Ashok gehlot : राजस्थान में इस साल के आखिर में चुनाव है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की अदावत के बावजूद कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापसी करने की कोशिशें कर रही है. हर हाल में सत्ता में आने के लिए सीएम गहलोत ने इस बार कई बड़े ऐलान किए है. बजट रिप्लाई में एक लाख सरकारी नौकरियों की घोषणा हो या प्रदेश में 19 नए जिलों के साथ 3 संभाग सीकर, पाली और बांसवाड़ा बनाना हो. इन दिनों प्रदेश में डॉक्टर प्रदर्शन कर रहे है. राइट टू हेल्थ बिल का विरोध कर रहे है. लेकिन असल में सरकार के खिलाफ हो रहा यही विरोध गहलोत सरकार की संजीवनी है.


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हाल ही में सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चला था. राइट टू हेल्थ संजीवनी है. इस बार राजस्थान सरकार ने चिरंजीवी योजना में मुफ्त इलाज का दायरा 5 लाख से बढ़ाकर 25 लाख रुपए कर दिया है. किसी भी परिवार के लिए 25 लाख तक का मुफ्त इलाज और राइट टू हेल्थ जितना आम लोगों के लिए संजीवनी है. उससे भी कहीं ज्यादा राज्य सरकार के लिए संजीवनी साबित हो सकती है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए भी ये किसी संजीवनी से कम नहीं है.


जयपुर से लेकर जोधपुर जैसे बड़े शहरों और गांव ढ़ाणियों तक. डॉक्टर राइट टू हेल्थ का जितना विरोध करेंगे. ग्रामीण इलाकों तक इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है. जब लोगों को ये पता चलता है कि आखिर राइट टू हेल्थ क्या है और उसका आम लोगों को क्या फायदा होने वाला है. तो आम जनता का सेंटीमेंट भी सरकार के साथ हो जाता है. आम लोग भी डॉक्टरों की मांगों को नाजायज बताने लगे है.


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कुलमिलाकर राइट टू हेल्थ जैसे आम जन के हितों वाले कानून का जितना विरोध होगा. बिना सरकारी खर्चे के, बिना विज्ञापन के इस पर गांव ढ़ाणी तक चर्चाएं शुरू होगी. लोगों को राइट टू हेल्थ से आम जन को होने वाले फायदों का पता लगेगा.  इससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की लोकप्रियता बढ़ेगी. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों में इस बात पर भी चर्चाएं हो रही है कि क्या राइट टू हेल्थ बिल इस बार के चुनावों का सबसे बड़ा मुद्दा होगा. क्या इस राइट टू हेल्थ बिल और चिरंजीवी योजना में 25 लाख तक के मुफ्त इलाज के फैसले कांग्रेस को संजीवनी देंगे. क्या इससे बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेगी.