Udaipur: होली पर उदयपुर के आदिवासी अंचल में बनने वाला हर्बल गुलाल एक बार फिर प्रदेश के साथ देशभर में अपने रंग बिखेरने को तैयार है. पिछले साल की तुलना में इस बार हर्बल गुलाल की मांग 2 से 3 गुना बढ़ गई हैं. जो इस रोजगार से जुड़े आदिवासी अंचल के लिए खुशी की बात है.


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उदयपुर जिले के आदिवासी अंचल देवला में महिलाओं को रोजगार का अवसर प्रदान करने के लिए वन विभाग ने वन उपज से हर्बल गुलाल बनाने का काम शुरू किया था. बीते 8 सालों में आदिवासी इलाके में बनने वाली इस हर्बल गुलाल की मांग 15 से 20 गुना तक बढ़ गई है. प्रदेश के साथ देश के कई राज्यों में हर्बल गुलाल की सप्लाई की जा रही है. जिसने देवला क्षेत्र की आदिवासी महिलाओं संबल मिला है. 8 साल पहले वन विभाग ने एक क्विंटल हर्बल गुलाब का निर्माण किया था. लेकिन कुछ ही साल में इस गुलाल की मांग बाजार में इतनी बढ़ गई कि इस बार विभाग की ओर से करीब 20 क्विंटल हर्बल गुलाल का निर्माण किया जा रहा है. क्षेत्रीय वन अधिकारी भूपेंद्र सिंह ने बताया कि कोरोना काल के दौर में दो साल तक गुलाल की मांग कम हो गई थी. लेकिन इस बार मांग ज्यादा है. जिससे महज दो महीने में 20 से 25 हजार रुपए तक की आय आदिवासी महिलाओं को हो सकेगी. 



हर्बल गुलाल कैसे बनता है ?
वनो से प्राप्त फूलों और उनकी पत्तियों से हर्बल गुलाल बनाया जाता है. ये पूर्णतया प्राकृतिक है. जंगल से मिली पत्तियों और फूलों को पानी में उबाल कर उसमें मक्की का आटा मिलाया जाता है. उस मिश्रण को मिक्स कर हिलाया जाता है. मिश्रण तैयार करने के बाद उसको धूप में सुखाया जाता है. जिसे सुखने में लगभग दो से तीन दिन लगते है. सूखने के बाद छोटी चक्की में उसको पिस कर गुलाल बनाया जाता है.



पांच प्रकार के रंगो में बनाया जा रही है गुलाल 
देवला रेंज के अंतर्गत पांच प्रकार के रंगो का गुलाल बनाया जा रहा है. केसरिया, हरा, पीला, गुलाबी और लाल रंग. ऑरेन्ज रंग के लिए पलाश के फूलों का मिश्रण प्रयोग में लिया जाता है और हरे रंग के लिए पेड़ो की हरी पत्तियां का इस्तेमाल होता है. गुलाबी रंग के लिए बोगन वेलिय और गुलाब के फूलों को मिलाया जाता है. गुलाबी रंग का गुलाल सबसे ज्यादा डिमांड में होता है क्योकिं इसमें सबसे ज्यादा सुगंध होती है.



चुकुन्दर से निर्मित गुलाल सबसे हटकर
देवला रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी भूपेंद्र सिंह भानावत बताते है की इस बार चुकुन्दर से निर्मित हर्बल गुलाल बनाई जा रही है. इसके लाल रंग को लोगों ने खासा पसंद किया है.  चुकुन्दर को हल्की आंच पर गलाकर उसके रंग को छाना जाता है उसके बाद आरा रोट के आटे में मिक्स कर इसे सुखाया जाता है और चक्की में पीस कर इसे पैक कर लिया जाता है. जो सुर्ख लाल रंग का होता है.


जिला प्रशासन भी दे रहा प्रोत्साहन
हर्बल गुलाल बनाने का काम कर रही आदिवासी महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए जिला प्रशासन भी प्रयास कर रहा है. ऐसे में पहला मौका है जब वन विभाग की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी इन महिलाओं को हर्बल गुलाल की बिक्री के लिए शहर के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर स्टॉल लगाने के लिए स्थान उपलब्ध कराए गए हैं. जिससे वहां आने वाले पर्यटक भी हर्बल गुलाल खरीद सके. साथ ही प्रशासन की ओर से विभिन्न स्तर पर हर्बल गुलाल को प्रमोट करने का भी प्रयास किया जा रहा है.


Reporter- Avinash Jagnawat