भारत-पाक 1971 के युद्ध के किस्से झुंझुनूं के जवानों के बिना हैं अधूरे, विजय दिवस के खास मौके पर पढ़िए शौर्य गाथा
Jhunjhunu: भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध को आज 51 साल हो गए. यह युद्ध इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा. क्योंकि ऐसा युद्ध था. जिसमें किसी देश ने दुश्मन देश के करीब 93 हजार से अधिक सैनिकों को बंदी बना लिया था.
Jhunjhunu: इस युद्ध में झुंझुनूं जिले के जवानों ने भी अपना पराक्रम दिखाया था. इस युद्ध में झुंझुनूं जिले के सर्वाधिक 108 जवानों ने शहादत दी थी. झुंझुनूं के जवानों ने अपनी बहादुरी से पाकिस्तान के सैंकड़ों जवानों को मौत के घाट उतार दिया था. दुश्मन का ट्रक भी ले आए. जब भी युद्ध की बात चलती है तो झुंझुनूं के जवानों के बहादुरी के किस्से जरूर सुनने को मिलते हैं.
झुंझुनूं के ओजटू निवासी फौजी निहाल सिंह डागर महज 18 साल की उम्र में पांच जनवरी 1963 को सेना में भर्ती हो गए थे. पहली पोस्टिंग कश्मीर में मिली. करीब दो साल बाद पोस्टिंग राजस्थान में कर दी. इसी दौरान पाकिस्तान के साथ युद्ध शुरू हो गया. 1971 में निहाल सिंह बाड़मेर में तैनात थे. दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हो चुकी थी.
दोनों तरफ से गोला-बारूद और गोलियां दागी जा रही थी. तीन दिसंबर 1971 को निहाल सिंह अपनी पलटन के साथ जीप में सवार होकर पाकिस्तान में घुस गया. बॉर्डर से करीब 130 किमी अंदर पाकिस्तान में डिपलो रेलवे स्टेशन के निकट पहुंच गए. रेलवे स्टेशन से करीब तीन किमी पहले दुश्मन सेना के जवान दो ट्रकों में भरकर सामने आ गए.
तब पलटन के साथ मिलकर पहले ट्रक में सवार आठ जवानों को बंधक बना लिया. ऐसे में दूसरे ट्रक में सवार पाकिस्तानी जवान ट्रक से उतर टीले पर खेजड़ी के बड़े पेड़ के पास छुप गए. उनका पीछा करते हुए निहाल सिंह खेजड़ी के पास पहुंचे तो दुश्मन फौज के एक जवान ने पिस्टल से फायर कर दिया.निहाल सिंह बाल-बाल बचा. लेकिन दूसरे ही पल संभलते हुए निहाल सिंह ने स्टेनगन से फायर शुरू कर दिए और पाकिस्तानी फौज के सभी 24 जवानों को मौत के घाट उतार दिया.
उस समय निहाल सिंह ने स्टेनगन से करीब 68 फायर किए थे. उनके ट्रक को आग के हवाले कर दिया. इस बीच 16 दिसंबर को युद्ध विराम का मैसेज मिल गया. इसके बाद बंधक बनाए दुश्मन फौज के आठ जवानों को ट्रक सहित देश की सीमा में ले आए. इसे जोधपुर के उम्मेद पैलेस में खड़ा किया था. युद्ध समाप्ति के बाद निहाल सिंह को वीर चक्र दिए जाने की घोषणा की गई.
कैप्टन विद्याधर 1971 में बलनोई सेक्टर के 468 पोस्ट पर तैनात थे. यह पोस्ट सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण थी. अगर पाकिस्तान इस पोस्ट पर कब्जा कर लेता तो पूंछ सहित अन्य इलाकों में पहुंचने में उनको आसानी होती. इसी सामरिक महत्व को देखते हुए इस पोस्ट को काफी मजबूत बनाया गया था. पाकिस्तान की वॉलिंटियर फ़ोर्स में 3 दिसंबर की रात को रात 8 बजे बटालियन लेवल का हमला इस पोस्ट पर किया. पाकिस्तानी सेना पोस्ट के पहले मोर्चे तक पहुंचने पर कामयाब रही. मगर भारतीय सैनिकों ने बहादुरी से पाकिस्तानी सेना के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया और उन्हें वापस खदेड़ा पाकिस्तान की ओर से रात के समय फिर दोबारा हमला किया गया.
दोनों ओर से खूब गोलाबारी हुई भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के एक अधिकारी तथा 2 जेसीओ और 43 जवानों को ढेर कर दिया गया. बटालियन की इस बहादुरी भरे कार्य को लेकर पोस्ट कमांडर ब्रिगेडियर जे ले तौमर को वीर चक्र से नवाजा गया। वहीं बटालियन को बलनोई ही दिवस मनाने का अवसर दिया गया. हर वर्ष बटालियन द्वारा बलनोई दिवस के रूप में मनाया जाता है. कैप्टन विद्याधर आज भी 1971 की लड़ाई के किस्से अपने पोतियों को सुनाते हैं तो लड़ाई के किस्से सुनाते सुनाते उनकी बांछें खिल जाती है.
शेखावाटी का झुंझुनूं जिला देश को सबसे अधिक सैनिक और शहीद देने वाला है यहा के हर गाँव ढानी में शहीदों की लगी प्रतिमाएं यहां के जवानों की बहादुरी के अमिट हस्ताक्षर है, जब भी युद्ध की बात होती है तो यहा के वीर जाबाज जवानों की बहादुरी के किस्से के बिना उसे पूरा नही किया जा सकता गांव ढाणियों में लगी शहीदों की प्रतिमाएं युवाओं का सेना में जाने के लिए प्रेरित करती हैं तभी तो यहां के युवाओं की पहली प्राथमिकता आज भी सेना में जाना ही हैं.
रिपोर्टर- संदीप केडिया
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