राजस्थान में क्यों पुराने जमाने में पानी की कभी कमी नहीं हुई थी

नाड़ी

नाड़ी एक प्रकार का पोखरा होता है.नाड़ी में बारिश का पानी इकट्ठा होता है.राजस्थान में बारिश के पानी को इकट्ठा करने के नाड़ी का निर्माण हुआ था.नाड़ी के निर्माण का विवरण सन 1520 में मिलता है.राजस्थान के जोधपुर में राव जोधाजी ने नाड़ी का निर्माण कराया था.

टोबा

टोबा भी नाड़ी के जैसा होता है.टोबा नाड़ी के समान आकृति वाला जल संग्रह केन्द्र होता है.टोबा नाड़ी से ज्यादा गहरा होता है.रेगिस्तान में टोबा का अधिक उपयोग होता है.टोबा का ढलान नीचे की तरफ होता है.टोबा का इस्तेमाल मानव और जानवर दोनों करते है.

बावड़ी

राजस्थान में कुआं और सरोवर के जैसे बावड़ी का निर्माण भी बहोत प्राचीन समय पहले हुआ है.बावड़ी को राजस्थान में वापी भी कहा जाता है.ज्यादातर बावड़ीयां मंदिरो के सहारे बनी हुई है.बावड़ी को पहले से ही पीने के पानी और सिंचाई के महत्त्वपूर्ण जलस्रोत में गीना जाता है.

झालरा

झालरों का कोई निजी जलस्रोत नहीं होता है.झालरों में ऊँचाई पर स्थित तालाबों या झीलों से पानी प्राप्त होता है.झालरों का पानी भी पिने लायक नहीं होता है.

खड़ीन

खड़ीन मिट्टी से बना हुआ एक अस्थायी तालाब है.खड़ीन जल संरक्षण की पारम्परिक व्यवस्था है.खड़ीनों में पानी को एक निम्र स्थानों पर इकट्ठा करके फसलें ली जाती हैं.

कुंडी या टांका

कुंडी राजस्थान के किसी भी गांव में आसानी से देखने को मिला जायेगा.राजस्थान के रेतीले गांव में बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है.गांवों में इसका अधिकांश उपयोग पीने के पानी के लिए किया जाता है.

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