Pilani: हर पिता का सपना होता है कि वह अपनी बेटी का कन्यादान करें.  झुंझुनूं के पिलानी के राजेंद्र प्रसाद भाबूं का भी था. लेकिन किसी-किसी को कन्यादान से भी ज्यादा मिट्टी का कर्ज चुकाने का मौका मिलता है. राजेंद्र प्रसाद भाबूं को भी देश की सेवा का अवसर मिला और वह सेवा करते-करते शहीद हो गए. 


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झुंझुनूं के अलीपुर पंचायत के मालीगांव के रहने वाले सूबेदार राजेंद्र प्रसाद भांबू कश्मीर में दुश्मनों से लोहा लेते हुए अपना प्राण न्यौछावर कर दिया. उनकी शौर्यता के किस्से भी हर किसी की जुबां पर हैं. 


शहीद राजेंद्र प्रसाद भांबू के भाई राजेश कुमार भांबू ने बताया कि शनिवार को राजेंद्र प्रसाद भांबू का अंतिम संस्कार किया जाएगा. शुक्रवार को देर रात तक पार्थिव देह झुंझुनूं पहुंचने की संभावना है. राजेश ने यह भी बताया कि बुधवार रात को करीब आठ बजे उनके बड़े भाई राजेंद्र प्रसाद भांबू ने अपनी पत्नी तारामणि और बेटी से बातचीत की थी. उस वक्त सबकुछ ठीक था, लेकिन रात को करीब डेढ़ बजे आतंकवादियों ने उनके आर्मी कैंप में घुसपैठ कर दी, राजेंद्र प्रसाद हार मानने वाले कहां थे. उन्होंने भी दुश्मनों को मुहंतोड़ जवाब देने के लिए मोर्चा संभाला, लेकिन तबतक आतंकियों ने उनपर चार गोलियां दाग दी.


इसके बाद भी राजेंद्र प्रसाद भांबू हिम्मत नहीं हारी और आतंकवादियों से लोहा लेते रहे, लेकिन पांचवीं गोली उनके गर्दन पर लगी, जिससे वो वीरगति को प्राप्त हो गए. राजेंद्र भाबूं के पिता बदरूराम भी आर्मी से रिटायर हैं और उनके भाई भी आर्मी में थे. इसलिए उनका बेटा और भतीजा भी आर्मी में जाने की तैयारी कर रहा है. शहीद राजेंद्र भाबूं के भाई राजेश कुमार ये बताया कि पिछले माह ही राजेंद्र प्रसाद भांबू गांव आकर गए थे. अपनी बड़ी बेटी प्रिया की शादी को लेकर वो काफी उत्साहित थे. 28 फरवरी 2023 को रिटायरमेंट के बाद, मार्च-अप्रेल 2023 में उन्होंने शादी को लेकर तैयारियां शुरू कर दी थी. वहीं घर में भी निर्माण कार्य चल रहा था.


राजेंद्र प्रसाद शादी की तैयारियों के लिए अगले महीने फिर से आने वाले थे ताकि वो खुद आकर घर का निर्माण कार्य अपनी देखरेख में करवा सके, लेकिन वो उससे पहले ही देश के लिए शहीद हो गए. गांव के जगदीश ने बताया कि राजेंद्र प्रसाद भांबू की शौर्यता कारगिल युद्ध से गांव में युवाओं के लिए प्रेरणास्पद है. राजेंद्र प्रसाद भांबू ने कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया था और दुश्मनों के दांत खट्टे किए थे. राजेंद्र प्रसाद भांबू मालीगांव के तीसरे शहीद है. इससे पहले भी गांव के दो बेटों ने देश की सुरक्षा में अपनी जान की बाजी लगा दी थी.
 
राजेंद्र प्रसाद भांबू के पिता बदरूराम ने बताया कि उन्हें गर्व है कि उनका बेटा मां भारती की रक्षा करते हुए शहीद हुए है. शहीद के पिता ने भी 1965 और 1971 की लड़ाई लड़ी है. वहीं अपने पति के शहीद होने की सूचना के बाद तारामणि बेसुध हो गई है. वो सिर्फ अपने शहीद पति के अंतिम दर्शन के इंतजार में है और गांव का हर व्यक्ति भी लाडले को अंतिम विदाई देने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा है.


शहीद राजेंद्र प्रसाद अपने पीछे छोड़ गए पूरा परिवार


शहीद राजेंद्र प्रसाद का जन्म 1 जुलाई 1974 को हुआ था. उनके पिता बदरूराम है. बदरूराम सेना में रहते हुए 1965 और 1971 की लड़ाई के साक्षी रह चुके हैं.  उनकी मां श्रवणीदेवी गृहिणी हैं. राजेंद्र प्रसाद वर्तमान में सूबेदार रैंक पर कार्यरत थे. वो 23 फरवरी 1995 को सेना में भर्ती हुए थे. राजेंद्र प्रसाद 1999 में हुए कारगिल युद्ध में भी पूरी बहादुरी से लड़े थे और समय-समय पर आर्मी के अन्य ऑपरेशन में भी दुश्मनों को धूल चटाए थे.


राजेंद्र प्रसाद की शादी 1993 में तारामणि से हुई थी. दोनों की दो बेटियां और एक बेटा है. उनकी बड़ी बेटी का नाम प्रिया है, जिसकी हाल ही में सगाई भी हो चुकी है. मार्च-अप्रैल 2023 में शादी होने वाली थी. वहीं, छोटी बेटी का नाम साक्षी है, जिसकी उम्र करीब 20 साल है. वहीं एक आठ साल का बेटा अंशुल है. जो दूसरी क्लास में पढ़ाई कर रहा है.


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Reporter: Sandeep Kedia