Sharadiya Navratri: राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर जोलर ग्राम पंचायत में देवाक माताजी का मंदिर श्रद्धा का अनूठा केंद्र है. इस मंदिर का इतिहास और यहां से जुड़ी हुई कहानियां भी बेहद रोचक है. जनश्रुति के अनुसार यहां पहले डाकू, लुटेरे जेल से बचने और भागने के बाद मंदिर में आकर हथकड़ी चढ़ाकर मन्नत पूरी करते थे. हालांकि अब समय के साथ परंपरा बदल गई है लेकिन कई लोग अब लोग अब भी कोर्ट-कचहरी के चक्करों से बचने और निजात पाने के लिए यहां आकर मन्नत मांगते हैं. मान्यता के अनुसार यहां हथकड़ी इसलिए चढ़ाई जाती है कि ताकि जिनके परिजन जेलों में बंद हैं वे वहां से निकल सकें.


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मंदिर में एक हिस्सा ऐसा है, जहां करीब 200 वर्ष पुराना एक त्रिशूल है. उसी त्रिशूल पर देवाक माता को हथकड़ी चढ़ाई जाती है. इस त्रिशूल पर कई साल पुरानी हथकड़ियां, बेड़ियां और लोहे की जंजीरें हैं. माना जाता है कि इस त्रिशूल पर जो हथकड़ी चढ़ी हुई हैं उनमें से कई डेढ़-दो सौ साल पुरानी हैं. जिसके पीछे कई तरह की कहानियां प्रचलित है. 


मंदिर से जुड़ी एक प्रचलित कथा
इस मंदिर से जुड़ी एक प्रचलित कथा है. माना जाता है कि जहां आज देवाक माता का मंदिर है, उस जगह पर पहले काफी घना जंगल हुआ करता था और उस जंगल में डाकूओं का बोलबाला था. ये डाकू यहां माता की पूजा अर्चना करते थे. धीरे-धीरे डाकुओं द्वारा जेल से बचने के लिए हथकड़ी चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई.


जनश्रुति के अनुसार रियासत काल में एक डाकू पृथ्वी राणा देवाक माता का अनन्य भक्त था. वह यहां दर्शनों के लिए आता रहता था. एक बार वह पुलिस के हाथ लग गया. उसे जेल में हथकड़ी पहनाकर रखा गया. इसके चलते वह भाग नहीं पा रहा था. उसने जेल में देवाक माता की मन्नत ली थी कि यदि वह जेल तोड़ कर बाहर आया तो सीधे यहां दर्शन करने आएगा. इस मन्नत को लेकर वह जेल से भागा था. इसके बाद उसने अपनी  बेडिय़ां यहां माताजी के त्रिशूल पर चढ़ाई थी. तब से यह परंपरा चल पड़ी. 


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पहले यह मंदिर एक छोटा सा स्थान था, लेकिन पिछले 10 साल में यहां काफी विकास हो गया. अब इसे काफी विस्तृत रूप दे दिया गया है. यह मंदिर उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़, निंबाहेड़ा, छोटीसादड़ी, प्रतापगढ़, मंदसौर, रतलाम, नीमच के श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. नवरात्रा के दौरान यहां पर विशेष पूजा अर्चना होती है.  शारदीय और चैत्र नवरात्रि में ज्योतिकलश प्रज्ज्वलित किए जाते हैं.


कभी दी जाती थी बलि, अब चूड़ी, बिंदी और मेहंदी चढ़ती है
देवाक माता को काली माता का रूप माना जाता है, यहां पहले मन्नत को लेकर पशु बलि दी जाती थी. इसके बाद इसे बंद करवा दिया गया. अब माताजी के वस्त्र, मेहंदी, चूड़ी, बिंदी और नारियल का चढ़ावा चढ़ाया जाता है.


यहां एक परिक्रमा स्थल बना हुआ है. मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति के शरीर, हाथ, पैर या पीठ में दर्द होता है तो यहां उसे परिक्रमा करवाई जाती है. इसके अलावा भी माताजी के इस मंदिर की काफी महिमा फैली हुई है. इस जंगल में बड़े-बड़े सागवान सहित अन्य कई प्रजातियों के पेड़ भी हैं. लेकिन यहां पर किसी भी तरह के पेड़ को काटने को लेकर सख्त मनाही है. जमीन से 100 मीटर ऊपर पहाड़ पर माताजी विराजमान है. यहां तक पहुंचने के लिए धरियावद रोड से डामर की पक्की सडक़ है. इसके बाद आगे करीब 500 मीटर का क्षेत्र काफी ऊंचाई पर है, इस वजह से खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है.


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