Jodhpur news:दशहरे पर देश के अलग-अलग हिस्सों में असत्य पर सत्य और पाप पर पुण्य की जीत के प्रतीक के रूप में रावण दहन कर दशहरा मनाया जाता है. लेकिन राजस्थान के जोधपुर में एक ऐसा समाज है जो दशहरे के दिन को शोक के रूप में मनाते हैं. यहां एक ऐसा समाज है जो खुद को रावण का वंशज बताते है और वो दशहरे के दिन को शोक के रूप में मनाते हैं .


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यह है शोक की वजह 
दरसल,श्रीमाली ब्राह्मण समाज खुद को रावण का वंशज और मंडोर को रावण का ससुराल मानता है.जोधपुर में इस गौत्र के करीब 100 से ज्यादा और फलोदी में 60 से अधिक परिवार रहते हैं. इनका कहना है कि रावण एक महान संगीतज्ञ विद्वान होने के साथ ही ज्योतिष शास्त्र का प्रकांड पंडित भी था, ऐसी मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी जोधपुर के मंडोर की रहने वाली थी. 


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रावण की होती है पूजा
रावण के मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित कमलेश कुमार दवे का कहना है कि वह गोदा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मण समाज के हैं और रावण के वंशज भी हैं. अपनों के निधन के बाद जिस तरह स्नान कर यज्ञोपवीत (जनेऊ) बदला जाता है उसी तरह दशहरे पर रावण दहन के बाद इस समाज के लोग तालाब-सरोवर में स्नान कर यज्ञोपवीत भी बदलते हैं. इसके उपरांत मंदिर में रावण और शिव की पूजा की जाती है. इस दौरान देवी मंदोदरी की भी आराधना की जाती है. 


मंदिर की विशेषता


2008 में जोधपुर के श्रीमाली ब्राह्मणों ने मेहरानगढ़ की तलहटी में रावण के मंदिर का निर्माण करवाया था.लंकापति रावण भी शिव भक्त था. इसलिए यहां शिव की विशेष पूजा की जाती है। रावण के मंदिर के सामने ही मंदोदरी का मंदिर भी बनवाया गया है.रावण मंदिर के करीब 200 मीटर के दायरे में रावण दहन नहीं किया जाता है. ना ही यहां के कोई लोग रावण दहन देखने के लिए जाते हैं. जो भी  टूरिस्ट जोधपुर घुमने आता है  टूरिस्ट मंडोर भी जाते हैं और रावण के मंदिर भी देखने आते हैं. 


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