Jayal : राजस्थान के नागौर के जायल कस्बे में होने वाली कपड़ों की रंगाई-छपाई की ऐतिहासिक कला आज भी प्रसिद्ध है. जिसके चलते कुचामन, सीकर, झुंझुनूं और शेखावटी तक इसकी मांग बढ़ती जा रही है. इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने बताया कि बन्धेज परिधानों में मामा चुनड़ी ,चुनड़ी पोतियां, लाल और पीला पोमचा ,लहरिया ओढ़ना खास प्रसिद्ध हैं.


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प्रत्येक दुल्हन की विदाई के समय ओढ़ी जाने वाली मामा चुनड़ी बनाने वाले हैडलूम कारीगरों को लेकर जायल का नाम आज भी कायम है और शेखावाटी पावरलूम के चलन के बावजूद, जायल की मामा चुनड़ी की मांग आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है.



विशेषकर मुख्य रीति-रिवाजों में उपयोग में लिए जाने वाले इस परिधान से कस्बे के कुछ कारीगर, रंगाई-पुताई करके बनाते हैं और पक्के रंग और आकर्षक पुराने डिजायन के चलते लोगों के दिल में जगह बन चुकी है. जायल के हाथों से बंधेज की चुनड़ी पर पक्के रंग और अच्छे पोत के चलते आज भी जायल क्षेत्र के करीब दस से ज्यादा परिवार प्रदेश में कई जगहों पर इसकी सप्लाई कर रहे हैं.


कारीगर मानते हैं कि हालांकि बंधेज के चलते जोधपुरी साफा से कुछ नुकसान हुआ है,  लेकिन कपड़े की फुलावट और आकर्षक कड़प के चलते उनके बनाए गए परिधान पावरलूम से निर्मित कपड़ों से दुगने भाव में होने के बावजूद डिमांड में हैं. साल में 50 हजार के आस-पास मामा चुनड़ी और बंधेज का साफों की सप्लाई की जा रही है.  जोधपुरी साफा दो सौ रूपये में आसानी से मिल जाता है, लेकिन जायल में निर्मित होने वाला साफा 5 सौ रूपये की दर पर बिकता है और कुचामन क्षेत्र में सबसे ज्यादा और शेखावाटी ओढ़ाना की जायल से भारी मांग है.



मामा की चुनड़ी से जुड़ा है विशेष संयोग
दुल्हन की विदाई पर एक रिवाज के अनुसार नवविवाहिता के विदाई के समय मामा चुनड़ी जाती है जिसे वापस पीहर आने तक उतारा नहीं जाता है और नवविवाहिता के विदाई के समय चौखट पर मामा के द्वारा चुनड़ी ओढ़ाकर विदाई दी जाती है और विशेषकर मारवाड़ और शेखावाटी में इस रिवाज  गांवों में ननिहाल पक्ष की और जब मायरा लेकर आते है. तब मामा चुनरी लेकर साथ आते है. उसके नवविवाहिता को मामा चुनड़ी ओढ़ाकर विदा किया जाता है.


इस चुनड़ी की नागौर के साथ शेखावाटी में भी सप्लाई होती है. बंधेज से तैयार होने वाले परिधानों में मामा चुनड़ी, चुनड़ी पोतिया, लाल और पीला पोमचा, लहरियां ओढ़ना की रंगाई-पुताई के बाद आकर्षक बेल-बूटी के साथ डिजायन उकरे जाता है, जिसके चलते विशेषकर चूरू, सुजानगढ़, झुन्झुनूं, सीकर और मेड़ता क्षेत्र में जायल का ये परिधान प्रसिद्ध है.


रिपोर्टर - दामोदर ईनाणिया


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