स्पष्ट करना चाह रहा था कि इस पहल से भारतीय नेताओं को दिक्कत होगी.’’ 


थरूर ने दिया चिदंबरम या प्रणब मुखर्जी का उदाहरण
थरूर ने अपने तर्क के समर्थन में क्षेत्रीय नेताओं पी. चिदंबरम या प्रणब मुखर्जी का उदाहरण दिया जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं है. संयुक्त राष्ट्र में जनसंचार एवं जनसूचना अवर महासचिव रहे थरूर ने कहा कि हिंदी ‘‘भारत की राष्ट्रीय भाषा नहीं है. हालांकि बॉलीवुड की लोकप्रियता के कारण दक्षिण में भी कुछ हिंदी समझी जा रही है जो अच्छी बात है.’’


शशि थरूर ने कहा, 'संविधान और दीनदलाय उपाध्याय की तारीफ एक साथ नहीं चल सकती


कांग्रेस सांसद और लेखक शशि थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि मोदी देश के संविधान को ‘‘पवित्र’’ तो कहते हैं, लेकिन वह हिंदुत्व के पुरोधा पंडित दीन दयाल उपाध्याय को ‘‘नायक’’ के तौर पर सराहते भी हैं. उन्होंने कहा कि दोनों चीजें साथ-साथ नहीं चल सकतीं. जयपुर साहित्योत्सव में 61 साल के थरूर ने कहा कि हिंदुओं को उठ खड़े होने और यह समझने की सख्त जरूरत है कि ‘‘उनके नाम पर’’ क्या किया जा रहा है और इसके खिलाफ बोलने की जरूरत है.


'सही को सही और गलत को गलत कहने की जरूरत'
पूर्व केंद्रीय मंत्री थरूर ने कहा, ‘‘हमें सही को सही और गलत को गलत कहने की जरूरत है. हम ऐसे देश में रह रहे हैं जहां एक तरफ तो प्रधानमंत्री कहते हैं कि संविधान पवित्र ग्रंथ है और दूसरी तरफ वह एक नायक के तौर पर प्रशंसा करते हैं और अपने मंत्रालयों को निर्देश देते हैं कि वे उस दीन दयाल उपाध्याय के कार्यों, लेखन एवं शिक्षण को पढें और पढ़ाएं जो साफ तौर पर संविधान को खारिज करते हैं और जो कहते हैं कि संविधान मूल रूप से त्रुटिपूर्ण है. दोनों विचार विरोधाभासी हैं.’’


(इनपुट एजेंसी से भी)