छप्पनिया अकाल

जब साल 1899 में राजस्थान में अकाल पड़ा था. जिसे छप्पनिया अकाल कहा जाता है.खेजड़ी ही सहारा बना था.

खुद को रखा जिंदा

अकाल के समय में मरूधरा के लोगों ने खेजड़ी के तनों के छिलके खाकर ही खुद को जिंदा रखा था. इसलिए राजस्थान में खेजड़ी को राज्य वृक्ष का दर्जा प्राप्त है.

घर लाते सोना

वेदों और उपनिषदों में खेजड़ी को शमी कहा गया है और रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर घर लाएं जाते हैं जो सोने के समान माने जाते हैं.

महाभारत और रामायण

मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष को इसी पेड़ में छुपा दिया था. वहीं रामायण में लंका विजय से पहले भगवान राम ने शमी के वृक्ष की पूजा की थी.

यज्ञ में प्रयोग

खेजड़ी की लकड़ी को यज्ञ में समिधा के रूप में प्रयोग किया जाता है. तपसी राजस्थान की गर्मी खेजड़ी की पत्तियां पशुओं का चारा भी है और छाया भी.

आयुर्वदे

खेजड़ी की छाल का प्रयोग खांसी, अस्थमा, बलगम, सर्दी और पेट के कीड़े मारने के लिए स्थानीय लोग प्रयोग में लेते हैं.

रेत को पकड़ने वाली जड़

खेजड़ी के पेड़ की जड़ों के फैलाव से जमीन का क्षरण नहीं होता और जड़ों में रेत जमी रहती हैं. जिससे रेगिस्तान के फैलाव पर अंकुश लगता है.

मंहगी सब्जी

खेजड़ी के पेड़ पर सांगरी लगती है, जो एक मंहगी सब्जी इसकी मांग विदेशों में भी है और खासतौर पर शीतलाष्टमी और खास त्योहारों पर इसकी सब्जी जरूर बनती है.

लकड़ी भी मजबूत

खेजड़ी की लकड़ी काफी मजबूत मानी जाती है, जिसका इस्तेमाल फर्नीचर और रोजमर्रा के काम आने वाली चीजें बनाने में किया जाता है.

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