Kota News: हिन्दू संस्कृति और सनातन धर्म के सबसे गौरवमयी पल यानी एक बार फिर रामलला की अयोध्या के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का इंतजार हर किसी को है. इसके लिए न सिर्फ धर्म नगरी यानी अयोध्या वासी बल्कि पूरे देश के लोग उत्साहित हैं. ऐसे में इन ऐतिहासिक पलों का गवाह बनने का इंतजार उन कारसेवकों को भी है, जिन्होंने सन 1992 में उस संघर्ष में खून-पसीना बहाया था और तत्कालीन सरकार की यातनाओं का सहा और विवादास्पद ढांचे के शिखर तक पहुंचने में सफलता हासिल की थी. 


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राम मंदिर आंदोलन में निभाई थी अहम भूमिका


कोटा के रहने वाले एक ऐसे ही कार-सेवक दिलीप शुक्ला ने बताया कि वे सन 1992 में हुए राम मंदिर-बावरी मस्जिद दंगों में बड़ी मुश्किल से छुपते-छुपाते अयोध्या पहुंचे थे और विवादास्पद ढांचे के शीर्ष पर सनातन धर्म का झंडा लहराया था. हालाकिं, इसके बाद उन्हें पुलिस की यातना का शिकार भी होना पड़ा था. वे बताते हैं कि उस समय बहुत खराब माहौल था. हर तरफ दंगे भड़के हुए थे, लेकिन राम भक्तों में गजब का जोश था. हर कोई अपने राम के लिए सड़क पर संघर्ष कर रहा था. 


कारसेवकों को निमंत्रण का इंतजार 


पुराने दिनों को याद करते हुए कोटा निवासी दिलीप शुक्ला ने बताया कि सन 1992 में इन दंगों के दौरान सभी कार-सेवक मुट्ठी भर रेत और एक-एक ईंट लेकर मंदिर की ओर पहुंच रहे थे. रास्ते में पुलिस बार-बार अयोध्या खाली करने की चेतावनी दे रही थी, लेकिन राम भक्तों का हौसला था कि डिगने का नाम नहीं ले रहा था. दिलीप शुक्ला कहते हैं कि आज जब उन कारसेवकों के संघर्ष का सुखद अंत होने जा रहा है और प्रभु श्री राम के बाल स्वरूप की अयोध्या के भव्य मंदिर में स्थापना होने जा रही है, तो सभी देशवासियों और कारसेवकों में भारी खुशी है. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उस संघर्ष में शामिल सभी कार-सेवकों को अगर राम मंदिर के पुनस्थापना में साक्षी बनने का निमंत्रण मिलता है, तो इससे हमारी खुशी और बढ़ जाएगी. 


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