Rajsamand news: पर्यावरण जीवन की वे इकाई है, जिसके कारण पृथ्वी पर जीव जन्तुओं का अस्तित्व है. ये जीवन की वो नींव है, जिसकी माता प्रकृति है. प्रकृति ने मनुष्य को सब कुछ दिया, लेकिन बदले में हम उसे क्या दे रहे हैं. ये एक चिंतनीय सवाल है, बता दें कि गत पांच वर्षों से आने वाली पीढि़यों की सांसें संजोने के लिए राजसमन्द जिले के देवगढ़ में महिलायें सामाजिक कार्यकर्ता भावना पालीवाल के मार्गदर्शन में पर्यावरण वॉरियर्स बन संरक्षण का अनूठा कार्य कर रही है. ये महिलाए बरसात आने से पहले हजारों सीड बॉल तैयार करती है, ताकि ये बीज बरसात में पौधों का आकार लेकर बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का स्त्रोत बने. 


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एक माह पूर्व हजारो सीड्स बॉल तेयार करते है और हर वर्ष की भांती दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रो में पैदल पैदल कच्चे पगडंडी मार्ग घने जंगल से गुजरते हुए 800 से अधिक सीढीया चढ़ कर 2500 फीट अरावली की दूसरी सबसे ऊंची शिखर के सेंडमाता मंदिर पर पहुंच कर जंगल और पहाडियों की चारो दिशाओ में ऊंचे इलाकों पर जहा पहुंच नहीं थी वहा गुलेल के माध्यम से बीजो की गेंद को छोड़ा और और कई जगह पर खड़ा खोद कर सीड्स बॉल को अन्दर दबा दिया. सामाजिक कार्यकर्ता भावना पालीवाल ने बताया कि पौधरोपण में आसानी और खर्च भी कम, दुर्गम क्षेत्रों में जाने की जरूरत नहीं, गुलेल के जरिए पौधरोपण वाले स्थान पर फेंके जा सकते हैं.


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सीड बॉल मिट्टी और खाद को मिलाकर बनाया जाता है. इसके अंदर विभिन्न प्रजाति का एक बीज भर दिया जाता है, चूंकि उर्वरक और मिट्टी से बने बाल नुमा गोले में रख दिया जाता है. इसमें नमी के चलते बीज में धीरे-धीरे अंकुरण हो जाता है, जो बाद में पौधा बन जाता है. इसे बरसात के दिनों में जंगलों में छिड़क दिया जाता है, जो जंगल को हरा-भरा और घना कर देता है.


 
एक बॉल में कई बीज
एक बॉल में कई बीज पौधों के होते हैं, जो प्राकृतिक तरीके से उगते पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्रों में पौधारोपण कठिन है, ऐसे में यह तकनीक अपनाई गई है. जिनमे मुख्य तौर पर पीपल, बबूल, रोहिडा, अमलताश, करंज, बड़, नीम, शीशम तथा जामुन आदि के बीज थे. छिडक़ाव से पहले इन सीड्स बॉल को भिगोकर रखा गया, ताकि थोड़ी सी भी मिट्टी मिलते ही यह बीज जड़ पकड़ लें, इस प्रकार इस वर्ष आठ हजार से अधिक सीड बॉल तैयार की गई, अभी तक मंडल की महिलाओ द्वारा साठ हजार से अधिक सीड्स बॉल बनाकर जंगलो में छिडकाव किया जा चुका है.