Pratapgarh: आदिवासी बाहुल्य जिले प्रतापगढ़ के पीपलखूंट उपखंड मुख्यालय के सरकारी स्कूल में अंग्रेजी के विषय के व्याख्याता और फुटबॉल प्लयेर रहे गौतम बूज ने दिल की बिमारी होने और गुजरात के डाक्टरों की कही एक बात ने गौतम को इतना प्रेरित कर दिया की इलाज के बात प्रतापगढ़ आते ही गौतम ने अपनी आठ बीघा की जमीन और जैविक खेती शुरू कर दी. 


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आज इसी जैविक खेती की मदद से पौष्टिक सब्जिया और फसलों से घर वालों के स्वास्थ्य का ध्यान रख रहे है और 5 से 6 लाख रुपए साल की कमाई भी कर रहे है. गौतम जैविक खेती के साथ साथ वर्मीकम्पोस्ट को भी तैयार करते है ताकि फसलों में किसी भी प्रकार के अजैविक दवाइयों का इस्तमाल ना करना पड़े. शुरुआत छोटे पैमाने पर की, लेकिन अब आठ बीघा में अलग-अलग फसलें उगा रहे है. इनमें शिमला मिर्च, तरबूज, खरबूज, टमाटर, लौकी, बैंगन आदि शामिल हैं. गौतम बूज सब्जियों और फलों के साथ साथ पारम्परिक खेती भी करते है. घर में इस्तमाल के लिए काले गेंहू और अन्य फसलों का उत्पादन भी अपने खेत से ही करते है.


जैविक खेती की ऐसे हुई शुरुआत


जिले के पीपलखूंट उपखंड के रहने वाले गौतम बूज एक फुटबॉल प्लयेर के साथ साथ पीपलखूंट के सरकारी स्कूल में अंग्रेजी के व्याख्याता भी है. इसके साथ साथ इसी बीच, उन्होंने खेती करने का भी मन बनाया. जीवन में ऐसा मोड़ आया, जब उनकी तबीयत खराब हुई. उनको गुजरात के अहमदाबाद के एक अस्पताल में अपने हार्ट के इलाज लिए जाना पड़ा और वही से शुरू हुई गौतम की जैविक खेती करने की कहानी. 


गौतम अहमदाबाद में कुछ डाक्टर के संपर्क में आए, जिन्होंने बताया कि केमिकलयुक्त खेती से कैंसर और अन्य कई गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है. उनकी आंखें खुली और उन्होंने जैविक खेती करने का मन बनाया. अहमदाबाद में डाक्टर ने उन्हें बताया की राजस्थान में इतनी खेती होती है इसके बाद भी आप बीमार होकर इलाज के लिए अहमदाबाद आते हो जैविक खेती क्यों नहीं करते बस डाक्टर का यह करना ही गौतम के लिए प्रेरणा का काम कर गई और उन्होंने घर पंहुचते ही जैविक खेती करना शुरू कर दिया और आज वह इसी खेती से साल के लाखों रुपए कमा रहे है और कई किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित भी कर रहे है.


पहली बार में कम, बाद में बढ़ने लगा उत्पाद


गोतम बूज की मानें तो शुरुआती एक दो साल में जैविक खेती से कम उत्पादन हुआ. बाजार में उसका उचित मूल्य भी नहीं मिल पाया, फिर लोगों को इससे जोड़कर जैविक खेती के प्रति जागरूक करने लगे. इसके बाद लोगों ने जैविक के प्रति रुचि दिखाई. अपने ऑर्गेनिक उत्पाद के थोड़े से प्रचार से बाजार में भी अच्छे दाम मिलने लगे. फसलों के उतपादन में भी भारी परवर्तन देखा गया पारम्परिक खेती का उत्पाद तीन गुना तक बढ़ गया.


हर सीजन में 25 से 30 हजार खर्च, लाखों में कमाई


गौतम अपने आठ भीगा के खेत में लीची, आलू, टमाटर, भिंडी. तौरी, बैंगन, खरबूजा, तरबूज व अन्य करीब 20 किस्म की खेती शामिल हैं. उन्होंने बताया कि हर सीज़न में 20 से 25 हजार का खर्चा आता है, जिसमें जैविक खाद व लेबर खर्च शामिल हैं. इसके अलावा मार्केट के लिए पैकेजिंग, वाहन, डिलीवरी का चार्ज आता है. यानी सीज़न का कुल खर्च 40 से 45 हजार तक पहुंच जाता है. इनकम सीज़न पर निर्भर रहती है. अगर सबकुछ सही रहे तो साल की चार से पांच लाख की इनकम भी प्राप्त हो जाती है. उन्होंने बताया कि वो मिश्रित खेती करते हैं. एक क्रोप में नुक़सान हो तो दुसरी क्रोप से आय बनी रहे, ताकि आर्थिक संकट पैदा न हो.


क्षेत्र के किसानों को भी जैविक खेती के लिए कर रहे प्रेरित


गौतम बूज अपनी जैविक खेती की शुरआत के साथ साथ क्षेत्र के अन्य किसानों को भी इसके प्रति जागरूक कर रहे है. उनके खेत पर जैविक खाद तैयार की जाती है. वहां समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें कृषि अधिकारियों और विज्ञानिकों को बुलाकर किसानों को जैविक खाद निर्माण व जैविक खेती की ट्रेनिंग देते हैं. इसके अलावा गौतम ने अपने क्षेत्र के 23 किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग देकर उनकों भी अपनी इस मुहीम में जोड़ लिया है. क्षेत्र के 23 किसान और अब गौतम के साथ साथ जैविक खेती कर रहे है.


वर्मी कम्पोस्ट बनाकर भी कमाते हैं लाखों रुपए


किसानी के साथ साथ घर में गौतम ने दो गाय और एक भैंस को भी पाल रखा है. खेती के लिए वर्मी कम्पोस्ट भी वह घर पर भी तैयार करते है. हर साल 300 से 400 बैंग वर्मी कमोस्ट का उनका उत्पादन है. एक बैंग में 50 किलों वर्मी कम्पोस्ट रहता है. हर साल अपने खेत में 200 बैग के इस्तमाल के बाद बचे हुए वर्मी कम्पोस्ट को दस रुपए प्रति किलों के हिसाब से वह अन्य किसानों को बेच दते है ताकी वह भी खेतों में जहरीली दवा की जगह देशी खाद का इस्तमाल करें. वर्मी कम्पोस्ट से भी गौतम साल के लाख रुपए की कमाई कर लेते है. इसके साथ ही आसपास के किसानों को एक ट्रॉली गोबर के बदले भी वह 100 से 150 किलों जैविक खाद देते है.


Reporter- Tribhuvan Ranga