Shri Raam Ka Janm Kaise Hua : श्रीराम के जन्म की अद्भुत कहानी, वो आप नहीं जानते
Shri Raam Ka Janm Kaise Hua : प्रभु श्रीराम के जन्म के समय कई शुभ घटनाएं घटी थी. श्री राम का जन्म चैत्र माह की नवमी के दिन हुआ था. करीब 5114 ईस्वी पूर्व. यानि की हिंदू नववर्ष के शुरू होने के 9वें दिन श्रीराम का जन्म हुआ था. लेकिन ये कोई आम घटना नहीं थी. इस दिन अयोध्या में जो घटनाएं घटी थी, वैसी घटनाएं ना कभी घटी और ना ही किसी ने इसकी कल्पना की थी.
Shri Raam Ka Janm Kaise Hua : प्रभु श्रीराम के जन्म के समय कई शुभ घटनाएं घटी थी. श्री राम का जन्म चैत्र माह की नवमी के दिन हुआ था. करीब 5114 ईस्वी पूर्व. यानि की हिंदू नववर्ष के शुरू होने के 9वें दिन श्रीराम का जन्म हुआ था. लेकिन ये कोई आम घटना नहीं थी. इस दिन अयोध्या में जो घटनाएं घटी थी, वैसी घटनाएं ना कभी घटी और ना ही किसी ने इसकी कल्पना की थी.
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रामचरितमानस के बालकांड में बताया गया है कि, राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ किया था. ये यज्ञ वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को बुलाकर करवाया था. जिसके बाद कौशल्या समेत दूसरी राशियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी. ये श्रृंगी ऋषि दशरथजी के दामाद थे. दशरथ जी की पुत्री का नाम शांता था.
वाल्मिकी जी ने लिखा है कि श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि और पुनर्वसु नक्षत्र में जब 5 ग्रह अपने उच्च स्थान पर थे. सूर्य मेष राशि में 10 डिग्री पर, मंगल मकर राशि में 28 डिग्री पर, देव गुरू बृहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर रहे थे, शुक्र ग्रह मीन राशि में 27 डिग्री पर और शनि ग्रह, तुला राशि में 20 डिग्री पर रहे थे.
महर्षि वाल्मिकी ने लिखा है कि श्रीराम जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को अभिजीत मुहूर्त में हुआ था. वहीं इसी पर हुए शोध के अनुसार 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व 12 बजकर 25 मिनट पर आकाश में ऐसा ही दृष्य़ था जो रामायण में बताया गया है.
श्रीराम के जन्म के समय ना तो धरती तप रही थी और ना ही ठिठुर रही थी, मौसम बहुत आनंदित करने वाला था. श्रीराम के जन्म पर जड़-चेतन सब तरफ हरियाली थी. ठंडी-शांत और सुंगधित हवा बह रही थी. देवी-देवता हर्षित थे और पर्वत मणियों के समान चमक रहे थे. नदियों में अमृत धारा बहने लगी थी. ब्रह्मा जी समेत सभी देवी देवाताओं ने श्रीराम का स्वागत किया था और गंधर्वों ने गुणगान किया था.
श्रीराम के जन्म पर राजा दशरथ ने नांदीमुख श्राद्ध करके सब जातकर्म-संस्कार किए थे. सोना-गौदान-मणियों का दान, वस्त्र दान हुआ था. पूरी अयोध्या ध्वजा-पताका और तोरणों से सज चुकी थी. हर जगह खुशियां थी और मंगलगान गाए जा रहे थे.