Lok Sabha Election 2024: राजस्थान में 72 सालों में बढ़े 4.56 करोड़ मतदाता, 266 प्रत्याशियों ने चुनावी मैदान में ठोकी ताल
Rajasthan Lok Sabha Election : राजस्थान में 72 साल में सात गुणा बढोतरी के साथ मतदाताओं की संख्या 2024 के लोकसभा चुनाव में 5.35 करोड पहुंच गई हैं. राजस्थान में पहले लोकसभा चुनाव 72 साल पहले मार्च 1952 को हुए थे.
Rajasthan Lok Sabha Election 2024 : राजस्थान में 1952 के बाद से अब तक मतदाताओं की कुल संख्या में लगभग सात गुणा का इजाफा हुआ हैं. 72 साल में सात गुणा बढोतरी के साथ मतदाताओं की संख्या 2024 के लोकसभा चुनाव में 5.35 करोड पहुंच गई हैं. राजस्थान में पहले लोकसभा चुनाव 72 साल पहले मार्च 1952 को हुए थे.
पहले लोकसभा चुनाव में 82 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया. इनमें इनके भाग्य का फैसला राज्य के 76 लाख 76 हजार 419 मतदाताओं में से 37 लाख 05 हजार 956 मतदाताओं ने वोट किया. राज्य में 18 वीं लोकसभा के लिए 5 करोड़ 33 लाख से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर अपना नेता चुनेंगे.
वर्ष 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर 2024 के लोकसभा चुनाव तक पहुंचते-पहुंचते कई महत्वपूर्ण बदलाव हो चुके हैं. सबसे बड़ा बदलाव मतदाताओं की उम्र और उनकी संख्या को लेकर हुआ है. पहले लोकसभा चुनाव के दौरान 21 वर्ष की उम्र तक के लोगों को ही वोट देने का अधिकार था. मगर अब 18 वर्ष तक की आयु के लोग मतदान के लिए पात्र होते हैं.
1952 से लेकर अब तक प्रदेश में मतदाताओं की संख्या में 4.56 करोड़ वोटरों का इजाफा हुआ है. निर्वाचन विभाग के अनुसार वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की कुल संख्या 5.35 करोड़ पहुंच चुकी है. जबकि 1952 में पहले चुनाव के दौरान सिर्फ 76 लाख थी. अब बैलेट पेपर की जगह ईवीएम ने ले ली है.
निर्वाचन विभाग के आंकडों पर नजर डाले तो 72 साल पहले मार्च 1952 हुए पहले लोकसभा चुनाव में 8 हजार मतदान केंद्रों पर 76 लाख 76 हजार 419 मतदाताओं में से 37 लाख 05 हजार 956 मतदाताओं ने वोट किया. जबकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 51 हजार 965 मतदान केंद्रों पर कुल 4.89 करोड मतदाताओं में से 3 करोड़ 24 लाख 76 हजार 481 मतदाताओं ने अपने मत का उपयोग किया.
इसमें एक करोड़ 71 लाख 41 हजार 315 पुरुषों और एक करोड़ 53 लाख 35 हजार 166 महिला मतदाताओं ने अपने मत का उपयोग किया.इस बार लोकसभा चुनाव-2024 के लिए 53 हजार 126 मतदान केंद्रों पर राजस्थान में कुल 5 करोड़ 35 लाख 8 हजार 10 मतदाता पंजीकृत हैं. इनमें 1 करोड़ 40 लाख 907 सर्विस वोटर हैं
वर्ष पुरुष महिला कुल
1952 40,29,537 36,46,887 76,76,419
1957 45,90,632 41,55,094 87,45,726
1962 53,73,858 49,53,738 1,03,27,596
1967 63,34,677 58,41,588 1,21,76,265
1971 69,11,048 63,33,508 1,32,44,556
1977 78,33,211 74,07,221 1,52,40,432
1980 92,31,227 85,33,621 1,77,64,848
1984 1,04,19,163 96,98,122 2,01,17,285
1989 1,36,27,777 1,21,86,738 2,58,14,515
1991 1,40,54,039 1,24,59,463 2,65,13,502
1996 1,60,36,429 1,43,51,928 3,03,88,357
1998 1,56,64,725 1,40,86,675 2,97,51,400
1999 1,63,89,215 1,47,17,273 3,11,06,488
2004 1,81,49,028 1,65,63,357 3,47,12,385
2009 1,95,39,371 1,75,20,640 3,70,60,011
2014 2,26,48,077 2,03,46,580 4,29,94,657
2019 2,55,60,328 2,33,95,485 4,89,55,813
2024 2,77,38,504 2,56,27,971 5,33,67,103
चुनावी मुद्दों में समय के साथ समझ और साधन बढ़ने से काफी बदलाव आया है. हालांकि विकास का मुद्दा हमेशा रहा है. मतदाता जानता है कि चुनाव ही वह अवसर है जब नेता और पार्टियां उसकी कुछ सुनती है, इसलिए हर प्रत्याशी अपने क्षेत्र के विकास की बात करता है. इसके बावजूद चुनावों के बाद मुद्दों में भी बदलाव आता रहता है.
चुनाव आयोग के नए दिशा-निर्देशों के बाद चुनावों में बदलाव देखने में आ रहा है. आज बैनर, पोस्टर, लाउडस्पीकर लगी गाड़ियों की रेलमपेल कम हो गई है.पहले गांवों की चौपालों, पान की दुकानों और चाय की थड़ियों पर चुनावी चर्चा हुआ करती थी. ये चर्चाएं अब मोबाइल और सोशल मीडिया तक सिमट कर रह गई हैं.
अब राजनीतिक दलों के प्रत्याशी और बड़े नेताओं की आवाज में रिकॉर्डेड अपील मतदाताओं के फोन पर सुनाई देने लगी है. शहरी मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया का इस्तेमाल खूब होने लगा है. नारे आज भी इतने शक्तिशाली होते हैं कि इनके प्रभाव से सरकारें बनती-बिगड़ती हैं. वर्तमान में प्रचार-प्रसार का तरीका जहां हाईटैक हुआ है, वहीं सभाओं व रैलियों का स्वरूप भी बदल गया है.
बहरहाल, वक्त के साथ मतदान प्रक्रिया और चुनाव प्रचार में भी लगातार बदलाव होता चला गया. उस दौरान संसाधन सीमित थे. मगर इसके बाद संसाधन बढ़ते गए, जिसके चलते बदलते वक्त के साथ मतदान प्रक्रिया में बदलाव किया गया. चुनाव प्रचार बैलगाड़ी से डिजिटल तक आ गया है.
वर्षों की राजशाही और गुलामी से आजाद होने के बाद दुनिया की निगाहें भारत की ओर थीं. आजाद होने के बाद आंतरिक सरकार तो बन चुकी थी, लेकिन लोगों द्वारा चुनी सरकार का इंतजार था. यह इंतजार 1951-52 में खत्म हुआ, जब देश का पहला आम चुनाव हुआ.