Tonk News: ऐतिहासिक कंकाली माता मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ मातारानी के दर्शन करने आती है. लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि यहां पर विराजमान मां कंकाली विकराल रुप में विराजमान है, जो रक्तबीज नामक राक्षस का वध करने और गुस्से में भगवान शिव के ऊपर पांव रखने की पौराणिक कथा की याद याद दिलाती है.

 

मंदिर की प्रतिमा की प्रतिमा 300 साल पहले बमोर गेट के पास स्थित पहाड़ी पर विराजमान थी जहां 1000 साल पहले से नागा साधुओं द्वारा उनकी आराधना की जाती थी. बमोर गेट की करीब 150 फ़ीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह पुराना खंडहर नुमा ढांचा टोंक की स्थापना से भी पहले का है, जहां वर्तमान में गांधी गौशाला के पास विराजमान मां कंकाली पूजी जाती थी. आज यह हरणाजति के नाम से जानी है लेकिन उस समय नागा साधुओं की यह तपोस्थली (मठ) हुआ करता था. 

 

उस समय आसपास बियावान जंगल के बीच स्थित इसी पहाड़ी के एकांत वातावरण में मां काली के उपासक नागा साधु तपस्या करते थे, आज यह माता वर्तमान कंकाली माता मंदिर विराजमान हैं जिसके विराजमान होने की भी कहानी है, बहरहाल वर्तमान मंदिर मे अपनी चार बहनों चामूंड़ा, बिजासण, ब्रह्माणी और दुर्गामाता के साथ विराजमान मां कंकाली (कालिका) दर्शन करने वैसे तो सालभर श्रद्धालु आते है और प्रात:कालीन व संध्या में आरती में काफी संख्या में लोग शामिल होते है. लेकिन नवरात्रि के समय यहां की रौनक काफी बढ़ जाती है. यहां विशेष रुप से मातारानी को हलवा-पुआ-पुडी और खीर का भोग लगाया जाता हैं.

 

मंदिर पूजारी व पुराने जानकार बताते है नागा साधुओं ने 1 हजार साल से पहले उक्त पहाड़ी को तपस्या स्थली बनाया था. शुरुआत में तो लोग बियावान जंगल की वजह से वहां नहीं आते, क्योंकि नागा साधुओ की तपोभूमि पर जाने की हिम्मत किसी मे नही होती थी, लेकिन धीरे धीरे उस समय टोंक परकोटे में स्थित वर्तमान पुरानी टोंक क्षेत्र के श्रद्धालु दर्शन के लिए आने लगे.

 

कंकाली माता मंदिर में विराजमान प्रतिमा मां कालिका के विकराल रुप का है, जिसपर वह भगवान शिव पर सवार दिखाई देती है. लेकिन मातारानी के होने वाले अलग-अलग स्वरुपों के श्रंगार के कारण प्रतिमा के असल रुप से लोग अंजान है. पौराणिक कथानुसार रक्तबीज नामक राक्षक का अंत करने के बावजूद महाकाली (मां कालिका) का क्रोध खत्म नही हुआ, जिस सभी दिव्य शक्तियां शांत नही कर सकी. क्रोश का शांत करने के लिए भगवान शिव उनके चरणों में आकर लेट गए थे. इसी कथानुसार कंकाली माता मंदिर में मां कालिका के विकराल रुप की प्रतिमा स्थापित की गई.

 

ऐतिहासिक कंकाली माता मंदिर में सेवा-पूजा करने वाले परिवार के सदस्य और मंदिर पुजारी दुर्गापुरी गोस्वामी का कहना हैं कि पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक जाने वाले दुर्गम रास्ते के कारण 100 फीट नीचे और करीब 300 मीटर दूरी पर खाली मैदान पर स्थापित करवा दिया गया था. उस समय यहां वर्तमान जगह पर भी बियावान जंगल हुआ करता था, लेकिन उत्तरोत्तर मन्दिर की प्रसिद्धि हुई और आज टोंक शहर व जिले के प्रमुख मंदिरों में शामिल हैं.

 

मंदिर परिवार के ही पुजारी सुरजपूरी गोस्वामी ने बताया कि हरणाजति का स्थान साधु-महात्माओं की तपोस्थली हुआ करती,राजा-महाराजाओं के समय में पहाड़ी पर विराजमान मंदिर में श्रद्धालु दर्शन करते आते थे. वर्तमान स्थान पर मंदिर की स्थापना के बाद से ही यह मंदिर टोंक की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा हैं. जहां सालभर श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते रहते हैं.