राजस्थान में इंटरनेट बंद होने से कैसे एक मां को मिल गया पूरा परिवार
बस यूं ही रात के खाने का वक्त हो गया बातों बातों में डिनर कब 9 से 11 का हो गया पता ही ना लगा. मां के चहरे की शांति, खुशी और सुकून को देखकर लगा जैसे मेरी मां को आज उसका परिवार मिल गया.
Jodhpur: आज सुबह कुछ अलग थी, सिरहाने रखें मोबाइल में आज टिन टिन की हलचल नहीं थी. यही सोच कर उठते हुए लगा कि कही मोबाइल तो खराब नहीं हो गया तभी बाहर से पिताजी बोल पड़े की आज नेट बंद है. ये शब्द सुनकर कुछ देर के लिए उदासी छा गयी पूरे दिन का काम कैसे होगा, ये सोचने को मजबूर हो गया, लकिन तभी सोचा की आखिर ऐसा क्या हुआ है ? जो सरकार को नेट बन्द करना पड़ गया ? यही सोचते सोचते कदम दरवाजे की ओर चल पड़े क्योंकि अक्सर हॉकर भईया अखबार वहीं दरवाजे की कड़ी में टांग जाते थे, चलो अखबार तो मिल गया पढ़ना शुरू किया, बरसों बाद खबरों को स्क्रीन के बाहर महसूस किया. अखबार पड़कर पता लगा कहीं कुछ बहुत बुरा घटित हुआ है, आमजन में शांति बरकार रहें और अफवाहों का बाजार गर्म ना हो इसलिए नेट बन्द किया गया है.
खैर ख़बर पढ़कर हम अपने रोजमर्रा के काम करने चल दिये. थोड़ा ही समय बिता था, माँ ने आवाज लगाई नाश्ता बन गया हैं, मैं बाबूजी के साथ टेबल पर पहुँचा आज पहली बार मैंने उस टेबल को ध्यान से देखा, क्योंकि रोज तो नजरें मोबाइल या लैपटॉप पर गढ़ी होती थी. कुछ देर बाद मां ने नाश्ता लगया पर आज बाबूजी और माँ से बात करते हुए नाश्ता करने पर पता लगा कि जिंदगी के वो अनुभव जो मोबाइल और लैपटॉप नहीं दे पाते, वो माँ बाबूजी की बातें दे जाती हैं. आज नेट बन्द होने से माँ बड़ी खुश थी क्योंकि बहुत दिनों बाद सब साथ में बैठ बातें जो कर रहें थे, कुछ अपनी कह रहें थे , कुछ उनकी सुन रहे थे.
कुछ देर बाद पड़ोस के शर्मा जी भी आ गए पिताजी से गली मोहल्ले के किस्से कहने लगे और दोनों खिलखिलाकर हँसने लगे , आज ध्यान मोबाइल पर नहीं था, इसलिए पिताजी को बहुत समय बाद ऐसे खुलकर हँसते हुए देख पाया, यही सोचकर मैं भी अपने मन में मुस्कुराने लगा. आज काम कुछ खास था नहीं फिर भी ऑफिस को निकल पड़ा. ऑफिस पहुँच के देखा तो सब दोस्त जो रोज अपने चैंबर में बैठकर घण्टों लैपटॉप और मोबाइल को ताड़ते रहते थे, आज कैंटीन में बैठ के चाय की चुस्कियां लेकर अपने भविष्य की बातें साझा कर रहें थे, घर, बाहर और देश में होने वाली हर हलचल पर अपनी राय रख रहें थे.
आज ऑटोमेटिक की जगह मैनुअली काम करते करते दिन भी कब बीत गया, पता ही नहीं लगा. शाम को घर लौटा तो 7 बज चुके थे, वैसे 7 रोज बज जाते थे पर आज दीवार पर टंगी घड़ी में देखा क्योंकि नेट बंद था तो दिनभर मोबाइल की जरूरत कम महसूस हुई. थोडी देर हुई कि एक नोटिफिकेशन आया मोबाइल से नहीं घर के पूजा घर से, जहाँ माँ घण्टी बजाकर भगवान को आज की नेटबन्दी का धन्यवाद दे रही थी. आज बहुत समय बाद मेरे कदम पूजाघर की तरफ बढ़े, वहाँ पहुँचा ही था कि माँ ने कह दिया अब आये हो तो आरती भी कर लो, मैंने भी आरती में भाग लिया और सच कहूं उस आरती में जो सुकुन था, वो किसी रिंगटोन में नहीं मिल सकता . समय निकलने लगा मैं एक एक पल को संजोने की कोशिश करने लगा मोबाइल उठा कर गैलेरी में अनगिनत कहनियों को संजोए रखने वाली पिक्चर्स को देखने लगा, जिन दोस्तों को रोज मैसेज करता था आज उन्हें कॉल करके बतियाने लगा.
बस यूं ही रात के खाने का वक्त हो गया बातों बातों में डिनर कब 9 से 11 का हो गया पता ही ना लगा. मां के चहरे की शांति, खुशी और सुकून को देखकर लगा जैसे मेरी मां को आज उसका परिवार मिल गया. रात को जब सोने गया तो लगा रोज जो चल रही थी वो बस एक मशीन थी, जिसका रिमोट स्मार्ट फ़ोन और लैपटॉप था जो एक इंटरनेट से जुड़ा था.
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