BJP Ayodhya Rath Yatra: स्वतंत्रता ऐसे नहीं मिलती है. सपने, संकल्प संघर्ष और सामूहिक बलिदान...तब जाकर मिलती है स्वतंत्रता. चाहे स्वतंत्रता भारत की हो या भारत के आदर्श मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की. आज हम आपको राम मंदिर आंदोलन के उस नेता के बारे में बताने जा रहे हैं, जो सड़कों पर उतरा तो मानो देश में राम नाम की एक लहर दौड़ गई.


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कराची में किशिन आडवाणी के घर जन्म लेने वाला लाल जब 20 वर्ष का हुआ, तब भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिली. लेकिन रामलला की स्वतंत्रता के लिए उसे 30 वर्षों का कड़ा संघर्ष और 90 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा. भारत की आजादी के जन-नायक अगर गांधी जी थे तो रामलला की आज़ादी के जन-नायक लाल कृष्ण आडवाणी. किसी ने कल्पना नहीं की थी, कि कराची में रहने वाला किशिन का लाल.देश के बंटवारे के बाद भारत आएगा और 60 वर्ष की उम्र में श्रीराम का लाल बन जाएगा.


साल 2020 में राम मंदिर के शिलान्यास के दौरान पूर्व उप-प्रधानमंत्री एलके आडवाणी ने कहा था, जीवन के कुछ सपने पूरा होने में बहुत समय लेती हैं. किंतु जब वो चरितार्थ होते हैं तो लगता है कि प्रतीक्षा सार्थक हुई. ऐसा ही एक सपना जो मेरे हृदय के समीप है, वो पूरा हो रहा है. 



क्या बोले थे आडवाणी?


उन्होंने तब आगे कहा था, श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण भारतीय जनता पार्टी का एक स्वप्न रहा है और मिशन भी...मैं विनम्रता का अनुभव करता हूं कि नियति ने मुझे वर्ष 1990 में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा का दायित्व प्रदान किया था. और इस यात्रा ने असंख्य लोगों की आकांक्षा, ऊर्जा और अभिलाषा को प्रेरित किया. राम मंदिर का निर्माण आज जरूर पूरा हो रहा है लेकिन राम मंदिर का इतिहास. इस महारथी के बिना कभी पूरा नहीं हो सकता जिसने एक रथ से भारत की राजनीति का रुख मोड़ दिया. जिसकी 10 हजार किलोमीटर की रथ यात्रा ने करीब 32 लाख वर्गकिलोमीटर में फैले भारत को ये विश्वास दिलाया कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को उनकी जन्मभूमि भी मिलेगी और उनका भव्य मंदिर भी बनेगा.


आडवाणी ने निकाली थी रथ यात्रा


इंटरनेट पर गूगल करेंगे तो साल 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की ऐतिहासिक रथ यात्रा की तस्वीरें मिल जाएंगी.  जिसकी शुरुआत 25 सितंबर को गुजरात के सोमनाथ से हुई थी और 30 अक्टूबर 1990 को इस रथ को अयोध्या पहुंचना था. रथ पर आडवाणी के दूत बनकर सवार लोगों में प्रमोद महाजन और नरेंद्र मोदी जैसे नेता भी थे. स्वतंत्र भारत के इतिहास में सड़कों पर ऐसी भीड़ कभी नहीं दिखी थी, जो राम मंदिर निर्माण के लिए निकाली गई इस रथयात्रा में उमड़ रही थी. 


राम मंदिर के नारे जन-जन की जुबान से निकलकर गांव-गली-कस्बे-मोहल्लों में गूंज रहे थे. महिलाएं घर से निकलकर रथ की पूजा करती थीं. जल चढ़ाती थीं. रास्ते की जिस मिट्टी को छूकर रथ का पहिया निकलता था, उस मिट्टी को लोग माथे पर लगाते थे. भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस से लेकर राजनीति और समाजशास्त्र के बड़े-बड़े एक्सपर्ट के लिए ये दृश्य.. चमत्कार की तरह थे. खुद आडवाणी भी ये सब देखकर हैरान थे.


 


रथ यात्रा को लेकर उठे थे कई सवाल


इस रथयात्रा को लेकर कई तरह के सवाल थे. आडवाणी तो एक राजनेता थे और उनका मकसद भाजपा को भारत की सत्ता पर बिठाना था. फिर ऐसा क्या हुआ कि रामलला को उनकी सत्ता, उनका अधिकार दिलाने के लिए रथ लेकर निकल पड़े? और भी सवाल थे...जैसे रथयात्रा का आइडिया किसका था ? रथयात्रा की शुरुआत सोमनाथ से ही क्यों की गई ? क्या सचमुच इस रथयात्रा ने ही राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी थी ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आडवाणी ने अपनी किताब MY COUNTRY MY LIFE में दिये हैं. लेकिन इसके लिए सबसे पहले आपको भारतीय इतिहास से जुड़े...वर्ष 1989 के पन्ने पलटने होंगे.


1 फरवरी 1989 को प्रयाग में कुंभ मेले के अवसर पर जुटे एक लाख साधु-संतों ने घोषणा कर दी कि 10 नवंबर 1989 को राम मंदिर की आधारशिला रखी जाएगी. देशभर के लाखों गांवों से कारसेवक मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या जाएंगे. संतों के इस संकल्प को लेकर हिंदुओं में तो उत्साह था लेकिन किसी राजनीतिक दल का समर्थन उन्हें हासिल नहीं था. यहां तक कि उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी संतों से दूरी बना ली थी..जिन्होंने वर्ष 1986 में राम मंदिर का ताला खुलवाया था.


आडवाणी ने पकड़ ली थी नब्ज 


लालकृष्ण आडवाणी तब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष थे. उन्होंने भांप लिया कि अगर केंद्र में कमल खिलाना है तो सिर्फ विकास और भारत के नवनिर्माण के सपने दिखाने से काम नहीं बनने वाला. देश की आबादी में 82 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले हिंदू समाज की आस्था को जगाना भी होगा और उनका भरोसा जीतना भी होगा.


बता दें कि 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी की स्थापना हुई. साल 1984 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सिर्फ दो सांसद थे. साल 1986 में लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष बने और 3 साल बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 85 सीटें जीत गईं.  लोकसभा चुनाव 1989 के नवंबर महीने में हुआ था. उससे ठीक 5 महीने पहले जून 1989 में बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में एक सम्मेलन किया और राम मंदिर को अपना प्रमुख एजेंडा बनाने का फैसला किया.



खुद तैयार किया था प्रस्ताव


पालमपुर की बैठक में आडवाणी ने खुद यह प्रस्ताव तैयार किया था, जिसमें लिखा था कि भारतीय जनता पार्टी राम जन्मभूमि आंदोलन का समर्थन करेगी. उन्होंने राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार से मांग की थी कि जिस तरह नेहरू सरकार के दौरान सोमनाथ मंदिर का पुनरुद्धार हुआ था, उसी तरह का फैसला अयोध्या पर भी हो.


आडवाणी के अयोध्या आंदोलन से जुड़ने का असर ये हुआ कि भारतीय राजनीति में अजेय कही जाने वाली कांग्रेस पार्टी को 1989 के चुनाव प्रचार की शुरुआत अयोध्या से करनी पड़ी और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जनता से रामराज्य लाने का वादा किया. लेकिन रामभक्तों को उनके वादे पर यकीन नहीं हुआ.  दूसरी तरफ राजीव गांधी सरकार पर लगे बोफोर्स घोटाले के आरोप से देशभर में कांग्रेस विरोधी माहौल बनने लगा था. नतीजा- कांग्रेस 414 लोकसभा सीटों से घटकर 197 सीटों पर आ गई और बीजेपी 2 सांसदों से सीधे 85 सांसदों की पार्टी बन गई. 


85 सीटों से सरकार में जगह तो बनाई जा सकती थी लेकिन सरकार चलाई नहीं जा सकती थी. इसलिए आडवाणी ने साल 1990 में रथ यात्रा शुरू की. ये रथ यात्रा सोमनाथ से अयोध्या तक जानी थी.


आडवाणी की रथ यात्रा की कहानी


आडवाणी की रथ यात्रा के पीछे की कहानी उतनी ही रोमांचक है, जितनी रथ यात्रा. 2 दिसंबर 1989 को राष्ट्रीय मोर्चा गठबंधन की सरकार बनी. वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने. वीपी सिंह सरकार को भाजपा और वामपंथी दल बाहर से समर्थन दे रहे थे. वहीं, लालू यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे उभरते क्षेत्रीय नेता भी वीपी सिंह के साथ थे. यानी उस वक्त देश की राजनीति कांग्रेस बनाम ALL थी. लेकिन कांग्रेस को इस बात का एहसास था कि आने वाले समय में उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती भारतीय जनता पार्टी ही होगी. जिसपर राजीव गांधी ने भी सांप्रदायिक तनाव फैलाने के आरोप लगाए थे.


राजीव गांधी के हाथ से सत्ता जा चुकी थी. अब वह विपक्ष में थे और कार सेवकों की उम्मीदें नई सरकार से बंधी थी. संतों ने तय किया कि फरवरी 1990 में कारसेवा की जाएगी. वीपी सिंह को ये बात पता चली तो उन्होंने संतों को दिल्ली बुलाया और उन्हें आश्वासन दिया कि 4 महीने में अयोध्या विवाद का समाधान हो जाएगा. संतों ने कारसेवा का अपना फैसला वापस ले लिया.  संतों ने मई तक का इंतजार किया...जब सरकार की ओर से कोई सुगबुगाहट नहीं दिखी तो जून में बैठक बुलाकर फिर से कारसेवा शुरू करने की घोषणा की गई....तारीख रखी गई 30 अक्टूबर 1990.



आडवाणी से मिले प्रमोद महाजन


लाल कृष्ण आडवाणी के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी के महासचिव प्रमोद महाजन पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने संतों की घोषणा के बाद उठ रही हिंदू जन-भावना को भांप लिया था. 1990 के सितंबर महीने में पहले सप्ताह की बात है. एक दिन शाम के समय प्रमोद महाजन दिल्ली में आडवाणी के घर पहुंचे और उन्हें बताया कि पूरे देश में इस समय कारसेवा की चर्चा चल रही है.


आडवाणी के मन में सोमनाथ से अयोध्या तक की पदयात्रा का प्लान पहले से चल रहा था. वो चाहते थे कि सोमनाथ से पदयात्रा इस तरह निकाली जाए, जो 30 अक्टूबर को अयोध्या में जाकर पूरी हो. इस बातचीत के दौरान उस कमरे में सिर्फ तीन लोग थे. खुद लाल कृष्ण आडवाणी... उनकी पत्नी कमला आडवाणी और प्रमोद महाजन.


अपनी किताब में आडवाणी ने इस बातचीत का विस्तार से जिक्र करते हुए कहा कि वो पदयात्रा के जरिए ज्यादा से ज्यादा लोग, खासकर गांवों में बसने वाली आबादी से मिलना चाहते थे. उन्हें अयोध्या आंदोलन का मतलब समझाना चाहते थे.


प्रमोद महाजन ने दिया था रथ यात्रा का आइडिया


प्रमोद महाजन ने कहा- पदयात्रा में समय बहुत लग जाएगा और इतना लाभ भी नहीं होगा क्योंकि आप सिर्फ गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली के कुछ हिस्सों के साथ आधे उत्तर प्रदेश तक ही पहुंच पाएंगे. आडवाणी ने पूछा- तो और क्या विकल्प है ? कार में यात्रा करना मुझे जम नहीं रहा. इससे अच्छा तो जीप में यात्रा करें. प्रमोद महाजन बोले - क्यों ना हम रथयात्रा की योजना बनाएं ? आखिर यह यात्रा राम मंदिर के लिए ही तो है. आडवाणी की उत्सुकता बढ़ी...उन्होंने कहा- रथयात्रा का मतलब क्या है ?


प्रमोद महाजन का सुझाव था- एक मिनी बस या मिनी ट्रक लेंगे और उसे रथ की तरह बनाएंगे. आप उसमें बैठकर यात्रा कर सकते हैं. क्योंकि इसका उद्देश्य अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए जन-समर्थन जुटाना है. इसलिए इसे राम रथ यात्रा का नाम दिया जाएगा. आडवाणी को ये सुझाव पसंद आया . उन्होंने कहा- इसे करो. महाजन ने पूछा- आप यात्रा कब से शुरू करना चाहते हैं?
आडवाणी का जवाब था - 25 सितंबर, दीनदयाल जयंती के दिन.


रथ का इंतजाम करने से लेकर रूट तय करने की जिम्मेदारी प्रमोद महाजन के कंधों पर थी . उन्होंने एक टोयोटा बस को रथ का आकार दिया. आडवाणी अगर इस रथ यात्रा के महारथी बनने जा रहे थे तो प्रमोद महाजन उनके पहले सारथी.



10 हजार किमी का रूट था सेट


उन्होंने ही रथ यात्रा के लिए 10 हजार किलोमीटर का रूट तय किया. रूट के मुताबिक रथ यात्रा गुजरात से शुरू होकर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार होते हुए उत्तर प्रदेश में अयोध्या जाकर खत्म होने वाली थी. मीडिया को रथ यात्रा के फैसले की जानकारी 12 सितंबर को दी गई.


25 सितंबर 1990 की सुबह लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना की. मंदिर में उनके साथ परिवार के सदस्य थे. मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रमोद महाजन और गुजरात में बीजेपी के कई वरिष्ठ पदाधिकारी भी मौजूद थे. रथ यात्रा को हरी झंडी दिखाने के लिए बीजेपी के दो उपाध्यक्ष राजमाता विजयराजे सिंधिया और सिकंदर बख्त भी सोमनाथ आए थे. सोमनाथ से आशीर्वाद लेकर आडवाणी रथ यात्रा पर निकल पड़े. सोमनाथ से यात्रा शुरू करने का मकसद देश तक ये संदेश देना था कि जब मुगल आक्रमणकारियों के बार-बार हमले के बाद भी सोमनाथ लहलहा सकता है तो अयोध्या क्यों नहीं.


सोमनाथ मंदिर पर गजनवी ने किया था हमला


सोमनाथ मंदिर पर 11वीं सदी में अफगानिस्तान से आए गजनवी ने हमला किया था. उसे लूटा था, तहस-नहस कर दिया था और फिर 18वीं सदी में औरंगजेब ने तोड़ा. इसी तरह 16वीं सदी के दौरान बाबर ने अयोध्या में राम मंदिर पर हमला कराया. बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने राम मंदिर को तोड़कर वहां बाबरी मस्जिद बना दी. आजादी के बाद साधु-संतों की मांग और केंद्र सरकार के सहयोग से वर्ष 1951 में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के हाथों शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा हुई. आडवाणी चाहते थे कि इसी तरह केंद्र सरकार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सहयोग करे.


जैसे-जैसे रथयात्रा आगे बढ़ रही थी, भीड़ भी बढ़ती जा रही थी. एक दिन में 300 किलोमीटर तक की दूरी तय की जाती थी. हर दिन 20 से 25 सभाएं होती थीं और आडवाणी के भाषण 5-5 मिनट के होते थे. यात्रा रात को चाहे जितनी देर तक चले लेकिन रोज सुबह 10 बजे यात्रा शुरू हो जाती थी. रथ यात्रा के दौरान आडवाणी कई बड़ी सभाओं को भी संबोधित करते थे.इन सभाओं में उन्हें सुनने के लिए हजारों लोग जुटते थे.



विपक्ष को सताने लगा था रथ यात्रा का डर


जीवन के युवा काल में हॉरर फिल्में देखने के शौकीन रहे आडवाणी की राम रथ यात्रा विपक्ष को अब डराने लगी थी. यहां तक कि बीजेपी के समर्थन से चल रही वीपी सिंह सरकार और उनके सहयोगी दल मंडल के मास्टरस्ट्रोक के बाद भी घबरा गए थे. मंडल यानी पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत का आरक्षण देने वो फैसला जो रथ यात्रा शुरू होने से ठीक 1 महीना 18 दिन पहले लिया गया था. तारीख थी  7 अगस्त 1990 और 8 दिन बाद विरोध प्रदर्शन के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने लालकिले के प्राचीर से भी इस फैसले की जानकारी पूरे देश को दी.


90 में नई सोशल इंजीनियरिंग का प्रयोग हो रहा था. पिछड़ों की राजनीति करने वाले आगे बढ़ रहे थे. और मीडिया में आडवाणी की रथ यात्रा को मंडल बनाम कमंडल बनाकर पेश किया जा रहा था. बिहार और उत्तर प्रदेश में राम रथ पहुंचने से पहले धमकियां आने लगी थीं. केंद्र की वीपी सिंह सरकार को समर्थन देने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ऐलान कर चुके थे कि अपने राज्य में रथ घुसने नहीं देंगे.


लालू ने दी थी आडवाणी को चेतावनी


उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू यादव ने कहा था, मैं इस मंच के माध्यम से फिर से आडवाणी जी से अपील करना चाहता हूं कि अपनी यात्रा को स्थगित कर दें.  स्थगित करके वो दिल्ली वापस चले जाएं. देशहित में अगर इंसान ही नहीं रहेगा तब मंदिर में घंटी कौन बजाएगा. हम अपने राज्य में दंगा-फसाद नहीं फैलने देंगे.


जिसने युवा अवस्था में बंटवारे का दंश झेला हो.जो हिंदू और सिखों के नरसंहार के बीच सिंध से सुरक्षित भारत आया हो. वो इन धमकियों से कहां डरने वाला था. आडवाणी का रथ बढ़ चला. धनबाद होते हुए पटना और उसके बाद राम रथ समस्तीपुर पहुंचा. तारीख थी 23 अक्टूबर 1990. लालू यादव की कोशिश आडवाणी को धनबाद में ही नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत गिरफ्तार करने की थी जो अब झारखंड में है.  लेकिन गिरफ्तारी हुई समस्तीपुर में..वो भी रात के 3 बजे .


इस पर लाल कृष्ण आडवाणी कहते हैं, "जब मैंने सोमनाथ से लेकर अयोध्या की यात्रा की थी वो पूरी नहीं हो सकी. मैं अयोध्या जा ही नहीं पाया. रास्ते में मुझे गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तार करके जेल में रखा. मेरे साथ पत्रकार बहुत गए थे तब. मैं समस्तीपुर पहुंचा तो वहां से पहले पटना आता है. प्रमोद महाजन सारा इंतजाम देख रहे थे. उन्होंने कहा कि पटना में आडवाणी विश्राम करेंगे. ज्यादातर पत्रकार पटना में रुक गए.


आडवाणी आगे कहते हैं, 'जब उन्हें अगली सुबह पता चला कि समस्तीपुर में मुझे गिरफ्तार कर लिया और हेलीकॉप्टर से जेल भेज दिया तो उन्होंने कहा कि जो सबसे अहम प्रसंग था वो हमने मिस कर दिया.'


समस्तीपुर में रुकी थी रथ यात्रा


ये वाकई रथ यात्रा का सबसे अहम प्रसंग था क्योंकि इसके बाद देश भर में कार सेवकों ने आंदोलन छेड़ दिया. इसका सबसे बड़ा लाभ दो राजनेताओं को हुआ. एक- लाल कृष्ण आडवाणी और दूसरे- लालू यादव. प्लान के मुताबिक 24 अक्टूबर को देवरिया से उत्तर प्रदेश में रथ यात्रा प्रवेश करने वाली थी.लेकिन रथ तो समस्तीपुर में ही रुक गया और आडवाणी गिरफ्तार कर हेलीकॉप्टर से दुमका भेज दिए गये. 


आडवाणी की गिरफ्तारी के पीछे वजह बताई गई कि उनकी रथ यात्रा से सांप्रदायिक तनाव फैल सकता है. बिहार में दंगे हो सकते हैं. बीजेपी विरोधी दल दावा कर रहे थे कि रथ यात्रा की वजह से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर दंगे हुए जिसमें 600 से ज्यादा लोग मारे गए.


लेकिन आडवाणी अपनी किताब MY COUNTRY MY LIFE में दावा करते हैं कि उनकी रथ यात्रा जिन जगहों से होकर गुजरी..वहां दंगे की एक भी घटना नहीं हुई.


पूरी रथ यात्रा के दौरान आडवाणी के तेवर आक्रामक थे लेकिन भाषा मर्यादित. आवाज़ बुलंद थी और नीयत साफ. लक्ष्य यही था- राम मंदिर निर्माण कराना है और वो भी राम जन्मभूमि पर...और इससे अगर दल को लाभ होता है तो इसे कबूल करने में कोई हर्ज नहीं है. 



मत आने दो हीन भावना: आडवाणी


आडवाणी बताते हैं, जो लोग कहते हैं ना कि ये तो अयोध्या, मंदिर और राम मंदिर के आधार पर ही बीजेपी ने या जनसंघ ने ये स्थान प्राप्त किया है. मैं उनको ये कहता हूं कि हां बराबर है.  हम इस पर गर्व करते हैं कि हमारा आंदोलन केवल राजनीतिक आंदोलन नहीं है वो एक सांस्कृतिक आंदोलन है. लेकिन इस सांस्कृतिक आंदोलन का जब प्रतिरूप मुझे डॉ लोहिया जैसे समाजवादी व्यक्ति और नेता से मिलता है तो उनकी प्रशंसा किये बगैर मैं नहीं रह पाता. मैं मानता हूं. सही बात आप करो तो दुनिया उसे स्वीकार करेगी. संकोच मत करो. हीन भावना कभी मत आने दो. अयोध्या की बात पर विश्वास करते हैं. आंदोलन करते हैं तो उसपर एपोलॉजिटिक नहीं होना चाहिए. गर्व करना चाहिए.


भारतीय जनता पार्टी को आडवाणी की रथ यात्रा पर गर्व था..इसलिए उनकी गिरफ्तारी बर्दाश्त नहीं थी. जिस दिन आडवाणी की गिरफ्तारी हुई उसी दिन अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने वी पी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया.


और फिर गिर गई वीपी सिंह की सरकार


7 नवंबर को बहुमत साबित ना कर पाने की वजह से वी पी सिंह की सरकार गिर गई. लेकिन उससे 5 दिन पहले अयोध्या में ऐसी घटना हुई जिसने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान जनरल डायर की बर्बरता याद दिला दी. दरअसल मुलायम सिंह यादव ने चेतावनी दी थी कि 30 अक्टूबर को अयोध्या में कार सेवा किसी भी कीमत पर नहीं करने दी जाएगी.


लेकिन विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन महासचिव अशोक सिंघल 28 अक्टूबर को ही अयोध्या पहुंच गए और 30 अक्टूबर को अयोध्या में सैकड़ों कार सेवकों की मौजूदगी ने मुलायम को पराजित जैसा महसूस कराया. 48 घंटे बाद ही, 2 नवंबर 1990 को अयोध्या में राम जन्मभूमि की तरफ बढ़ रहे कारसेवकों पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चला दीं. आडवाणी का दावा है कि उस गोलीबारी में लगभग 50 कारसेवक मारे गए.


मुलायम सिंह ने चलवाईं कारसेवकों पर गोलियां


अयोध्या के हनुमानगढ़ी के सामने ही 2 नवंबर 1990 को कार सेवकों पर गोलियां चलाई गई थीं. तब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. कहा जाता है कि मुलायम ने पुलिस को कार सेवकों पर गोली चलाने के आदेश दिये थे. इसी गोलीबारी में कोलकाता से आए कारसेवक कोठारी बंधुओं की मौत हो गई थी.


इस वारदात ने कारसेवकों के अंदर धधक रही ज्वाला को हवा दे दी. इस बीच 10 नवंबर को केंद्र में वी पी सिंह की जगह चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने. उन्हें कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया था और 19 नवंबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी अयोध्या पहुंच गए. राम मंदिर आंदोलन अब पूरी तरह से बीजेपी के लिए करो या मरो का मुद्दा बन चुका था. 



1991 में मिली बीजेपी को जीत


क्योंकि आडवाणी की अगुवाई में राम रथ पर चढ़कर भारतीय जनता पार्टी की सफलता का ग्राफ बढ़ता जा रहा था. साल 1991 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई. मुलायम सिंह यादव की जगह बीजेपी नेता कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने और उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी के 100 से ज्यादा सांसद चुनकर आए. हालांकि सरकार कांग्रेस की बनी क्योंकि उसके पास सबसे ज्यादा 232 सीटें थीं और बीजेपी के पास 119.


राम मंदिर का मुद्दा बातचीत के जरिए सुलझाने के लिए विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के बीच पहली बैठक कराने वाले चंद्रशेखर सत्ता से बाहर हो चुके थे. उनकी जगह पीवी नरसिम्हा राव नए प्रधानमंत्री थे. आडवाणी विपक्ष में थे और राम मंदिर को लेकर आक्रामक थे. नरसिम्हा राव की सरकार से बीजेपी और वीएचपी को कोई उम्मीद नहीं थी. आंदोलनकारी कारसेवा के लिए सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटा रहे थे. उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर शांतिपूर्ण कार सेवा की अनुमति मांग रही थी.


देश में आग की तरह फैला आडवाणी-अटल का भाषण


28 नवंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने सांकेतिक कार सेवा की अनुमति दे दी. उसके बाद विश्व हिंदू परिषद से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक कार सेवा में कूद गई. उस समय लाल कृष्ण आडवाणी की जगह डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी बीजेपी के अध्यक्ष थे. लेकिन राम मंदिर आंदोलन का सबसे मजबूत राजनीतिक चेहरा अभी भी आडवाणी ही थे. अयोध्या जाने से पहले अटल-आडवाणी और जोशी लखनऊ की जनसभा को संबोधित करने वाले थे. ये बात 5 दिसंबर 1992 की है. उस दिन मंच से अटल बिहारी वाजपेयी का दिया भाषण बिना सोशल मीडिया के देश भर में वायरल हो गया.


पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने एक भाषण में कहा था, 'सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि आप भजन कर सकते हैं. कीर्तन कर सकते हैं. अब भजन एक व्यक्ति नहीं करता. भजन होता है तो सामूहिक होता है और कीर्तन के लिए और भी लोगों की जरूरत होती है. खड़े-खड़े तो हो नहीं सकता. कब तक खड़े रहेंगे. यहां नुकीले पत्थर निकले हैं उसपर तो कोई बहस नहीं करता. तो जमीन को समतल करना पड़ेगा, बैठने लायक करना पड़ेगा. यज्ञ का आयोजन होगा तो कुछ निर्माण भी होगा. लाल कृष्ण आडवाणी ने इसी मंच से दिल्ली सरकार को राम रथ यात्रा की याद दिलाई . उस रात, आडवाणी के भाषण पर भी वाजपेयी की तरह जनता तालियां बजा रही थीं.'


6 दिसंबर 1992 को उग्र हो गई कारसेवा


अगले दिन, यानी 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में शांतिपूर्ण कारसेवा अचानक उग्र हो चली थी. सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार का किया हुआ वादा टूट चुका था. कारसेवक विवादित ढांचे के गुंबद को तोड़ रहे थे. ना पुलिस प्रशासन कुछ कर पा रहा था और ना ही वहां मौजूद वीएचपी और बीजेपी के बड़े बड़े नेता. कांग्रेस, लेफ्ट और दूसरे क्षेत्रीय दल बाबरी विध्वंस को सोची-समझी साजिश बता रहे थे और इसके लिए आडवाणी समेत भाजपा और विश्व हिंदू परिषद को जिम्मेदार बता रही थी . जबकि आडवाणी सफाई दे रहे थे कि उन्होंने कारसेवकों को रोकने की कोशिश की...ना कि भड़काने की .


आडवाणी ने कहा था, "मैंने कोशिश की...हमने अपील की मैंने की... आरएसएस की तरफ से हुई...वीएचपी की तरफ से हर भाषा में अनाउंस किया गया कार सेवकों से....लेकिन कोई रेस्पॉन्स नहीं हुआ . जब वो ऊपर चढ़ गए . हमने वहां मौजूद पुलिस ऑफिसरों से कहा कि मुझे वहां जाने दीजिए मैं उनलोगों को रोकूंगा . तो पुलिसवालों ने कहा नहीं हम आपको वहां नहीं जाने दे सकते.''



कल्याण सिंह ने दिया पद से इस्तीफा


6 दिसंबर को ही कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. अगले दिन चुनी हुई सरकार को बर्खास्त कर उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. 8 दिसंबर को लाल कृष्ण आडवाणी गिरफ्तार कर लिये गए. अपने राजनीतिक करियर में आडवाणी कुल 4 बार गिरफ्तार हुए. 


इनमें से दो बार उनकी गिरफ्तारी की वजह राम मंदिर आंदोलन था. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और उमा भारती समेत बीजेपी के कई बड़े नेताओं को विवादित ढांचे के मामले में आरोपी बनाया गया. सीबीआई जांच बैठी. 28 साल बाद वर्ष 2020 में सीबीआई की विशेष अदालत ने आडवाणी समेत 32 आरोपियों को बरी कर दिया. मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा.9 नवंबर 2022 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी बरी कर दिया.


30 साल में बीजेपी का तेजी से बढ़ा ग्राफ


वर्ष 1992 से 2022 तक ये 30 वर्ष राम रथ पर सवार भारतीय जनता पार्टी के लिए राजनीतिक तौर पर स्वर्णिम काल रहे. क्योंकि विवादित ढांचे गिराये जाने के 3 साल 6 महीने बाद वर्ष 1996 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने अन्य सहयोगी दलों की मदद से दिल्ली में सरकार बनाई. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने.


संयोग देखिए इस बार भी पार्टी का नेतृत्व लाल कृष्ण आडवाणी के हाथ में ही था. वाजपेयी सरकार दूसरे दलों के सहयोग से सिर्फ 13 दिन चली. 1998 में फिर आम चुनाव हुए. वाजपेयी और आडवाणी की जोड़ी ने सीटों के लिहाज से बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी बना दिया. बीजेपी के पास 182 सीटें थीं. कांग्रेस के पास सिर्फ 141. लेकिन सरकार बनाने के लिए बीजेपी को बहुमत चाहिए था और बहुमत के लिए दूसरे दलों का साथ. यहीं NDA का जन्म हुआ. बीजेपी की अगुवाई वाला नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस. वाजपेयी के नेतृत्व में NDA की सरकार बनी. लेकिन NDA के कई घटक दलों के दबाव में बीजेपी को राम मंदिर का मुद्दा पीछे छोड़ना पड़ा.



अटल सरकार में नहीं हो पाया समाधान


साल 1999 में फिर लोकसभा चुनाव हुए और वाजपेयी की अगुवाई वाली NDA सरकार पहले से अधिक मजबूती के साथ बनी, जो पूरे 5 साल तक चली. इस दौरान कई बार हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बीच बातचीत के जरिए अयोध्या मामले का हल निकालने की कोशिश हुई.लेकिन ये कोशिश कामयाब नहीं हुई . आडवाणी ने अपनी किताब में लिखा है कि अगर बीजेपी के पास संसद में बहुमत होता तो राम मंदिर के मुद्दे का समाधान हो जाता या 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत होती तब भी अयोध्या का हल निकल जाता.



मोदी राज में बन रहा राम मंदिर


2004 की हार के साथ ही भारतीय राजनीति में अटल-आडवाणी का युग लगभग खत्म हो चुका था.लेकिन 10 वर्ष बाद आडवाणी के शिष्य और 1990 की राम रथ यात्रा के सारथी रहे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने दमदार वापसी की. पहली बार देश में बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. 9 नवंबर 2019 को जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया तब देश में मोदी सरकार थी और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की योगी सरकार. आज जब भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है तब भी देश में मोदी सरकार है और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार. दिल्ली से उत्तर प्रदेश तक कमल खिल रहा है . और अयोध्या में रामध्वज लहरा रहा है.


समय के साथ सपने भी बदलते हैं. लाल कृष्ण आडवाणी जब युवा थे तो सपना था कि भारत आज़ाद हो. भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी और ये सपना 20 साल की उम्र में पूरा हो गया. जब 62 साल के हुए तो उन्होंने संकल्प लिया कि रामलला को आजाद कराना है. लेकिन उनका ये सपना जब पूरा हुआ तो उनकी उम्र 92 साल हो गई और आज जब राम मंदिर बनकर तैयार है. तो वो 96 वर्ष के हैं. वो खुश हैं कि जिस रामलला के लिए उन्होंने रथयात्रा निकाली. 2-2 बार जेल गए. वो रामलला आज अपनी जन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर में विराजमान हो रहे हैं.