Sapotara: सपोटरा उपखंड मुख्यालय के दक्षिण-पश्चिम की ओर 24 किमी दूर ग्राम पंचायत दौलतपुरा की अरावली पर्वतमालाओं के मध्य प्रसिद्ध घंटेश्वर धाम धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पापमोचन और वर्षाकालीन रमणीय पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है. श्रावण मास में पहाड़ की ढ़लान के मध्य कंदरा में स्थित प्राकृतिक शिवलिंग की पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. वहीं बारिश के दिनों में लोग पिकनिक का लुत्फ उठाते है. 


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दौलतपुरा डांग क्षेत्र के विशाल पर्वतमालाओं में स्थित प्राकृतिक शिव मंदिर की एक संत ने स्थापना की थी, जिसमें प्राकृतिक गौमुखी से सदैव जलधारा प्रवाहित होकर अभिषेक करती है. बताया जाता है कि 150 वर्ष पूर्व क्षेत्र के एक जागीरदार द्वारा एक निर्दोष ब्राह्मण की हत्या हो गई थी. जागीरदार ने ब्रह्महत्या के पाप से निजात पाने के लिए देश के सभी तीर्थ स्थलों पर जाकर कामना की गई लेकिन जागीरदार को भोजन की थाली में रक्त दिखने के साथ कुष्ठ रोग से निजात नहीं मिला. तत्पश्चात किसी संत द्वारा घंटेश्वर धाम की गौमुखी के झरने में स्नान करने की नसीहत दी गई. 


घंटेश्वरधाम में स्नान करने के बाद जागीरदार को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली. तत्पश्चात प्राकृतिक गुफा में शिव मंदिर होने की जानकारी मिलने पर अखिल भारतीय निंबार्क संप्रदाय दंगा अमरगढ़ के ब्रह्मलीन संत गोविंददास महाराज ने घंटेश्वर धाम में वर्षों तक तपस्या करने के साथ लालजी महाराज के मंदिर की स्थापना की गई. तभी से घंटेश्वरधाम का महत्व और बढ़ गया. मंदिर में शिव पंचायत, राधाकृष्ण और हनुमानजी की प्रतिमाएं श्रद्धालुओं को आकर्षिक करती है. दूसरी ओर 150 फिट की ऊंचाई से गिरने वाले झरने की कल-कल की आवाज श्रद्धालुओं का मनमोह लेती है. 


बारिश के दिनों में उपखंड मुख्यालय सहित आस-पास के गांवों और शहरों के लोग दर्शनों के साथ झरने में स्नान कर पिकनिक का लुत्फ उठाते है. श्रद्धालुओं द्वारा श्रावण मास में बेलपत्र आदि चढ़ाकर मनौती मांगने के साथ पापमुक्ति की कामना करते है. मान्यता है कि घंटेश्वरधाम में स्नान करने और दर्शनों से लोगों को पापों से मुक्ति मिलती है. घंटेश्वर के बीहड़ जंगलों में वन्यजीवों की कई प्रजातियां विचरण करती है, जिनमें टाइगर, जरख, नीलगाय, रीछ, हिरण, पैंथर आदि प्रमुख है. 


घंटेश्वर के जंगलों में कई प्राकृतिक गुफाएं स्थित है, जहां रणथंभोर से आने वाले बाघ आसानी ये यहां ठहरते है. कैलादेवी अभ्यारण्य में पहली बार 2007 में टाइगर मोहन ने इसी स्थान पर कदम रखा था. उक्त धाम पर कैलादेवी वन्यजीव अभ्यारण्य में टाइगरों को आना-जाना बना रहता है. गत दिनों टाइगर सुल्तान, मोहन, सुंदरी, तूफान आदि घंटेश्वरों के जंगलों में विचरण करते हुए ट्रेप कैमरों में कैद किए जा चुके है.


Reporter: Ashish Chaturvedi


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