Rajasthan By-Election: राजस्थान के उदयपुर जिले में सलूंबर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है. उपचुनाव में जीत को लेकर सभी राजनैतिक दल चुनावी मैदान में अपना दमखम लगा रहे हैं. चुनावी मैदान में उतरने वाली पार्टियां मतदाताओं के बीच अपने-अपने ऐजेंडे लेकर जाती हैं, लेकिन पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव की बात करें, तो यहां जीत के पीछे जातीय समिकरण बड़ा मायने रखते हैं. ऐसे में राजनैतिक पार्टियां जातियों को भी साधने का पूरा प्रयास करती हैं. 


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नव गठित सलूंबर जिला जो की डेढ़ विधानसभा क्षेत्र से मिलकर सलूंबर और धरियावद बना है. यहां 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अमृत लाल मीणा ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की. लेकिन कुछ समय पहले उनका निधन हो गया. ऐसे में यहां उपचुनाव होने जा रहे हैं. सलूंबर विधानसभा क्षेत्र की बात करें, तो पहले यह उदयपुर जिले की आठ सीटों में से एक थी. 



एसटी मतदताओं की अधिकता के चलते इसे एसटी रिर्जव सीट घोषित कर रखा है. सलूंबर विधानसभा सीट कभी कांग्रेस पार्टी का गढ़ रही. आदिवासी समाज के वोटों के दम पर कांग्रेस यहां पर मजबूत थी, लेकिन धीरे-धीरे यहां भाजपा ने आदिवासी इलाकों में अपनी पकड़ को मजबूत किया और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध मारी की. यही कारण है कि भाजपा प्रत्याशी यहां से लगातार तीन चुनाव जीतने में सफल हुए. 



2023 के चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनावों में यहां पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हुआ करता है, लेकिन 2023 चुनाव से पहले वजूद में आई भारतीय आदिवासी पार्टी ने यहां अपना दम दिखाया. विधानसभा चुनाव में भले ही बीएपी प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा, लेकिन उसने 50 हजार से अधिक वोट हासिल किए. बीएपी नेताओं ने आदिवासी समाज के मुद्दों को बड़े जोरों से उठाया और बड़ी संख्या में युवाओं को अपने साथ जोड़ने में सफल रहे. 



इसमें मुख्य मुद्धा आदिवासी समाज के हिन्दू नहीं होने का था. जिसका बीजेपी ने विरोध किया और आदिवासी समाज के हिंदू होने का दावा किया, लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे पर कोई ठोस रणनीति नहीं बना पाई. जिसका असर चुनाव में देखने को मिला. बीएपी ने दोनों ही पार्टियों के आदिवासी वोट बैंक में सेंधमारी की. लेकिन जानकारों की मानें तो इसमें ज्यादा वोट कांग्रेस पार्टी के थे. उपचुनाव में भी बीएपी नेता अपनी पुरानी रणनीति के साथ चुनावी मैदान में डटे हुए हैं. उनका पूरा फोकस आदिवासी वोटर्स पर है.



2023 के चुनाव को आधार माना जाए तो आदिवासी समाज को बड़ा वोट बैंक बीएपी के पक्ष में गया है. ऐसे में इस बार भी आदिवासी मतदाताओं का रुझान बीएपी के पक्ष में हो सकता है. ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का फोकस गैर आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने पर है. दानों में से एक भी पार्टी गैर आदिवासी वोटर्स को पूरी तरह से अपने पक्ष में करने में सफल हो गई, तो चुनाव में उसे जरूर फायदा होगा.



यही कारण है कि जब कल सीएम भजनलाल शर्मा ने राइजिंग रिसोर्ट में पार्टी पदाधिकारियों और विभिन्न समाज के प्रबुद्ध लोगों से मुलाकात की, तो उनका फोकस आदिवासी मतदाताओं के साथ गैर आदिवासी मतदाताओं को भी अपने पक्ष में करने का था. सीएम ने पीलादर हत्याकांड में फर्जी मुकदमों मे फंसे लोगों को राहत देने और हर वर्ग तक विकास पहुंचाने का वादा किया था, तो वहीं कांग्रेस और बीएपी भी गैर आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रही है.