Pratapgarh: राजस्थान के प्रतापगढ़ के वन क्षेत्र वन्यजीवों की संख्या में लगातार कमी आती जा रही है. वन विभाग के वन्य जीव गणना के आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते नजर आते हैं. वहीं, अब शहरी क्षेत्रों में निवास करने वाले वन्यजीव भी शिकारियों की पहुंच से दूर नहीं है. शहरी क्षेत्र के आसपास रहने वाले वन्यजीवों का भी शिकारियों द्वारा आए दिन शिकार किया जा रहा है. 


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कहने को तो प्रतापगढ़ जिले का 41% भूभाग वन क्षेत्र में आता है, लेकिन इस वन क्षेत्र में वन्यजीवों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. वन्यजीवों की कम होती संख्या के पीछे एक प्रमुख कारण वन क्षेत्रों में मानवी आबादी का बढ़ना है. साथी हीं, इन वन्यजीवों का शिकार भी एक बड़ा कारण माना जा सकता है. शिकारियों के पंजे में फंसे इस बिजली की हालत को देखकर सहसा ही अंदाजा लगाया जा सकता है, शिकारी कितने क्रूर तरीके से इन वन्यजीवों का सफाया करने में लगे हुए हैं. 


शिकारी वन्य जीव की खाल हड्डियां और मांस के लिए इनका शिकार करते हैं. पहले भी जिले में पैंगोलिन जंगली सूअर, मोर सहित अन्य कई वन्यजीवों के शिकार के मामले सामने आ चुके हैं. कुछ मामलों में वन विभाग में कार्रवाई कर शिकारियों को हथियारों के साथ गिरफ्तार भी किया, लेकिन उसके बाद भी इन घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है. 


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शहर के पास स्थित जैन समाज के श्मशान में शिकारियों के फंदे में फंसे बिच्छू की सूचना जब लोगों को मिली तो वह भी वहां पहुंच गए. लोगों के वहां पहुंच जाने से शिकारी बिच्छू को अपने साथ नहीं ले जा पाए और मौके पर पहुंचे वन विभाग के कर्मचारियों ने बिच्छू की जान बचा ली. क्षेत्र के आसपास के लोगों का कहना है कि पहले श्मशान में बड़ी संख्या में मोर नजर आते थे, लेकिन अब मोरों की संख्या गिनती की रह गई है. 


प्रतापगढ़ के वनक्षेत्र से कम होती वन्यजीवों की संख्या को हम नहीं कहते यह वन विभाग के आंकड़े खुद बयां करते हैं. 2019 में हुई वन्यजीव गणना के बाद कोरोना काल के चलते 2 साल तक वन्यजीवों की गणना नहीं हो पाई थी, लेकिन इस साल हुई वन्यजीवों की गणना मैं चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. वन्यजीवों की गणना में जितने भी वन्यजीवों की गणना हुई है, उनमें इक्का-दुक्का वन्यजीवों को छोड़कर बाकी सभी की संख्या में कमी आई है. 


Reporter- Vivek Upadhyay


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