Trinetra Ganesh Temple: देवों के देव यानी महादेव जिनको त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्र धारी भी कहा जाता है. पुराणों में भगवान शंकर के माथे पर एक तीसरी आंख होने का उल्लेख है और उस आंख से भगवान शिव सब कुछ देख सकते हैं जो आम आंखों से नहीं देखा जा सकता. कहते हैं कि जब वे तीसरी आंख खोलते हैं तो उससे बहुत ही ज्यादा ऊर्जा निकलती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के अलावा यह तीसरा नेत्र किसी और के पास भी मौजूद है जिसका एक अलग ही महत्व है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हिंदू धर्म में किसी भी शुभ काम से पहले भगवान गणेश की पूजा का विधान माना जाता है. प्रथम पूज्य गणेश के लिए लोगों की आस्था का एक केंद्र रणथंभौर में भी मौजूद है. राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले (Sawai madhopur) से 12 किलोमीटर दूर रणथंभौर किले में स्थित त्रिनेत्र गणेश का मंदिर हजारों साल पुराना है, जिसका निर्माण 10वीं सदी में रणथंभौर के राजा हमीर ने करवाया था.


रणथंभौर (Ranthambore) दुर्ग में स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर पूरे विश्व में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां हर वर्ष करोड़ों की संख्या में भगवान गणेश को चिट्टियां और निमंत्रण कार्ड भेजे जाते हैं. भगवान गणेश को आने वाले निमंत्रण पत्रों पर रणथंभौर गणेश जी का पता भी लिखा जाता है और डाकिया इन पत्रों को श्रद्धा और सम्मान से मंदिर तक पहुंचाते हैं, जिन्हें मंदिर के पुजारी भगवान गणेश को पढ़कर सुनाते हैं.


बताया जाता है कि इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. 'गजवंदन्म चित्यम' नामक ग्रंथ में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णन किया गया है. मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी के रूप में गणपति को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की समस्त शक्तियां गजानन में निहित हो गई और वह त्रिनेत्र धारी बन गए.


बताया जाता है कि रणथंभौर के राजा हमीर ने युद्ध के दौरान अपने स्वपन में गणेश जी को देखा और उन्हें आशीर्वाद दिया और राजा की युद्ध में विजय हुई और उन्होंने किले में मंदिर का निर्माण करवाया. पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां श्री गणेश अपने पूर्व परिवार दोनों पत्नी रिद्धि और सिद्धि, दोनों पुत्र शुभ और लाभ के साथ विराजमान हैं, यही नहीं यहां रोज 10 किलो से ज्यादा पत्र भी आते हैं.


इतना ही नहीं बल्कि इस मंदिर के बारे में रामायण में भी उल्लेख मिलता है. रामायण काल और द्वापर युग में भी यह मंदिर था. माना जाता है कि भगवान राम ने लंका की ओर कूच करते समय भगवान त्रिनेत्र गणेश जी का अभिषेक इसी रूप में किया था, इसलिए यह मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. 


यह भी पढ़ें - 


सैनी माली आरक्षण मामला: पर्यटन मंत्री ने नहीं दी आंदोलनकारियों को कोई चेतावनी या धमकी


अपने जिले की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें