शहीद कालूराम जाखड़, परिवार को ख़त भेजकर युद्ध में गए, ख़त से पहले घर पहुंचा शहादत का पैगाम
वतन की खातिर कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति वीरों की गाथाएं आने वाली कई सदियों तक देश याद रखेगा.भोपालगढ़ क्षेत्र के खेड़ी चारणान गांव निवासी भारतीय सेना के जवान शहीद कालूराम जाखड़ की.चार-साढे चार साल बाद ही उनकी तैनाती जम्मू कश्मीर इलाके में हो गई थी,कुछ समय बाद ही कारगिल का युद्ध शुरू हो गया था.
Jodhpur: वतन की खातिर कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति वीरों की गाथाएं आने वाली कई सदियों तक देश याद रखेगा. कुछ ऐसी ही कहानी है भोपालगढ़ क्षेत्र के खेड़ी चारणान गांव निवासी भारतीय सेना के जवान शहीद कालूराम जाखड़ की. शहीद कालूराम जिस ने दिन मां भारती की रक्षा के लिए शहादत का बासंती चोला पहना था, ठीक उसी रोज उन्होंने अपनी जन्म देने वाली मां को खत भी लिखा था, जिसमें उन्होंने अपनी खैरियत के समाचार देने के साथ ही चिंता नहीं करने की भोळावण दी और यह भी लिखा, कि मां तेरे बेटे के नाम का शिलालेख गांव में लगेगा और तेरे बेटे को एक दिन पूरी दुनिया जानेगी, कि कैसे वह दुश्मनों से लड़ा था.'' लेकिन होनी को भी शायद कुछ यही मंजूर था और रणबांकुरे कालूराम का यह खत अपनी मां तक पहुंचता, इससे पहले ही उसकी शहादत का पैगाम आ गया और आज वाकई कारगिल शहीद कालूराम जाखड़ के नाम का शिलालेख गांव के बीचों-बीच लगा हुआ है, जिसे देखकर न केवल उसकी मां को गर्व होता है, बल्कि यहां से गुजरने वाला हर सख्श कालूराम की बहादुरी को नमन करता है.
गौरतलब है कि भोपालगढ़ क्षेत्र के खेड़ी चारणान गांव निवासी कालूराम जाखड़ पुत्र गंगाराम जाखड़ 28 अप्रैल 1994 को भारतीय सेना की 17 जाट रेजीमेंट में सिपाही के पद पर सेना में भर्ती हुए थे. चार-साढे चार साल बाद ही उनकी तैनाती जम्मू कश्मीर इलाके में हो गई थी, जिसके कुछ समय बाद ही कारगिल का युद्ध शुरू हो गया था. जिसमें अदम्य साहस व बहादुरी भरी वीरता का परिचय देते हुए कालराम जाखड़ ने भी मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की न केवल आहुति दी, बल्कि अंतिम सांस तक बहादुरी के साथ दुश्मन देश की सेना से लड़ते हुए एक बंकर को ध्वस्त कर 8 घुसपैठियों को भी मार गिराया था. यही नहीं, जाखड़ करगिल युद्ध में शहादत देने वाले समूचे मारवाड़ के पहले जांबाज शहीद थे.
यूं दिखाई थी कालूराम ने बहादुरी
शहीद कालूराम के बड़े भाई शिक्षक भागीरथ जाखड़ ने बताया कि जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान कालूराम कारगिल की पहाड़ी पर करीब 17850 फीट की ऊंचाई पर पीपुल-2-तारा सेक्टर में अपनी रेजिमेंट के साथ तैनात थे. इस दौरान 4 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सेना ने उनकी रेजिमेंट पर हमला बोल दिया. उस दौरान एक बम का गोला कालूराम के पैर पर आकर लगा और इस वजह से उनका पैर शरीर से अलग ही हो गया, लेकिन इसके बावजूद भी कालूराम दुश्मनों से लड़ते रहे और अपने रॉकेट लांचर से दुश्मनों का एक बंकर ध्वस्त कर उसमें छिपे 8 घुसपैठियों को मार गिराते हुए, खुद भी शहादत का चोला पहनकर मादरे वतन के लिए अपनी शहादत दे दी. कालूराम जाखड़ जिस दिन शहीद हुए उसी दिन सुबह उन्होंने अपनी मां को एक चिट्ठी भेजी थी. इसमें उन्होंने लिखा था, कि मां तुम मेरी चिंता मत करना, तेरे बेटे के नाम का शिलालेख गांव में लगेगा और तेरे बेटे को एक दिन पूरी दुनिया जानेगी, कि कैसे वह दुश्मनों से लड़ा था. कालूराम का यह पत्र उनके जीवन का आखरी खत बनकर रह गया.
शिलालेख के साथ मूर्ति भी लगी
करगिल युद्ध में अपनी जांबाजी का परिचय देते हुए मां भारती की रक्षा के लिए सदा-सदा के लिए अमर हुए, खेड़ी चारणान गांव निवासी शहीद कालूराम जाखड़ ने अपने जिस आखिरी खत में उनके नाम के शिलालेख का जिक्र किया, उसी के अनुरुप जाखड़ की शहादत को अमर करने के लिए गांव के लोगों ने भी हरसंभव सहयोग किया. गांव के बीच स्थित सरकारी विद्यालय के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया. जहां पर शहीद के परिजनों ने करीब सवा तीन लाख रुपए की लागत से शहीद की आदमकद प्रतिमा स्थापित की, इसके साथ ही राज्य सरकार की ओर से गांव के सरकारी विद्यालय का नाम भी शहीद कालूराम जाखड़ के नाम पर कर दिया. इन तमाम कार्यों के साथ शहीद के आखरी खत के अनुरुप उनके नाम का शिलालेख भी प्रतिमा स्थल पर स्थापित किया गया है.
शहादत पर नाज है पूरे गांव को
कारगिल शहीद कालूराम जाखड़ की शहादत पर न केवल उनके परिजनों को, बल्कि पूरे गांव को आज भी फक्र व नाज है और राष्ट्रीय पर्वों के मौके पर गांव के सभी लोग उनके प्रतिमा स्थल पर एकत्रित होकर तिरंगा फहराते हैं. उनके जन्मदिन एवं शहादत दिवस पर प्रतिवर्ष रक्तदान, पौधरोपण व गौसेवा आदि के कार्यक्रम चलाते रहते हैं, वहीं कालूराम की शहादत से प्रेरित होकर पिछले 20-22 वर्षों में उनके गांव से करीब एक दर्जन से अधिक युवा, नौजवान भारतीय सेना में भर्ती हो चुके हैं.
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