Rajasthan Politics : आमतौर पर राजनीतिक पार्टियां खुद को संगठनात्मक रूप से लोकतंत्रात्मक बताती हैं और वक्त बे-वक्त इसे साबित करने की कोशिश भी करती हैं. लेकिन कई बार संगठन का लोकतांत्रिक चेहरा दिखाने की यह कोशिश पार्टी में बयानवीरों को भी जन्म देती है. कांग्रेस के साथ भी इन दिनों कुछ ऐसा ही देखा जा रहा है.


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भले ही पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल बयानबाजी पर लगाम लगाने की हिदायत दे चुके हैं, लेकिन मौका मिलने पर पार्टी के नेताओं की जीभ बयान देने के लिए लपलपा ही जाती है. ऐसे में बात अगर सरकार में अपने अधिकारों की हो तो कांग्रेस के बयानवीर कुछ ज्यादा ही मुखर दिखते हैं. राजधानी जयपुर में भी बुधवार को ऐसा ही वाकया दिखा. जब जयपुर हेरिटेज नगर निगम के एक कार्यक्रम में विधायक और हज कमेटी के चेयरमैन अमीन काग़ज़ी ने यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल को आड़े हाथ लिया. अमीन कागजी ने तो यहां तक कह दिया कि अगर धारीवाल सब कुछ कोटा ले जाएंगे, तो क्या? कोटा से ही सरकार बन जाएगी क्या? अमीन कागज़ी ने कहा कि राजधानी की तरफ भी यूडीएच मंत्री को ध्यान देना चाहिए, क्योंकि राजधानी से पूरे प्रदेश में मैसेज जाता है.


अमीन कागज़ी का उदाहरण तो सरकार में अपनी भागीदारी और अपने क्षेत्र के विकास के दर्द के रूप में देखा जा सकता है. लेकिन पिछले दिनों कांग्रेस में दूसरे कई नेता भी बयानवीर के रूप में उभरे हैं. कांग्रेस के ही लोगों का मानना है कि पार्टी के बयानवीरों में मंत्री रामलाल जाट, प्रताप सिंह खाचरियावास, विधायक मुकेश भाकर और खिलाड़ी लाल बैरवा का नाम भी शुमार किया जाता है.


पिछले दिनों रामलाल जाट ने तो एक सप्ताह में दो बार बिना नाम लिए सचिन पायलट पर निशाना साधा. एक बार उदयपुर में उन्होंने पायलट गुट को पार्टी के भीतर कोरोना बताया तो दूसरी बार कहा कि कई नेताओं में दोगलापन है, जो राज्य सरकार के खिलाफ बयान देते हैं जबकि पार्टी आलाकमान के समर्थन में बोलते हैं.


इससे पहले मन्त्री प्रताप सिंह खाचरियावास विधायक दल की बैठक बुलाने को लेकर तो विधायक मुकेश भाकर केवल बजट के दम पर सरकार आने के दावों पर सवाल उठा चुके हैं. पार्टी में बयानों के यह हाल तो तब हैं जब राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल गैरज़रूरी बयान नहीं देने की नसीहत दे चुके हैं. इधर मंगलवार को एक बार फिर प्रदेश प्रभारी सुखविंदर रंधावा ने भी पार्टी विरोधी बयान देने वालों को बुलाकर उनसे बात करने और उन पर कार्रवाई करने की बात कही थी.


दरअसल कांग्रेस नेताओं में बयान वीर बनने की होड़ का कारण शीर्ष नेतृत्व की कमजोरी भी माना जा सकता है. संभवतया पार्टी नेताओं को ऐसा लगता होगा कि जब शीर्ष नेतृत्व कोई कार्रवाई ही नहीं कर सकता तो फिर उसके कहे मुताबिक चलने से क्या फायदा? पार्टी के कई नेता तो दबी जुबान में प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर रंधावा को नख-दंत विहीन शेर मानते हैं. कांग्रेस के लोग तो रंधावा की तरफ़ से एक्शन लिए जाने के बयान पर यहां तक कहते हैं कि जो गरजते हैं वो बरसते नहीं. ऐसे में पार्टी नेताओं का यह नज़रिया मजबूत नेताओं को मुखर कर रहा है तो नये बयानवीरों को भी आंख दिखाने वाले तेवर अख्तियार करने के लिए प्रेरित करता दिखता है.