हल्दीघाटी का युद्ध

इसलिए हुआ था क्योकि महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया था.जब 21 जून 1576 को महाराणा प्रताप और अकबर की सेना आमने सामने हुयी थी.

Jul 27, 2023

चार घंटे चला युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध कई दिनों तक नही बल्कि एक ही दिन में खत्म हो गया था वो भी केवल चार घंटे में

महाराणा की सेना में

मुख्य सेनापति ग्वालियर के राम सिंह तंवर, कृष्णदास चुण्डावत, रामदास राठोड झाला, पुरोहित गोपीनाथ, शंकरदास, चरण जैसा, पुरोहित जगन्नाथ जैसे योद्धा थे

भील राजा

महाराणा प्रताप की तरफ आदिवासी सेना के रूप में 400-500 भील भी शामिल थे जिसका नेतृत्व भील राजा रांव पूंजा कर रहे थे, भील शुरुवात से ही राजपूतो के स्वामिभक्त रहे थे.

राजस्थान का इतिहास लिखने वाले जेम्स टॉड के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में 22,000 सैनिक जबकि अकबर की सेना में 80,000 सैनिक थे.

अकबर की सेना का

नेतृत्व करने के लिए खुद अकबर नहीं आये थे जबकि उन्होंने आमेर के राजपूत राजा मान सिंह को सेनापति बनाकर महाराणा प्रताप से लड़ने को भेजा. ये भी अजब संयोग था कि राजपूत, राजपूत से लड़ रहा था.

पहाड़ी इलाके में

युद्ध होने के कारण इसका फायदा महाराणा प्रताप को मिला क्योंकि वो इन इलाको के बारे में बचपन से अच्छी तरह जानते थे.

इतिहास में

इस युद्ध को अनिर्णायक माना गया, लेकिन महाराणा प्रताप की सेना ने अकबर की विशाल सेना के छक्के छुडा दिए थे.

युद्ध की सबसे एतेहासिक घटना

वो थी जब महाराणा प्रताप, मान सिंह के करीब पहुंच गये थे और अपने घोड़े चेतक को उन्होंने मानसिंह के हाथी पर चढ़ा दिया और भाले से मान सिंह पर वार किया.

चेतक घायल हो गया

लेकिन मान सिंह तो बच गये लेकिन उनका महावत मारा गया.चेतक जब वापस हाथी से उतरा तो हाथी की सूंड में लगी तलवार से चेतक का एक पेर बुरी तरह घायल हो गया.

चेतक केवल तीन पैरों से

5 किमी तक दौड़ते दौड़ते हुए अपने स्वामी महाराणा प्रताप को रणभूमि से दूर लेकर गया और एक बड़े नाले से चेतक ने छलांग लगाई जिसमे चेतक के प्राण चले गये.

महाराणा के हमशक्ल

दुसरी तरफ महाराणा प्रताप के रण से चले जाने पर उनके स्थान पर उनके हमशक्ल झाला मान सिंह ने उनका मुकुट पहनकर मुगलों को भ्रमित किया और रण में कूद पड़े. मुगल उनको प्रताप समझकर उनपर टूट पड़े और इसमें झाला मान सिंह शहीद हो गये.

हल्दीघाटी युद्ध और चेतक

की मृत्यु से उनका दिल पसीज गया और उन्होंने मुगलों से जीतने तक राजसी ठाटबाट त्यागकर जंगलो में जीवन बिताने का निश्चय किया और बाद में सम्पूर्ण मेवाड़ पर कब्जा किया.

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