सोमवार को करें शिव तांडव स्तुति का पाठ, जीवन में होंगे चमत्कार
Shiv Tandav Stuti : तुलसीदास रचित रामचरित मानस, रावण को भगवान शिव का अनन्य भक्त बताया गया है. जिसने शिव तांडव स्त्रोत भी लिखा था. शिव तांडव स्तुति को भगवान शिव की आराधाना में सबसे शक्तिशाली माना जाता है.
Shiv Tandav Stuti : तुलसीदास रचित रामचरित मानस, रावण को भगवान शिव का अनन्य भक्त बताया गया है. जिसने शिव तांडव स्त्रोत भी लिखा था. शिव तांडव स्तुति को भगवान शिव की आराधाना में सबसे शक्तिशाली माना जाता है.
सोमवार के दिन शिव तांडव स्तुति के पाठ से भगवान शिव की असीम कृपा मिल सकती है. खासतौर पर सावन में इस पाठ का महत्व और पढ़ जाता है. सोमवार के साथ ही आज प्रदोष व्रत भी हैं ऐसे में इसका पाठ मंगलकारक होगा. आप चतुर्दशी पर भी इसका पाठ कर सकते हैं.
श्रावण मास में तो हर दिन ही शिव तांडव स्तुति का पाठ किया जाना चाहिए. चलिए बताते हैं आपको शिव स्तुति के इस चमत्कारिक स्त्रोत के श्लोक और उनका अर्थ -
देवा दिक्पतय: प्रयात परत: खं मुञ्चताम्भोमुच:
पातालं व्रज मेदिनि प्रविशत क्षोणीतलं भूधरा:।
ब्रह्मन्नुन्नय दुरमात्मभुवनं नाथस्य नो नृत्यत:
शम्भो संकटमेतदित्यवतु व: प्रोत्सारणा नन्दिन:।।1।।
दोर्दण्डद्वयलीलयाचलगिरिभ्राम्यत्तदुच्चै रव-
ध्वानोद्भीतजगद्भ्रमत्पदभरालोलत्फणाग्रयोरगम्।
अर्थ- नन्दी ने भगवान शिव का ताण्डव-नृत्य निर्विघ्न चलने के लिए ये याचना की- 'हे देवताओं और दिक्पतियो, आप यहां से कहीं और दूर हट जाओ. जल बरसाने वाले बादलो आप आकाश को छोड़ दो. पृथ्वी तुम पाताल में चली जाओ. पर्वतो तुम पृथ्वी के निचले भाग में प्रवेश कर जाओ बहन तुम अपने लोक को कहीं दूर और ऊपर उठा ले जाओ.क्योंकि मेरे स्वामी भगवान शंकर के नृत्य करने के समय में तुम सब संकट रूप ह. इस प्रकार लोगों को दूर जाने के लिए की गई नन्दी की घोषणा आपकी भी रक्षा करे।।1।।
भृङ्गापिङ्गजटाटवीपरिसरोद्गङ्गोर्मिमालाचल च्चन्द्रचारु महेश्वरस्य भवतान्न: श्रेयसे ताण्डवम्।।2।।
अर्थ -ताण्डव नृत्य करते समय जब भगवान् अपनी दोनों भुजाओं को घुमाने लगे तो अचल पर्वत भी घूमने लगे. उनके घूमने से जो ध्वनि होती थी, वो बड़ी ही ऊंची आवाज में होती थी. उससे संसार भयभीत हो जाता था और पाद-विक्षेप करते थे, तो उसके भार से शेषनाग का अग्रय-ऊपरी फण भी आंदोलित-चंचल हो जाया करता था. इस प्रकार भृंग के समान कृष्ण एवं पीले जटा समूहों से गंगाजी की अनवरत चलती हुई लहरों से चंचल चन्द्रमा वाले महेश्वर का ताण्डव नृत्य हम सभी के लिए कल्याणकारी रहे. ऐसी कामना है. ।2।।
संध्याताण्डवडम्बरव्यसनिनो भर्गस्य, चण्डभ्रमिव्यानृत्यद्भुजदण्डमण्डलभुवो झञ्झानिला: पान्तु व:।
येषामुच्छलतां जवेन झटिनि व्यूहेषु भूमीभृतामुड्डीनेषुविडौजसा, पुनरसौ दम्भोलिरालोकिता।।3।।
अर्थ- संध्याकालिक ताण्डव नृत्य में डम्बर-चहल-पहल होने के व्यसनी भगवान् शंकर जब अपने दोनों भुजादण्डों को पृथ्वी के चारों ओर घुमाते है और प्रचण्ड रूप में नाचते हुए चक्कर काटने लगते हैं, तो सहसा उनके वेगपूर्वक उछलने के कारण स्थान-स्थान पर पर्वतों के उड़ने से हुई आवाज के डर से इन्द्र ने भी एक बार फिर अपने वज्र को चलाने की दृष्टि से वज्र की ओर देख लिया. तत्कालीन ताण्डव नृत्य से होने वाले भुजदण्डों की झंझावात आप लोगों की रक्षा जरूर करें .
शर्वाणीपाणितालैश्चलवलयझणत्कारिभि: श्लाघ्यमानं स्थाने सम्भाव्यमानं पुलकितवपुषा शम्भुना प्रेक्षकेण।
खेलत्पिच्छालिकेकाकलकलकलितं क्रौञ्चभिद् बर्हियूनो, हेरम्बाकाण्डबृंहातरलितमनसस्ताण्डवं त्वा धुनोतु।।4।।
अर्थ - जब श्रीगणेशजी के अंग पूर्ण हो गए, तब क्रौंच के भेत्ता तरुण मयूर के वाही कार्तिकेय का मन प्रसन्नता से आन्दोलित हो गया और उनका वाहन मयूर केका ध्वनि के साथ नाचने लगा, तब भगवती पार्वती अपने दोनों करतलों के बजाने के कारण हुई चंचल वलयों की झनकार से उसकी प्रशंसा में लग गयी. । उचित समय देखकर भगवान् शंकर भी प्रेक्षक के रूप में पुलकित-मन हो, उसे आदर देने लगे. ऐसी ही भगवान् शिव का ताण्डव तुम्हें आनन्दित करे।।4।।
देवस्त्रैगुण्यभेदात् सृजति वितनुते संहरत्येष लोकानस्यैव, व्यापिनीभिस्तनुभिरपि जगद्व्याप्तमष्टाभिरेव।
वन्द्यो नास्येति पश्यन्निव चरणगत: पातु पुष्पाञ्जलिर्व:, शम्भोर्नृत्यावतारे वलयफणिफणाफूत्कृतैर्विप्रकीर्ण:।।5।।
।।इति शिवताण्डवस्तुति: सम्पूर्णा।।