Lakhi fair 2024 in Karauli ​: उत्तर भारत के प्रमुख जैन तीर्थों में शामिल दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी का मंदिर करौली जिले के हिण्डौन उपखण्ड में गंभीर नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है. भगवान महावीर की अतिशय युक्त प्रतिमा के कारण यह स्थान श्री महावीरजी के नाम से विख्यात है. दिगम्बर जैन संस्कृति की अमूल्य विरासत धर्म तीर्थ श्री महावीरजी सम्पूर्ण भारत का गौरव स्थल है.


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श्रीमहावीरजी में इन दिनों वार्षिक लक्खी मेला चल रहा है. 18 अप्रैल से शुरू हुए मेले में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. मेले में देश भर से जैन समाज व अन्य समाजों के लोग शिरकत कर रहे हैं. आज 23 अप्रैल को पूजन आरती प्रवचन हो रहे हैं. शाम को सांस्कृतिक संध्या और रात्रि को राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा.


24 अप्रैल को भगवान जिनेंद्र की ऐतिहासिक रथ यात्रा निकाली जाएगी जिसमें सभी धर्म और समाजों के हजारों लोग शामिल होंगे. इसके बाद गंभीर नदी के जल से अभिषेक किया जाएगा. इसके अलावा ऊंट दौड़ व घुड दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाएगा. 25 अप्रैल को खेलकूद एवं कुश्ती दंगल प्रतियोगिता का आयोजन होगा.


चांदनपुर के महावीर की शान्त, मनोज्ञ, तेजो मूर्ति, अतिशयकारी दिगम्बर प्रतिमा के दर्शन ही भक्त के मन को बाँध लेते हैं और वह टकटकी लगाये उस आनन्द में खो जाता है। बरबस आंखों से आनंदाश्रु बहने लगते हैं. अंग-अंग रोमांचित हो उठता है. समर्पण, श्रद्धा और विश्वास के फूल खिल उठते हैं। वात्सल्यमयी मूरत से अनबोला संवाद होता है. भक्त को ऐसा आभास होता है कि समवशरण में विद्यमान तीर्थंकर के सारे अतिशय उसे अनुभूत हो रहे हैं और उसके मन में दिव्य ध्वनि का प्रसार हो रहा है.


आध्यात्मिक जन यहां से अध्यात्म को परिपुष्ट करते हैं तथा लौकिक जन अपनी लौकिक इच्छाओं की पूर्ति की कामना करते हैं. सर्वधर्म समभाव का प्रतीक यह सर्वोदय तीर्थ, तीर्थंकरों की परम्परा में चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर की दिगम्बर प्रतिमा का उद्भव स्थल है. वैशाली गणराज्य में 2600 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को वैशाली-कुण्डग्राम में जन्मे महावीर ने जनमानस में अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त के मूल्यों की प्रतिष्ठा कर प्राणी मात्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है.


प्रतिमा का उद्भव इस तीर्थ क्षेत्र के प्रादुर्भाव के बारे में ऐसा बताया जाता है कि लगभग 400 वर्ष पूर्व चांदन गांव में विचरण करने वाली एक गाय का दूध गंभीर नदी के पास एक टीले पर स्वतः ही झर जाता था. गाय जब कई दिनों तक बिना दूध के घर पहुंचती रही तो चर्मकार ने कारण जानने के लिए गाय का पीछा किया. जब चर्मकार ने यह चमत्कार देखा तो उत्सुकतावश उसने टीले की खुदाई की. वहीं भगवान महावीर की यह दिगम्बर प्रतिमा प्रकट हुई.


मूर्ति के चमत्कार और अतिशय की महिमा तेजी से सम्पूर्ण क्षेत्र में फैल गई. सभी धर्म, जाति और सम्प्रदाय के लोग भारी संख्या में दूर-दूर से दर्शनार्थ आने लगे. उनकी मनोकामना पूर्ण होने लगीं। क्षेत्र मंगलमय हो उठा. समय के प्रवाह में विकसित होता यह तीर्थ आज सम्पूर्ण भारत का गौरव स्थल बन गया है.


अतिशयकारी भगवान महावीर की प्रतिमा से प्रभावित होकर बसवा निवासी अमरचन्द बिलाला ने यहां एक मन्दिर का निर्माण करवाया. इस मंदिर के चारों ओर दर्शनार्थियों के ठहरने के लिए कमरों का निर्माण भक्तजनों के सहयोग से कराया गया, जिसे "कटला" कहा जाता है. कटले के मध्य में स्थित है मुख्य मन्दिर. इस विशाल जिनालय के गगनचुम्बी धवल शिखर एवं स्वर्ण कलशों पर फहराती जैन धर्म की ध्वजा सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान व सम्यक चरित्र का संदेश देती प्रतीत होती हैं.


मन्दिर की पार्श्व वेदी में मूलनायक के रूप में भूगर्भ से प्राप्त भगवान महावीर की प्रतिमा विराजित है तथा दायीं ओर तीर्थंकर पुष्पदन्त एवं बायीं ओर तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतिमाएं विराजित की गई हैं. मंदिर के भीतरी एवं बाहरी प्रकोष्ठों में संगमरमरी दीवारों पर बारीक खुदाई से तथा स्वर्णिम चित्रांकन कराकर मंदिर की छटा को आकर्षक व प्रभावशाली बनाया गया है. मन्दिर की बाह्य परिक्रमा में कलात्मक भाव उत्कीर्ण किये गये हैं। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार की सीढ़ियों को सुविधाजनक एवं आकर्षक स्वरूप दिया गया है.