Rajsamand News : जिला कलेक्टर की पहल लाई रंग, 32 हजार से अधिक बच्चे एनिमिया मुक्ति की राह पर
Rajsamand News : जिले में संचालित आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पंजीकृत बच्चों को एनिमिया से मुक्त करने के लिए जिला कलक्टर नीलाभ सक्सेना की पहल अब रंग लाने लगी है. जिले के केन्द्रों पर पंजीकृत 6 माह से 59 माह के 88 हजार 666 बच्चों की हेल्थ स्क्रीनिंग की गई.
Rajsamand News : राजसमंद कलेक्टर नीलाभ सक्सेना की पहल पर जिले में आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पंजीकृत 6 माह से 59 माह के 88 हजार 666 बच्चों की हेल्थ स्क्रीनिंग कर अनिमिया से ग्रस्त बच्चों को माइल्ड एनिमिक, मोडरेट एनिमिक एवं सिवियर एनिमिक श्रेणियों में वर्गीकृत कर उनको एनिमिया से मुक्त करने के लिये विशेष अभियान संचालित किया गया है. बता दें कि कलेक्टर नीलाभ सक्सेना के आदेशानुसार कार्ययोजना के तहत सर्वप्रथम बच्चों का सर्वे कार्य 15 जून 2022 से लेकर 22 जून 2022 तक आंगनबाडी कार्यकर्ता द्वारा 6 माह से लेकर 59 माह के बालकों का सर्वे किया गया और बालकों की सूचीयां बनाई गई. इसी योजना के तहत 27 जून 2022 से लेकर 15 जुलाई 2022 तक 1167 आंगनबाड़ी केन्द्रों पर मेडिकल विभाग द्वारा लेब टेकनिशियन, एएनएम एवं आशा द्वारा हिमोग्लोबिन जांच मशीनें तैयार कर रजिस्टर्ड समस्त बच्चों की हिमोग्लोबिन जांच की गयी.
इसके साथ ही माह जुलाई से लेकर 31 दिसम्बर 2022 तक सभी बच्चों को दो लाख आईएफए सिरप एवं एक लाख एलब्डाजोल सिरप की दवाइयों का वितरण आंगबाड़ी केन्द्रों पर चिकित्सा विभाग द्वारा करवाया गया. उक्त दवाइयों को 6 माह से लेकर 59 माह के बालकों को एएनएम, आशा और आंगनबाडी कार्यकर्ता द्वारा 6 माह तक बालकों को पिलायी गई. इस अभियान के तहत कलेक्टर नीलाभ सक्सेना के मार्गदर्शन में मेडिकल विभाग के सीएमएचओ डॉ. प्रकाश चन्द्र शर्मा, डिप्टी सीएमएचओ डॉ. तारा चन्द्र, उपनिदेशक महिला एवं बाल विकास विभाग एनएल मेघवाल द्वारा एवं मेडिकल तथा आईसीडीएस के लगभग 2500 आगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा, एएनएम, चिकित्सक, सीडीपीओ, बीसीएमओ, महिला पर्यवेक्षक, डीसी, बीसी द्वारा उक्त कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी निभाई गई. तो वहीं इस संदभ्र में उपनिदेशक आईसीडीएस एनएल मेघवाल का कहना है कि अभियान के लिये सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर एनिमिया जांच शिविरों का आयोजन किया गया जिसमें चिकित्सा विभाग की टीमों द्वारा सभी बच्चों के हिमोग्लोबीन की जांच की गई. जांच में 32 हजार 505 बच्चे एनिमिया से ग्रस्त पाये गये थे, जिनमें 16 हजार 477 बच्चे माईल्ड एनिमिक यानि हिमोग्लोबीन स्तर 10 से 10.9 पाया गया, 14 हजार 998 बच्चे मोडरेट एनिमिक यानि इन बच्चो के रक्त में हिमोग्लोबीन स्तर 7 से 9.9 पाया तथा 1 हजार 30 बच्चे सिवियर एनिमिक यानि इन बच्चों के रक्त में हिमोग्लोबीन का स्तर 7 से कम पाया गया.
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सभी एनिमिक बच्चों का नियमित मॉनिटरिंग के साथ समुदाय स्तर पर उपचार शुरू किया गया जिसके तहत सभी बच्चों को आईएफए की दो दो सिरप व एल्बेंडाजॉल टेबलेट चिकित्सकीय गाईडलाइन के अनुसार दी गई तथा परिजनों को बच्चों को दवाओं की खुराक नियमित देने के लिये समझाया गया. सभी बच्चो का 190 से 180 दिन तक फोलोअप जांच की गई जिसमें उनकी स्थिति में सुधार आंका गया. गंभीर अनीमिया से ग्रस्त 1 हजार 30 बच्चों को नजदीकी उच्च चिकित्सा संस्थान पर रेफर किया गया जहां उनको चिकित्सकीय जटिलता वाले 182 बालकों एमटीसी रेफर किया शेष 848 बालकों उपचार के साथ ही निःशुल्क दवाईयां यथा विटामिन, आईएफए सिरप आयरन, कैल्षियम, अल्बेडाजोल दी गई. इन बच्चों के लिये अतिरिक्त पोषाहार की व्यवस्था करने के साथ ही आशाओं के माध्यम से इन बच्चो की नियमित मॉनिटरिंग के साथ ही घर में साफ-सफाई एवं विटामिन सी युक्त आहार के उपभोग के लिये परिजनों को प्रेरीत किया गया. जिसके कारण अब सभी बच्चे स्वस्थ होकर अनिमिया से मुक्ति की राह पर है. तो वहीं द्वितीय चरण के दौरान 7 ब्लॉक के लगभग 21119 बालकों की हीमोग्लोबिन जाँच करवाई गयी जिसमें से 19201 बच्चे सामान्य पाये गये तथा मात्र 1928 अनिमिक पाए गए जो कि पूर्व के 44 प्रतिशत अनिमिक थे उसमें से सेम्पल सर्वे के अनुसार मात्र 9 प्रतिशत अनिमिक ही पाए गए. अनिमिया मुक्त राजसमंद अभियान के तहत 6माह से 59 माह के बालकों में अनिमिया का स्तर 44 प्रतिशत से गिरकर मात्र 9 प्रतिशत ही रहा है अतः 35 प्रतिशत अनिमिक बालकों में सुधार हुआ है जो कि अभियान की उपलब्धि रही है. बता दें कि अभियान वर्तमान में भी जारी है.
क्या होता है एनिमिया
अनीमिया एक ऐसा रोग है जिसमें बच्चों के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है, जिसके चलते उत्तको तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है. इसके कारण बच्चों के शारिरीक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर विपरीत असर पड़ता है. इसका मुख्य लक्षण शरीर में कमजोरी और थकावट रहना, त्वचा का पीली पड़ना, बार-बार सिरदर्द होना, चिड़चिड़ा व्यवहार होना प्रमुख है. लक्षणों के नजरअंदाज करने पर समय पर उपचार नहीं करने पर इसके गंभीर और घातक दुष्प्रभाव बच्चों को भविष्य में भुगतने पड़ सकते है.