Didwana latest News: राजस्थान में डीडवाना जिले के नावां शहर में कहने को तो उपजिला चिकित्सालय है लेकिन सुविधाओं के लिहाज से शून्य के बराबर है. उपजिला चिकित्सालय क्रमोत होने के बाद पर्याप्त डॉक्टर तो नियुक्त हो चुके हैं लेकिन मरीजों के इलाज हेतु उपकरण, मशीनरी नहीं है. डॉक्टर के रहने व इलाज हेतु कक्ष भी नहीं है और जो है वे जर्जर अवस्था में है. जो चिकित्सालय में रहने वालों को भय दिखा रहे हैं. लाखों रुपए की मशीनरी भवन नहीं होने के चलते धूल फांक रही है.


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शहर के मध्य में स्थित अस्पताल अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाता नजर आ रहा है. गत कांग्रेस सरकार में सीएचसी से क्रमोंत होकर उपजिला का दर्जा दिया गया और चिकित्सकों की नियुक्तियां भी की गई. लेकिन वर्तमान से जिस भवन में अस्पताल संचालित है वह 110 साल पुराना भवन है. जो जर्जर स्थिति में है और कई बार भवन में जगह-जगह दीवारें गिर गई तो कहीं पूरे क्वार्टर ही धराशाही हो गए. इससे पहले अस्पताल में चिकित्सकों की नियुक्ति को लेकर धरने प्रदर्शन सहित बाजार भी बंद हुए और जब अस्पताल में चिकित्सक पर्याप्त मात्रा में हैं, तो यहां की व्यवस्थाएं चरमराई हुई हैं. 


गत कांग्रेस सरकार में अस्पताल के नए भवन हेतु जमीन का आवंटन हुआ और नए भवन निर्माण हेतु 40 करोड़ रुपए की वित्तीय स्वीकृति भी जारी हुई. लेकिन कुछ राजनेताओं द्वारा उक्त भवन के लिए आवंटित भूमि के विरोध में जोधपुर उच्च न्यायालय में वाद दायर कर स्थगन आदेश ले लिया और अस्पताल बनाने का मंसूबा यहां फेल हो गया. नावा का उपजिला चिकित्सालय मात्र इन दिनों रेफरल चिकित्सालय बना हुआ है. 


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वर्तमान में कुल 12 चिकित्सक पदस्थापित हैं लेकिन उनके बैठने के लिए व मरीजों को देखने के लिए पर्याप्त चेंबर नहीं है और ना ही उनके निवास के लिए क्वार्टर है. इसी के साथ पदस्थापित चिकित्सकों के लिए इलाज हेतु जरूरी उपकरणों का अभाव भी बड़ी समस्या बना हुआ है. चिकित्सालय में जगह-जगह दिवारों में दरारें आई हुई हैं, तो कहीं पर आरसीसी उखड़ी हुई है. कमरों की छतों से आरसीसी के सरियां उखड़ कर नीचे गिर चुके कभी भी छत गिर कर बड़ा हादसा कारित हो सकता है. 


नावां उपजिला चिकित्सालय का भवन संपूर्ण रूप से जर्जर हो चुका है. हर तरफ जर्जर अवस्था का आलम इस कदर फैला हुआ है कि यहां रहने वाले कार्मिकों को मौत का डर हर पल सताता रहता है. जिस भवन में चिकित्सक व कार्मिक रहते हैं उनके छत व छज्जे भरभराकर गिर रहे हैं. हाल ही में एक क्वाटर की छत का छज्जा भरभराकर गिर गया गनीमत रही कि उस समय एक कार्मिक उस स्थान से कुछ दूरी पर कार्य कर रहा था. अन्यथा बड़ा हादसा हो सकता था.


जनता को शहर में उपजिला चिकित्सालय होते हुए भी अन्य शहरों में इलाज के लिए जाना पड़ रहा है. राजनीतिक उठापठक में शहर की जनता को कठिन समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है. चिकित्सालय के लिए काफी उपकरण भी इलाज हेतु चिकित्सालय में आए हुए हैं लेकिन भवन नहीं होने के चलते 25 लाख रुपए की लागत की डायलेसिस मशीन व 2 एसी मशीनें स्टोर कक्ष में धूल फांकती नजर आ रही हैं. नावां शहर का उपजिला चिकित्सालय करीब 200 से अधिक गांवों के बीच आता है जंहा हर रोज 300 से 400 मरीज इलाज हेतु आते हैं. 


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साथ ही शहर के मध्य से मेगा हाईवे भी गुजर रही है. जिस पर आए दिन हादसे होते हैं और पर्याप्त संसाधनों के अभाव के चलते घायल मरीजों को रेफर करना पड़ता है. जिससे कई बार समय पर इलाज नहीं मिल पाने से जनहानियां भी घटित हुई है. नावा शहर में नमक का बड़ा कारोबार है. यहां अन्य शहरों के करीब 50 हजार से ज्यादा श्रमिक नमक का कार्य करते हैं. इनकी सुविधा के लिए भी यहां अस्पताल नाकाफी साबित हो रहा है. खुद अस्पताल बीमार स्थिति में है तो बीमार मरीजों का इलाज होना कैसे संभव होगा. चिकित्सक खुद डर के साए में अपना समय बिता रहे हैं.