जैसलमेर का ऐसा शिव मंदिर जिसका आज भी शिव भक्तों को है इंतजार, महाशिवरात्रि में भी वीरान रहता है शिवधाम
Mahashivratri 2023: मोहम्मद गौरी जब भारत आया तब वो इसी रास्ते से आया था और उसने इस मंदिर की मूर्ति को खंडित कर दिया था. हिन्दू मान्यता के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा नहीं होती है इसलिए आज भी यहां बिराजे शिव भगवान अपने भक्तों का इंतजार कर रहे हैं.
Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि पर देशभर के साथ ही जैसलमेर में भी अनेकों शिव मंदिरों में पूजा अर्चना हुई. विधिवत मंदिरों में रुद्राभिषेक भी हुए लेकिन जैसलमेर से 15 किलोमीटर दूर जैसलमेर रियासत की पूर्व राजधानी लोद्रवा गांव में एक ऐसा प्राचीन शिव मंदिर है, जहां सदियों से शिव की पूजा अर्चना नहीं होती. कहते हैं मोहम्मद गौरी जब भारत आया तब वो इसी रास्ते से आया था और उसने इस मंदिर की मूर्ति को खंडित कर दिया था. हिन्दू मान्यता के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा नहीं होती है इसलिए आज भी यहां बिराजे शिव भगवान अपने भक्तों का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि गांव के लोग मंदिर में जाते हैं तथा शिवजी के आगे दीया धूप करते हैं, मगर विधिवत पूजा अर्चना आज भी यहां नहीं होती.
मोहम्मद गौरी ने तोड़ा था मंदिर
जैसलमेर में भाटी वंश का राज रहा है. मगर भाटी वंश से पहले जैसलमेर में परमार वंश का शासन था. कहते हैं परमार वंश शिव के उपासक थे. जैसलमेर में कई जगहों पर उनके द्वारा शिव मंदिर बनवाए गए लेकिन समय- समय पर बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा मंदिरों को तोड़ा गया. मोहम्मद गौरी जब भी भारत आता तब वो रास्ते में आने वाले सभी मंदिरों को तोड़ता जाता था और उसके द्वारा ही ये शिव मंदिर भी तोड़ा गया.
ग्रामीण अजीतसिंह लोद्रवा बताते हैं कि जैसलमेर में जब महारावल जैसल का शासन था उस समय साल 1178 में मोहम्मद गौरी ने आक्रमण किया था और उस दौरान कई मंदिरों को तोड़ा गया था. इसमें लौद्रवा का ये शिव मंदिर भी शामिल था और उसके बाद लौद्रवा सूना हो गया.
विशालकाय है चतुर्मुखी शिव की मूर्ति
लोद्रवा में मूमल की मेडी जहां से भारत-पाक के मूमल -महिंद्रा की प्रेम गाथा जुड़ी हुई है के पास ही पुराना शिव का मंदिर है. इस मंदिर में चतुर्मुखी शिवलिंग है जिस पर भगवान शिव का चेहरा उकेरा हुआ है. प्रतिमा खंडित होने से यहां पूजा पाठ नहीं किए जाते हैं, लेकिन शिवरात्रि के दिन गांव के लोग यहां आकर भजन कीर्तन करते है और मूर्ति के आगे दीपक जलाते हैं.