(Mahaabhaarat)महाभारत में कर्ण एक महान योद्धा थे. जो कौरवों और पांडवों के बीच हो रहे युद्ध की तस्वीर बदलने की क्षमता रखते थे, पर क्या आपको पता है कर्ण की मृत्यु की वजह दो ब्राह्मणों का श्राप था, चलिए बताते हैं- कर्ण की अनसुनी कहानी


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कर्ण सूत परिवार से थे. गुरु द्रोणाचार्य के धनुर विद्या सिखाने से मना करने पर कर्ण भगवान परशुराम के पास पहुंच गये, लेकिन वहां भी जब कर्ण को ये कह कर मना कर दिया गया कि सिर्फ ब्राह्मण को ही शिक्षा देते हैं.


तब कर्ण ने झूठ कहा. कर्ण ने कहा कि वो एक ब्राह्मण है. ऐसे में भगवान परशुराम ने कर्ण को धनुर विद्या देनी शुरु की. जब कर्ण की शिक्षा खत्म होने ही वाली थी. तब एक दिन उनके गुरु परशुराम कर्ण की जंघा पर सिर रखकर आराम कर रहे थे. 


तभी एक बिच्छू ने कर्ण को काट लिया लेकिन गुरु परशुराम की नींद ना खराब हो, इसके लिए कर्ण ने उफ्फ तक नहीं किया. बिच्छू कर्ण को काटता रहा. फिर थोड़ी देर बाद परशुराम की नींद खुली तो कर्ण से पैर से निकले खून और बिच्छू को देखकर वो समझ गये.


परशुराम ने कर्ण से कहा कि तुम ब्राह्मण नहीं हो सकते, एक ब्राह्मण में इतनी सहनशीलता नहीं होती है. तुम क्षत्रिय हो. ऐसे में मुझसे झूठ बोलने के लिये मैं तुम्हे श्राप देता हूं कि जब मेरी दी हुई विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी, तब वो तुम्हारे काम नहीं आएगी.


दुखी कर्ण ने परशुराम को बताया को वो नहीं जानता की वो किस कुल का है और किस वंश से हैं. जिसे सुनकर परशुराम को श्राप देकर पछतावा होता है. लेकिन दिया गया श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था. इसलिए वो कर्ण को एक विजय धनुष दे देते हैं और चले जाते हैं.


कुछ समय बाद कर्ण जंगल में एक राक्षस का वध करने के लिए बाण चलाते हैं, लेकिन वो राक्षस मायावी था जो अचानक गायब हो जाता है. कर्ण का बाण दलदल में फंसी एक गाय को लग जाती है और गाय की मृत्यु हो जाती है.


जिस ब्राह्मण की वो गाय थी वो गाय की मृत्यु पर कर्ण को श्राप देता है कि जैसे तुमने एक असहाय गाय को मारा है, ठीक उसी तरह ही एक दिन तुम्हारी भी मृत्यु हो जाएगी.
महाभारत के युद्ध में ये दोनों श्राप ही कर्ण की मृत्यु का कारण बनते हैं. युद्ध में कर्ण का रथ का पहिया दलदल में फंसता है, जब कर्ण उसे निकालने के लिए रथ से उतरते हैं तो अर्जुन के तीर से उनकी मृत्यु हो जाती है. 


 महाभारत काल का वो श्राप जो आज भी महिलाओं पर लगा माना जाता है


राजा जनक को कलश में मिली थी माता सीता, लेकिन कलश में रखा किसने था ?