Sawai Madhopur News: मांडणा कला की आखिरी सांसें: आधुनिकता के बीच लुप्त हो रही यह पारंपरिक कला
आधुनिक प्रतिस्पर्धा और लगातार बदलते परिवेश में मांडणा कला अब धीरे-धीरे लुप्तप्राय हो गई है. आधुनिक युग में मांडणा कला को जीवित रखने वाले लोग महज चंद ही बचे हैं . जिन्हें भी संरक्षण की पूरी दरकार है. दिवाली के अवसर पर मांडणा कला अब गांवो में भी बहुत कम देखने को मिल रही है.
Sawai Madhopur News: आधुनिक प्रतिस्पर्धा और लगातार बदलते परिवेश में मांडणा कला अब धीरे-धीरे लुप्तप्राय हो गई है. आधुनिक युग में मांडणा कला को जीवित रखने वाले लोग महज चंद ही बचे हैं . जिन्हें भी संरक्षण की पूरी दरकार है. दिवाली के अवसर पर मांडणा कला अब गांवो में भी बहुत कम देखने को मिल रही है. धीरे-धीरे अब यह विलुप्ति के कगार पर है.
एक वह दौर था जब अधिकतर गांवों तथा शहरों में दिवाली के अवसर पर कच्चे मकानो की गोबर तथा मिट्टी से लिपाई की जाती थी. महिलाएं दिवाली के एक माह पूर्व से ही घरों को सुंदर बनाने के काम में जुट जाया करती थी. गोबर तथा मिट्टी एकत्रित कर समूचे घर आंगन की लिपाई की जाती थी और फिर उसके सूखने के बाद खड़ी गेरू आदि मिट्टी का घोल बनाकर सुंदर-सुंदर मांडने घर के आंगन तथा मकान की दीवारों पर उकेरे जाते थे. जिससे न सिर्फ घर आंगन की शोभा में चार चांद लगते थे बल्कि कम खर्चे में रंग रोगन भी हो जाया करता था.
यहां तक की पक्के मकानो में भी मांडने मांडे जाते थे . लेकिन लगातार समय के बदलते परिवेश और आधुनिक चकाचौंध व प्रतिस्पर्धा के चलते अब यह कला गौण हो गई है. आधुनिक युग में कच्चे मकान की जगह अब पक्के मकान हो गए हैं तथा विद्युत आदि उपकरणों की सहायता से सजावट की जाने लगी है. ऐसे में मांडणा कला धीरे-धीरे दम तोड़ रही है .बहुत कम लोग हैं जिन्होंने इस कला को आज भी जीवित रखा है .
मांडणा कला पूरी तरह पर्यावरण तथा प्रकृति से परिपूर्ण एक कला रही. हालांकि आज भी मांडणा कला की कृतियों को बड़े ही चाव के साथ देखा जाता है लेकिन उन कलाकारों के संरक्षण की ओर मददगारों के हाथ नहीं पहुंच पा रहे हैं. सरकारी संरक्षण की भी दरकार कलाकारों को यह कला छोड़ने हेतु मजबूर कर रही है.
मांडणा कला के अंतर्गत बनाए जाने वाली कलाकृतियां अपने आप में देखते हुए ही बनती है.सफेद खड़ी, लाल मिट्टी आदि से रंग-बिरंगे फूल पत्तियां, मोर, सूरज चांद, सीनहरी, वन्यजीव आदि चित्र हर किसी का मन मोह लेते है. लेकिन आधुनिकता की दौड़ और संरक्षण के अभाव में भविष्य में यह मांडणा कला महज कागज की तस्वीरों में ही सिमट कर रह जाएगी इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता.
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