Jhunjhunu: यूपी में स्थित वृंदावन को सभी जानते है. आइए आज आपको दिखाते है देश के दूसरे वृंदावन को. जी, हां राजस्थान के झुंझुनूं जिले में वृंदावन धाम स्थित है.  इस धाम को किसी और ने नहीं, बल्कि मथुरा के प्रसिद्ध संत हरिदास जी महाराज के शिष्य पुरूषोत्तमदास जी ने करीब 500 साल पहले बसाया था. आज यहां पर न केवल जन्माष्टमी पर बल्कि समय-समय पर होने वाले कार्यक्रमों में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं. इस बार जन्माष्टमी पर भी यहां तीन दिवसीय कार्यक्रम जारी है. 


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राजस्थान के झुंझुनूं जिले का वृंदावन धाम की अलग ही महत्वता है और जन्माष्टमी के दिन यहां पर भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते है. इस वृंदावन धाम को काटली नदी के मुहाने पर इस्लामपुर से नौ किलोमीटर दूर बाबा पुरूषोत्तमदास जी ने बसाया था. मान्यता है कि करीब 500 साल पहले मथुरा के हरिदास जी महाराज ने अपने शिष्य बाबा पुरूषोत्तमदास को आदेश दिया था कि वह मथुरा से निकलकर कहीं दूसरी जगह जाए और वहां पर वृंदावन धाम बसाए, जिस पर बाबा पुरूषोत्तमदास वृंदावन धाम को बसाने के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने निकल गए. उनकी तलाश झुंझुनूं के भड़ौंदा गांव के पास पूरी हुई, जहां पर उन्होंने न केवल पांच शाखाओं वाले पेड़ के नीचे तपस्या की बल्कि उसे वृंदावन धाम के रूप में बसाया भी. 


यहां के लोग बताते है कि बाबा पुरूषोत्तमदास जब तपस्या करते थे. यहां पर काफी गायें विचरण के लिए आती थी. बाबा पुरूषोत्तमदास जिस भी गाय के नीचे अपना कमंडल रख देते थे. उसी गाय के थनों से खुद ब खुद दूध आने लग जाता था और इसी दूध के सहारे बाबा पुरूषोत्तमदास अपना जीवन यापन करते थे. इस चमत्कार को न केवल उस वक्त ग्वालों ने, बल्कि कुछ ग्रामीणों ने भी देखा तब से यह स्थान एक पवित्र स्थान बन गया और वृंदावन धाम के रूप में पहचाना जाने लगा. स्थानीय लोगों, पुजारी एवं श्रद्धालुओं के अनुसार, बाबा पुरुषोत्तम दास का जन्म चूरू जिले के सिधमुख में 16 मार्च 1525 को हुआ था. वे बचपन से ही हरि भक्ति में लीन थे. ऐसे में घरवालों ने कम उम्र में ही इनका विवाह कर दिया, लेकिन बाबा का मन सांसारिक मोह माया से दूर था इसलिए वे सबकुछ छोड़कर मथुरा चले गए. वहां हरिदास जी महाराज के शिष्य बन गए. 


उस दौरान यहां पर शेर जैसे खूंखार जानवर भी विचरण करते थे. चमत्कारों की गाथा लोगों तक पहुंचने लगी. 15 से 20 किलोमीटर के क्षेत्र में निवास करने वाले सेठ साहूकार बाबा के मुरीद होते गए. सैकड़ो सालों बाद भी उनकी पीढ़ियां बाबा के जन्मोत्सव पर फाल्गुन में यहां आना नहीं भूलती. बाबा पुरुषोत्तम दास ने 4 नवंबर 1650 को जीवित समाधि लेकर देवलोक को गमन किया. यहां का पंच पेड़ और बाबा बिहारी जी का मंदिर आज धार्मिक रूप से तो अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं. साथ ही अब एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होते जा रहे हैं. फाल्गुन मास में एकादशी के एक दिन पूर्व आसपास के कई गांवों और कस्बों से पदयात्राए चलकर वृंदावन पहुंचती हैं. एकादशी के दिन विश्व शांति के लिए यहां हवन एवं मंगल पाठ किया जाता है. प्रतिदिन यहां पर हवन चलता रहता है. एकादशी को बाबा का जन्मोत्सव मनाया जाता है. फाल्गुन की बारस को यहां फागोत्सव आनंदोत्सव के रूप में मनाया जाता है. 


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यहां पर जन्माष्टमी के उपलक्ष में हर साल मेला भरता है. तीन दिन विशेष धार्मिक कार्यक्रमों की धूम रहती है. इनमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं. देश के कोने-कोने से भक्त यहां आते हैं. इस बार भी श्री बिहारीजी मित्र मंडल द्वारा वृंदावन बिहारीजी मंदिर में तीन दिवसीय धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे हैं. कृष्ण जन्मोत्सव पर सालाना होने वाले कार्यक्रम में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंच गए हैं. मंडल के सौरभ-राहुल सुलतानिया ने बताया कि तीन दिवसीय कार्यक्रमों का आगाज 18 अगस्त को हो गया. पहले दिन सुबह सात बजे वृंदावन पंचकोसी परिक्रमा हुई. इसके बाद शाम साढ़े पांच बजे शोभायात्रा निकाली गई. इसी दिन रात को आठ बजे प्रसाद का कार्यक्रम होगा. अंतिम दिन 20 अगस्त को सुबह छह बजे महाआरती होगी, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होंगे. इसके बाद दिनभर प्रसाद वितरण होगा.


श्री बिहारी जी मित्र मंडल द्वारा फाल्गुन की एकादशी पर यहां 3 दिन तक फागोत्सव का आयोजन किया जाता है. इस उत्सव में देश विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं. पंच पेड़ के नीचे हवन एवं दीपोत्सव और महा आरती का आयोजन किया जाता है. फागोत्सव में फूलों और गुलाल से होली खेली जाती है. इसके बाद पंच पेड़ के नीचे ही महाप्रसाद किया जाता है. बिहारी जी के मंदिर से लेकर पंच पेड़ तक एक शोभायात्रा भी निकाली जाती है. बिहारी जी के मंदिर में छप्पन भोग की झांकी सजाई जाती है. इसके अलावा यहां पर हनुमान जयंती, निर्जला उत्सव, गुरु पर्व, शरद उत्सव, अन्नकूट महोत्सव, बाबा बारात, नव वर्ष एवं श्री कृष्ण जन्मोत्सव इत्यादि पर कार्यक्रम होते हैं. शुक्ल पक्ष की एकादशी पर यहां कीर्तन कार्यक्रम होते हैं. 


 Reporter- Sandeep Kedia 


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