Ketri: पेड़ हमारे जीवन के लिए क्यों जरूरी है. इस बात को  झुंझुनूं के खेतड़ी कस्बे के 62 साल के गोपाल कृष्ण शर्मा ने उस समय समझ ली थी, जब वह महज नौंवीं कक्षा में पढ़ते थे.  करीब पांच दशक पहले प्रदूषण भी इतना नहीं था, तो पेड़ों की महत्वता बताने का प्रचलन भी नहीं था. फिर भी खेतड़ी के गोपाल कृष्ण शर्मा ने जब अपने पिता को पेड़ के लिए भटकते हुए, देखा तो घर में ही पौधे तैयार कर बांटने लग गए. जिसके कारण उन्हें झुंझुनूं का ट्री मैन भी कहा जाता है.


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अपने इस शौक के बार में गोपाल कृष्ण शर्मा ने बताया कि, जब वे कक्षा नौ में पढाते थे. तो उनके पिता शिवकुमार शर्मा को मुक्ति धाम में लगाने के लिए पीपल और बरगद के पेड़ की आवश्यकता पड़ी. सभी जगह उनके पिता घूम आए. लेकिन कहीं पर नहीं मिले. तब उनके पिता  ने  बिलवा गांव में एक परिचित के यहां बरगद पेड़ मिला. उन्होंने अपने बेटे गोपालकृष्ण शर्मा को अपनी पीड़ा बताई. गोपालकृष्ण शर्मा पैदल ही तीन किलोमीटर जाकर अपने पिता के लिए बरगद  के पेड़ लगाए. जिसके बाद वह मुक्ति धाम में लगाया गया.


लेकिन उस दिन के बाद उन्होंने संकल्प लिया कि पीपल और बरगद के पेड़ों के लिए किसी को परेशान नहीं होने देंगे. उन्हें जहां कहीं भी पीपल और बरगद की पौध दिखती है. वहां से उसे अपने घर ले आते है.और पौध से पेड़ बनाकर बांटने शुरू कर दिए.  धीरे- धीरे बड़े हुए तो उन्हें दोनों पेड़ों की महत्वता पता लगी. कि पीपल और बरगद  के पेड़ पर्यावरण को सर्वाधिक ऑक्सीजन देते है. इस गुणवत्ता को जानने के बाद अब हर साल  वह 1 हजार के करीब पीपल और बरगद के पौधे तैयार कर गोपाल कृष्ण शर्मा फ्री बांटते है. यहां तक की वन विभाग भी इनसे पीपल और बरगद के पौधे लेकर बांटता है.


बच्चों की तरह पालते है पौधे
गोपाल कृष्ण शर्मा ने बताया कि पहले तो वे जहां पर भी पुरानी दीवारों में, नालियों के पास या फिर अन्य जगहों पर पीपल और बरगद की पौध दिखती. उसे लाकर घर पर उसका पालन पोषण करते और उसे बड़ा करते. फिर बांट देते. लेकिन अब वे दोनों ही पेड़ों के बीज लाकर उसे अपने घर में ही लगाते है और जब ये पौधे तीन से चार फुट तक हो जाते है. उनकी परवरिश बच्चों की तरह करते है. हर दिन सुबह दो घंटे एक—एक पौधे को संभालते है.


हर पौधे को संभालना पड़ता है 
गोपालकृष्ण शर्मा ने बताया कि पीपल और बरगद के बीज डालने के बाद हर एक पौधे को हर दिन संभालना पड़ता है. क्योंकि इन पौधों में कीड़े लगने की संभावना भी है. साथ ही यदि पौधा, पास के पौधों से दब जाता है तो भी वह खराब हो सकता है. इसलिए हर दिन वे सुबह करीब दो घंटे तक इन्हें पानी देते है. वहीं एक—एक पौधे को संभालते है. इस काम में उनके परिवार के सदस्य भी साथ देते है.


मिट्टी लाते है जसरापुर से
गोपालकृष्ण शर्मा ने बताया कि पौधों के लिए पहले घर में ही मटकों में पौध तैयार के लिए चिकनी मिट्टी, बालू मिट्टी और देशी खाद का मिश्रण तैयार करते है. जिसमें वे बीज डालते है. चिकनी मिट्टी हर साल वे पास के जसरापुर से लाते है. क्योंकि वहां की चिकनी मिट्टी में पीपल और बरगद के पौधे अच्छे से लगते है.


दादी ने डांट लगाई, लेकिन रूके नहीं
गोपालकृष्ण शर्मा ने बताया कि जब उन्होंने नौंवी कक्षा में घर में पीपल और बरगद के पौधे लगाने शुरू किए तो उनकी दादी ने भी डांट लगा दी. क्योंकि घर में पीपल और बरगद के पेड़ों को शुभ नहीं माना जाता. लेकिन वे रूके नहीं. उन्होंने अपने घर के पास नोहरे की दीवार के सहारे अपनी नर्सरी शुरू कर दी और पौधे लगाने शुरू कर दिए.


टैंकर से मंगवाते है पानी
गोपालकृष्ण शर्मा ने बताया कि खेतड़ी में पानी की किल्लत बनी रहती है. ऐसे में घरों में पीने के लिए भी गर्मियों में पानी नहीं आता. सर्दियों में तो इतनी मारामारी नहीं रहती. लेकिन फिर भी वे गर्मियों में इन पौधों को पानी देने के लिए टैंकरों से पानी मंगवाते है. लेकिन पानी के अभाव में इन पौधों को खत्म नहीं होने देते.


बीकानेर से भी आते है पौधे लेने
गोपालकृष्ण शर्मा ने बताया कि वन विभाग भी पीपल और बरगद के पौधे तैयार नहीं करता है. इसलिए वन विभाग को पिछले साल उन्होंने 200 पीपल और बरगद के पौधे उपलब्ध करवाए गए थे. वहीं खेतड़ी के गांव ढाणियों में भी लोग खूब पौधे लेकर जाते है. खासकर मुक्ति धाम और सार्वजनिक जगहों पर लगाने के लिए लोग पौधे लेने आते है. जिन्हें वे निशुल्क देते है. मांजरी धाम में हर साल 10 पौधे लगाते है. वहीं बीकानेर और नोखा से भी लोग उनके पास पौधे लेने आए है.


पेशे से पत्रकार, एचसीएल से रिटायर कर्मचारी है शर्मा
वैसे तो गोपालकृष्ण शर्मा 1985 से पत्रकारिता से जुड़े हुए है. लेकिन 1997 में उन्हें एचसीएल में हेल्पर के पद पर नौकरी मिल गई. इसके बाद उन्होंने 2020 तक एचसीएल में नौकरी भी की. अब फिर से पत्रकारिता के साथ-साथ ट्री मैन का रोल भी पूर्व की तरह निभा रहे है.


Reporter: Sandeep Kedia


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