लम्पी स्किन डिजीज की राजसमंद जिले में स्थितिः लगभग 14 हजार गोवंश रोग से ग्रसित, 441 गोवंश की हुई मृत्यु
डॉ. अरोड़ा ने मीडिया को बताया कि वर्तमान में जिले में 800 से 1000 गोवंश प्रतिदिन बीमारी से संक्रमित हो रहे हैं. यह संक्रमण से होने वाला रोग है जो 7 से 15 दिन में पूर्ण ठीक हो जाता है. राजसमंद कलेक्टर नीलाभ सक्सेना के निर्देशानुसार शीघ्र ही 20,000 होम्योपेथिक दवाई किट जिला स्तर से जिले के पशुपालकों को उनके बीमार पशुओं के लिए उपलब्ध करवाई जायेगी जो कि इस बीमारी के उपचार में सहायक सिद्ध होगी.
Rajsamad: राजसमंद जिले में गोवंश में वर्तमान में चल रही लम्पी स्किन डिजीज से अब तक लगभग 14 हजार गोवंश इस रोग से ग्रसित हुए हैं, जिनमें से लगभग 3 हजार पशु उपचार उपरान्त स्वस्थ हो चुके है एवं 441 गोवंश की मृत्यु हुई है. पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. अजय अरोड़ा ने मीडिया को यह जानकारी दी है. डॉ. अरोड़ा ने बताया कि राजसमंद जिले में जिला प्रशासन एवं पशुपालन विभाग के सहयोग से प्रत्येक पंचायत समिति पर 1000 औषधि किट उपचार के लिए दिये गये. जिन्हें ग्राम पंचायत स्तर से वितरित किया जा रहा है. प्रत्येक किट में 3 तरह की गोलियां हैं जो कि इस वायरस बीमारी से ग्रसित पशु के पूर्ण उपचार के लिए पर्याप्त हैं. उन्होंने बताया कि आने वाले दिनो में और भी औषधि किट उपलब्ध करवायें जायेंगे साथ ही इसके अलावा अन्य औषधि की आवश्यकता नहीं है.
डॉ. अरोड़ा ने मीडिया को बताया कि वर्तमान में जिले में 800 से 1000 गोवंश प्रतिदिन बीमारी से संक्रमित हो रहे हैं. यह संक्रमण से होने वाला रोग है जो 7 से 15 दिन में पूर्ण ठीक हो जाता है. राजसमंद कलेक्टर नीलाभ सक्सेना के निर्देशानुसार शीघ्र ही 20,000 होम्योपेथिक दवाई किट जिला स्तर से जिले के पशुपालकों को उनके बीमार पशुओं के लिए उपलब्ध करवाई जायेगी जो कि इस बीमारी के उपचार में सहायक सिद्ध होगी. इस बीमारी में पशुपालकों को अपने बीमार पशुओं को बाहर चरने के लिए नहीं छोड़ने चाहिये व बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए एवं उनके खाने और पीने के बर्तन अलग रखने चाहिए. इसके साथ ही बाडे़ की नियमित रूप से साफ-सफाई करनी चाहिए एवं इसमें मक्खी एवं मच्छर मारने हेतु दवा का छिड़काव करना चाहिए तथा बाड़े को सुखा रखना चाहिए.
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पशुओं के बाड़े में प्रत्येक दिन सुबह-शाम नीम की पत्तियां, कपूर एवं गुगल द्वारा धुंआ करना चाहिए. बीमार पशु की मृत्यु होने पर उसका निस्तारण जमीन में 2 मीटर गहरा गड्ढा खोदकर चूना एवं नमक के साथ करना चाहिए. आमजन एवं पशुपालक स्वयं के स्तर से हल्दी, काली मिर्च, जीरे का मिश्रण का उपयोग कर बीमार पशुओ को दे सकते हैं, जिससे बीमारी से ग्रसित पशुओं की इम्यूनिटी में सुधार हो सके. साथ ही विटामीन- सी के रूप में नींबू का उपयोग भी इस बीमारी के उपचार में किया जा सकता है.