Jodhpur News: पशुपालक समाज घांची समाज की ओर से अक्षय तृतीया पर जोधपुर में परम्परागत कार्यक्रम धणी का आयोजन किया गया.आयोजन  में समाज के लोगों ने उत्सुकता के साथ शिरकत की. इस आयोजन में धणी ने भविष्यवाणी या यूं कहें कि इस बार देश की राजनीति,बारिश के साथ ही स्वास्थ्य को लेकर संदेश दिया. मारवाड़ की अनूठी परम्परा के तहत धणी ने इस बार देश में राजनीतिक उठापटक होने, लेकिन राजनीति में फिर भी स्थिरता रहने के साथ ही बारिश कम होने फिर भी फसल ठीक होने के साथ ही इस बार या यूं कहें इस साल बीमारियों का प्रकोप रह सकता है.


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राजनीति  भविष्यवाणियां


प्रदेश में आखा तीज का त्यौहार बड़े धूम धाम से बनाया जाता है.यहां अलग-अलग क्षेत्रों में  अनेक तरह की पूजा होती है. इसी कड़ी में  मारवाड़ में सदियों से एक समाज विशेष के लोग अक्षय तृतीया आखा तीज के दिन धणी के माध्यम से ना केवल मौसम की बल्कि राजनीति और बीमारियां या यूं कहें कि यह साल कैसा रहेगा कि सटीक भविष्यवाणी करते है. इनका आंकलन इतना सटीक माना जाता है कि पूरे मारवाड़ के लोगों को आखा तीज पर अकाल सूखा या सुकाल (बरसात) से जुड़ी धणी की घोषणा का इंतजार रहता है.


बीमारियों का  रहेगा प्रकोप


इसके अलावा राजनीतिक उठा पटक के भी संकेत मिलते है. शहर में पशु पालक घांची समाज सदियों से धणी का आयोजन करता आ रहा है. जोधपुर में एक बार फिर आज आखातीज पर धणी का आयोजन हुआ. इस बार धनी ने राजनीतिक उठापटक होने, लेकिन फिर भी स्थिरता रहने के साथ ही बारिश कम होने फिर भी फसल ठीक होने के साथ ही इस बार या यूं कहें इस साल बीमारियों का प्रकोप रह सकता है. ऐसा संदेश दिया.


मौसम पर की भविष्यवाणी
धणी की परम्परा बहुत प्राचीन मानी जाती है. इस आयोजन से जुड़े घनश्याम परिहार  का कहना है कि प्राचीन काल में मौसम विभाग  नहीं था. यदि था भी तो कम्यूनिकेशन साधनों  के अभाव में उसकी दी गई जानकारी किसानों व पशुपालकों तक नहीं पहुंच पाती थी. ऐसे में समाज ने अपने लेवल  पर मौसम की भविष्यवाणी करना शुरू कर दिया जिससे  किसान व पशुपालक पहले से अलर्ट होकर  अपने सामान व अनाज को सुरक्षित  रख सके.


उनका कहना है कि यह हमारे समाज के बुजुर्गों के अनुभव की देन है. यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. उनका दावा है कि इसके माध्यम से सिर्फ अकाल-सुकाल ही नहीं देश की राजनीतिक स्थिरता के अलावा अन्य संकेत भी मिलते है जिससे लोगों का भला होता है. दरसअल यह  आयोजन अनूठा होता है. इसमें सारी जिम्मेदारी  दो अबोध बालकों पर होती है. रीति-रिवाज से अनजान  ये बालक यज्ञ की वेदी पर बुजुर्गों के बताए अनुसार अपना कार्य करते रहते है. इसमें मिलने वाले संकेतों को समझ समाज के बुजुर्ग इस वर्ष होने वाले अकाल या सुकाल की घोषणा करते है.


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