Gazi Fakir Jaisalmer : पश्चिमी राजस्थान की राजनीति में अपना गहरा प्रभाव रखने वाले हाजी गाजी फकीर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चेहरा थे . यह कहे कि जैसलमेर में कांग्रेस का मतलब गाजी फकीर या उन का परिवार है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. गाज़ी फकीर परिवार के सियासी इतिहास की बात करे तो फकीर परिवार 1975 में राजनीति में आया था. गाज़ी फकीर का राजनीति में लाने वाले जैसलमेर के तत्कालीन विधायक भोपाल सिंह थे. गाज़ी फकीर ने जैसलमेर में सियासी वर्चस्व स्थापित करने के लिए पहला दांव 1985 में खेला. विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर भोपाल सिंह मैदान में थे. बीजेपी की ओर से जुगत सिंह चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन फकीर परिवार ने निर्दलीय मुल्तानाराम बारूपाल को मैदान में उतारकर मुस्लिम-मेघवाल गठबंधन का फॉर्मूला सेट किया. मुस्लिम-मेघवाल गठबंधन के इसी फॉर्मूले के सहारे फकीर परिवार पिछले 35 सालों से जैसलमेर की राजनीति उनके इर्दगिर्द घूमती है. जिसके चलते उन्हें सरहद का सुल्तान भी कहा जाता है.


गाजी फकीर के बिना नही हिलता सरहद की राजनीति का कोई पत्ता


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जैसलमेर में कांग्रेस के भीतर फकीर परिवार से 1985 के बाद किसी ने सीधी टक्कर नहीं ली. जिसने भी टक्कर लेने की जुर्रत कि तो बाद में उन्हें मजबूर होकर कांग्रेस छोड़नी पड़ी. रणवीर गोदारा से लेकर जितेंद्र सिंह जैसे तमाम उदाहरण मौजूद है. जो जितेंद्र सिंह 1993 में फकीर परिवार की मर्जी के बिना कांग्रेस का टिकट लाए थे. उन्हें भी बाद में वापिस बीजेपी में जाना पड़ा और 1998 में बीजेपी की टिकट पर जैसलमेर विधानसभा से मैदान में उतरना पड़ा और हार का स्वाद भी चखना पड़ा.



राज परिवार ने दिया हमेशा गाजी फकीर का साथ


फकीरपरिवार की यह खासियत रही कि उन्होंने राज परिवार का हमेशा साथ दिया. राज परिवार के सदस्यों के साथ फकीर ने कभी दगा नहीं किया. हुकमसिंह, रघुनाथसिंह, चंद्रवीरसिंह से लेकर रेणुका भाटी का फकीर परिवार ने साथ दिया है. केवल जितेन्द्रसिंह अकेले थे वे कांग्रेस से टिकट लेकर आए थे और फकीर परिवार ने अपना सदस्य निर्दलीय खड़ा कर दिया जिससे दोनों की हार हो गई.


सामाजिक सौहार्द में रखते थे विश्वास


गाजी फकीर सिंधी मुसलमानों के धर्मगुरु थे परंतु उन्हें 36 कौम के लोगों से प्यार था. सामाजिक सौहार्द की भावना रखने वाले गाजी फकीर को 36 का प्यार और साथ हमेशा मिलता था. इसी के चलते पिछले विधानसभा चुनाव में महंत प्रतापपूरी के सामने उनके बेटे साले मोहम्मद को 36 कौम के लोगों ने वोट देकर जीता है जिसके बाद वह राजस्थान के काबीना मंत्री बने.


गाजी फकीर 50 सालों से जैसलमेर की राजनीति में किंग मेकर की भूमिका में थे. वे खुद चुनाव नहीं लड़ते थे पर चुनाव जिताने में उनकी ही चलती थी. 1995 में एक बार वे जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़े थे. उसके अलावा उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा. हालांकि 1973 में वे बडोड़ा गांव के सरपंच बने थे मगर चुनाव नहीं लड़ना पड़ा, निर्विरोध निर्वाचित हुए थे.


इसके बाद राजनीति पूरी तरह से सक्रिय हो गए. हर चुनाव में नए समीकरणों के साथ फकीर का कद बढ़ता ही गया. समाज के लोगों के बीच गहरी पैठ व मजबूत पकड़ के कारण कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में उभरकर सामने आए. कांग्रेस की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले फकीर पार्टी से टिकट दिलाने से लेकर चुनाव जिताने में लिंग मेकर की भूमिका में रहे. कद इतना बड़ा था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता भी जैसलमेर में उनसे राय-: -शुमारी किए बिना कोई निर्णय नहीं लेते थे. उनके फतवा जारी करने हजारों वोटर अपना रूख बदल देते थे.



1970 में राजनीति में आए, निर्विरोध सरपंच बने


राजनीती जानकर बताते है कि 1970 के करीब गाजी फकीर राजनीति में सक्रिय हुए थे. उससे पहले तक जैसलमेर का राजपरिवार ही चुनावों में सक्रिय था. 70 के दशक गाजी फकीर ने बडोड़ा गांव के भोपालसिंह का साथ दिया और उन्हें विधायक बनाने में अहम भूमिका निभाई. इसके बाद भोपालसिंह की मदद से ही वे बडोड़ा गांव के निर्विरोध सरपंच बने. इस दौरान धीरे धीरे फकीर को अपनी ताकत का अहसास हुआ और बाद में वे हर चुनाव में सक्रिय रहकर किसी भी एक उम्मीदवार पर हाथ रखते और उसकी जीत होती .


वर्ष 1985 में मुस्लिम और मेघवाल गठबंधन बनाया


1985 में गाजी फकीर ने सभी पार्टियों से किनारा किया और जैसलमेर में मुस्लिम और मेघवाल समाज का नया गठबंधन बनाया. इस दौरान मुल्तानाराम बारूपाल निर्दलीय खड़े हुए और इसी गठबंधन की ताकत पर वे चुनाव जीत गए. इससे फकीर का कद बढ़ गया. तब से लेकर 2020 तक यह गठबंधन चला और कांग्रेस के साथ रहा. फकीर का चुनाव में फरमान जारी होता था उसी तरह से इनके भाई फतेह मोहम्मद भी राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहते थे. गाजी फकीर ने 1993 में फतेह मोहम्मद को जैसलमेर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़वाया लेकिन हार गए.


15 साल एक ही परिवार से जिला प्रमुख व प्रधान बने


गाजी फकीर परिवार ने 15 साल तक जिला परिषद पर राज किया और जिला प्रमुख का पद इनके परिवार के पास ही रहा. वर्ष 2000 में भाई फतेह मोहम्मद को जिला प्रमुख और बेटे सालेह मोहम्मद को पंचायत समिति जैसलमेर का प्रधान बनाया. 2005 में सालेह मोहम्मद जिला प्रमुख बने. 2010 में दूसरे बेटे अब्दुला फकीर जिला प्रमुख बने और 2015 में तीसरे बेटे अमरदीन फकीर प्रधान बने .


वर्ष 2008 में पोकरण विधानसभा से अपने परिवार से विधायक बनाने का सपना पूरा हुआ. सालेह मोहम्मद विधायक बने. 2013 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और 2018 में एक बार फिर विधायक बनने के साथ ही केबिनेट मंत्री बन गए .


हर चुनाव में इनका फतवा जारी होता था


उनकी मुस्लिम वोटरों पर इतनी पकड़ थी कि एक ही रात में हजारों वोट इधर से उधर हो जाते थे. इनकी जमात चुनाव से एक दिन पहले तक इनके इशारे का इंतजार करती. इन्होंने पहले तो किसी पार्टी का साथ नहीं दिया लेकिन 1993 में भाई फतेह मोहम्मद के हारने के बाद वे पूरी तरह से कांग्रेस के साथ जुड़ गए और जैसलमेर में कांग्रेस की जड़े जमाने का काम किया. पहले जब दूरसंचार के साधन नहीं थे तब इनके नाम का मेसेज गांवों में जाती थी, इनके नुमाइंदे उसे ले जाते थे और जिसके पक्ष में होती थी उसे वोट देने के लिए कहा जाता था.



परिवार का राजनीती कद


बड़ा बैटा शाले मोहम्मद, पोकरण विधायक और केबिनेट मंत्री


दूसरे नंबर का बेटा अब्दुला फकीर, जिला परिषद सदस्य


तीसरे नंबर बेटा अमरदीन फकीर, इनकी पत्नी धपी जिला परिषद सदस्य
चौथे नंबर बेटा पिराने खां, पंचायत समिति सदस्य


पांचवे नंबर बेटा इलियास फकीर, पंचायत समिति सदस्य


छठा बेटा अमीन खां, इनकी पत्नी सलीमत पंस सदस्य भांजा अमीन खां, बाल कल्याण समित अध्यक्ष धर्म, समाज व सियासत में वर्चस्व


मुस्लिम समाज के धर्म गुरू गाजी फकीर का जन्म 1933 में उनके गांव भागु के गांव में हुआ का व 27अप्रेल 2021 मंगलवार को तड़के उनका निधन हो गया था. उन्होंने जोधपुर के निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली. वे 88 साल के थे और कई महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे. गाजी फ़क़ीर के शव को उनके पैतृक गांव झाबरा में उन्हें सुपुर्द ए खाक किया गया. इस दौरान बड़ी संख्या में लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे.


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