Veer Tejaji Maharaj : लोक देवता वीर तेजाजी महाराज को भगवान शिव के प्रमुख ग्यारह अवतारों में से एक माना जाता है, तेजाजी को राजस्थान के साथ साथ मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भी पूजा जाता है. किसान अपनी खुशहाली के लिए तेजाजी महाराज को पूजते हैं और उन्हे कलयुग के सबसे चमत्कारी देवता मानते हैं. स्थानीय मान्यता है कि तेजाजी जिस भोपा के सिर आता है. वो चंबल नदी में डुबकी लगाकर सांप को गले में लटकाकर पानी से बाहर निकले हैं. जिनकी पूजा कर आशीर्वाद लिया जाता है. 
 
क्या है वीर तेजाजी की कहानी
वीर तेजाजी का जन्म नागवंशी जाट घराने में विक्रम संवत 1130 माघ सुदी चौदस के दिन खरनाल गांव में हुआ. तेजाजी के पिता ताहड़जी नागौर जिले के खरनाल के मुखिया थे,जबकि उनकी माताजी का नाम राम कंवरी था. तेजाजी के माता पिता शिव भक्त थे और तेजाजी का जन्म भी नाग देवता की पूजा अर्चना के बाद हुआ था.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बताया जाता है कि तेजाजी का विवाह  झांझर गोत्र के राय मल जाट की पुत्री पेमल से हुआ थआ. उस समय राजस्थान बाल विवाह हुआ करते थे विवाह के सयम तेजाजी की उम्र केवल 9 महीने की थी जबकि पेमल की उम्र 6 महीने की थी.


लेकिन शादी के बाद ही तेजाजी के पिता और पेमल के मामा में किसी बात को लेकर आपस में कहासुनी हो गयी और लड़ाई के दौरान तलवार लगने से पेमल के मामा की मौत हो गयी.


दोनों परिवार दुश्मन हो गये और शादी को भूल गये. बड़े होने पर तेजाजी को अपनी शादी के बारे में जब पता चला तो वो अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी ‘लीलण’ पर सवार होकर अपने ससुराल गए, लेकिन ससुराल पक्ष ने उनको ना पहचानते हुए वापस भेज दिया.


तभी वापस जाते हुए तेजाजी की रास्ते में ही पेमल से मुलाकात हो गयी. लेकिन तभी उन्हे गाय चोरी की सूचना मिली. तेजाजी एक प्रसिद्ध गौभक्त थे. उन्हें ये बात सहन नहीं हुई और वे गाय को वापस लेने के लिए वहां से चल दिए.


रास्ते में उन्होंने देखा कि एक सांप आग में चल रहा है. उन्होंने सांप को आग से बचाया लेकिन वो सांप जोड़े में था जिसके कारण दूसरे सांप ने सोचा कि तेजाजी ने उनके साथी सांप को जला दिया है औऱ अब सांप उनकी तरफ डंसने के लिए चल पड़ा.


 Salasar Balaji : जाट किसान के खेत में प्रकट हुए थे दाड़ी मूंछ वाले हनुमान, दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी


तेजाजी ने सांप को रोक कर उन्हें बताया कि वो गाय को बचाने के लिए जा रहें है उन्हें जाने दों और वचन दिया कि वो गाय को लेकर वापस आएंगे तो सांप उसे डस कर अपना क्रोध शांत कर सकता है.


गाय को छुड़ाने के लिए तेजाजी युद्ध करना पड़ा जिसमें वे काफी घायल हो गए. लेकिन तेजाजी ने अपना वचन निभाया और गाय को वापस छोड़ कर सांप के पास वापस गए . लड़ाई के दौरान तेजाजी के शरीर पर इतने घाव थे कि सांप को कहीं काटने की जगह नहीं मिली. तो तेजाजी ने अपनी जीभ मुख से बाहर निकालकर सांप से कटवाया.


किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को हो गई और उनकी पत्नी पेमल भी उनके साथ सती हो गई. तेजाजी की वचनबद्धता देखकर साँप ने उन्हें वरदान दे दिया.


तभी से वरदान के चलते तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हो गये.  गाँव-गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी रहती है. इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है और तेजाजी की तांत बाँधी जाती है. तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी मनायी जाती है.


 Motidungari Ganesh ji : प्रसाद में मिली मेंहदी से हो जाती है शादी,आता है पहला वैडिंग कार्ड