Kota: त्याग और समर्पण की ये कहानी कोटा शहर की एक कच्चीबस्ती दादाबाड़ी से आई है. यहां एक बहन की त्याग और तपस्या ने भाई और बहन दोनों का जीवन बदल दिया. गंदे नाले से घिरे, टीनशैड के एक घर में इस परिवार के मुखिया घर-घर जाकर सब्जी बेचते और मां शैफाली घरों में जाकर झाड़ू-पौंछा लगाती, लेकिन परिवार के बच्चे होनहार थे. बेटी वर्षा डॉक्टर बनना चाहती थी और बेटा विशाल इंजीनियर. 


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दोनों हर कक्षा में बेहतर अंक भी ला रहे थे, लेकिन कर्जा लेकर भी 82 हजार की कोचिंग फीस किसी एक की ही भरी जा सकती थी. ऐसे में बहन वर्षा ने कोचिंग ड्रॉप की और भाई विशाल की फीस के लिए शैफाली जिन घरों में काम करने जाती, वहां से एडवांस लिया और बाकी पिता ने कर्जा लिया और 10-10 घंटे की पढ़ाई और कोचिंग के सहारे विशाल कामयाब रहा और जेईई क्लीयर होने के बाद अब उसे एनआईटी नागपुर में दाखिले के साथ केमिकल इंजीनियरिंग ब्रांच मिल गई है. 


इसके बाद वर्षा ने घर पर ही बिना कोचिंग के ही सेल्फ स्टडी की और आखिर में नीट क्लीयर कर ली और काउंसलिंग में उसे भी बीडीएस स्ट्रीम मिल गई. इस कहानी के दोनों चमकते सितारों की इंजीनियर और डॉक्टर बनने की कामयाबी की है.


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वर्षा ने त्याग करके भाई के लिए कामयाबी की जमीन तैयार की तो भाई के लिए किए त्याग-तपस्या का पुरस्कार भी उसे मिला और मेहनत-किस्मत के सहारे वर्षा का डॉक्टर बनने का सपना भी बखूबी साकार हुआ. भाईदूज के दिन कामयाबी की ये कहानी ये भी बताती है कि हौंसला-हिम्मत और एक-दूसरे के प्रति त्याग-समर्पण के साथ सपने कच्चीबस्ती में देखे जाएं या किसी महल में पूरे जरुर होते हैं. 


Reporter- KK Sharma