Election News: भले ही 2024 लोकसभा चुनावों में अभी वक्त हो लेकिन तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं. 2014 के बाद कई राज्यों के चुनावों में हैरान कर देने वाले नतीजे मिले हैं और बरसों से चले आ रहे समीकरण ध्वस्त हुए हैं. बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और यूपी जैसे राज्यों में जातियों के बंधन थोड़े हल्के जरूर पड़े हैं लेकिन भारतीय राजनीति में जातीय समीकरणों को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ऐसे ही समीकरणों के जंजाल में यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट के अलावा खतौली और रामपुर विधानसभा सीट नजर आ रही है. तमाम राजनीतिक पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत इन उपचुनावों के लिए झोंक दी है. इन चुनावों को अगर 2024 लोकसभा चुनाव का 'क्वॉर्टर फाइनल' कहें तो गलत नहीं होगा. इनके ही नतीजों के बाद 2024 की रेस में दौड़ने वाले कैंडिडेट्स तय होंगे. 


सपा का गढ़ है मैनपुरी


भारतीय राजनीति को समझने वालों को यह बताने की जरूरत नहीं कि मैनपुरी को समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है. यादव परिवार को यहां प्रचार की भी जरूरत नहीं पड़ती थी. लेकिन 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में यादव परिवार को अखिलेश को जिताने के लिए पूरा दमखम लगाना पड़ा था. यही हाल मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में भी नजर आ रहा है. यहां भी अखिलेश समेत तमाम पार्टी दिग्गज जमीन पर नजर आ रहे हैं. इस सीट पर चुनाव के परिणाम से यादव परिवार की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है. 


इस सीट पर जातीय समीकरण ऐसे हैं कि यादव वोट बहुलता में तो है लेकिन निर्णायक नहीं. पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाले शाक्य यहां जनसंख्या में दूसरे नंबर पर हैं. अगर पिछले चुनावी आंकड़ों को देखें तो बीजेपी को पिछड़ा वर्ग का काफी वोट मिला है. अगर इस चुनाव में बीजेपी को शाक्य और बाकी पिछड़ी व दलित जाति के वोट मिल जाते हैं तो 2024 के चुनाव में वह रणनीति उसी हिसाब से बना सकती है. वहीं अगर नतीजे मनमुताबिक नहीं मिलते हैं तब अखिलेश को भी आत्ममंथन करना पड़ जाएगा.


 खतौली सीट पर फंसा पेच


जातियों की जकड़न में तो खतौली विधानसभा सीट भी नजर आ रही है. यहां सपा का जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल (RLD) से गठबंधन है, जो जाटों की समर्थक पार्टी है. यहां गुर्जर प्रत्याशी मदन भैया को चुनावी अखाड़े में उतारा गया है ताकि मुस्लिम और जाट दोनों को साधा जा सके. किसान आंदोलन के बावजूद भी जाट चुनाव में बीजेपी से खफा नजर नहीं आए थे. वहीं जाटवों को लुभाने के लिए भीम आर्मी के चंद्रशेखर ने आरएलडी के जयंत चौधरी से हाथ मिलाया है. 


रामपुर में आजम खान ने झोंकी ताकत


अब यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे कि जैसे 1993 में मुलायम और कांशीराम ने राम मंदिर आंदोलन को बेअसर कर दिया था, क्या उसी तरह यादव और जाट के साथ दलित जीत का समीकरण बनाएंगे. वहीं रामपुर में आजम खान पूरी ताकत झोंके हुए हैं. लेकिन उनके करीबी ही उनका दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. बता दें कि रामपुर लोकसभा सीट बीजेपी पहले ही जीत चुकी है. 


पाठकों की पहली पसंद Zeenews.com/Hindi - अब किसी और की ज़रूरत नहीं.