जब पूर्व CJI ने शेयर किया `माय लॉर्ड से मिस्टर गोगोई` तक का सफर...
पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपनी किताब `Justice for the Judge` में स्पष्ट शब्दों में कहा कि जज जवाब नहीं देता लेकिन एक पॉलिटिशन जवाब देता है, पब्लिक फोरम में जवाब देता है. आइए जानते हैं उनके माय लॉर्ड से मिस्टर गोगोई तक का सफर...
नई दिल्ली: अक्सर मीडिया से दूर रहने वाले पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) ने हाल ही में एक किताब लिखी है. अपनी इस किताब 'Justice for the Judge' में पूर्व CJI ने अपने निजी जीवन से जुड़े कई किस्सों का जिक्र किया है. पूर्व CJI अपनी किताब के आने के बाद मीडिया को इंटरव्यू दे रहे हैं. हाल ही में उन्होंने ZEE News को भी इंटरव्यू दिया है. आइए जानते हैं उनके माय लॉर्ड से मिस्टर गोगोई तक का सफर...
लाइमलाइट में 'माय लॉर्ड'
रंजन गोगोई अपनी इस किताब के चलते हाल ही में लाइमलाइट में हैं. अपने जीवन के सफर को याद करते हुए पूर्व CJI कहते हैं कि 'लाइमटाइम सिर्फ माय लॉर्ड कहने से नहीं बनता है. 18-19 साल के माय लार्ड के कार्यकाल में मैंने बहुत ही साधारण फैमिली लाइफ जी है और अभी माय लॉर्ड हट जाने पर मुझे कोई भी परेशानी नहीं है, जाकर लोगों से मिलना, पब्लिक में शामिल होना, मीटिंग में भाषण देना, मुझे कोई परेशानी नहीं है. मैं इसे पसंद करता हूं क्योंकि मैं लोगों के बीच में फ्री होकर जा सकता हूं, उनसे बात कर सकता हूं. ये जीवन का एक चरण है, जीवन का दूसरा दौर है जो अलग है, लेकिन ये उतना ही जरूरी, उतना ही अच्छा है.'
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'जज जवाब नहीं देता'
अपनी किताब के बारे में बताते हुए रंजन गोगोई कहते हैं कि किताब के माध्यम से हम लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. 'अपने जजेस को दूसरे ढंग से देखो अपने जजेस को जज मत करो. जज को सरकारी नौकर या पॉलिटिशियन की तरह मत देखो. ये जज का पोजीशन थोड़ी अलग होता है. जज की कुर्सी पर जो बैठते है उनका अनुशासन होता है. वो बोलते नहीं हैं, आप एक जज की जितनी भी आलोचना करेंगे. उनके फैसलों की आलोचना करेंगे. उनके जजमेंट पर आप कितना भी कीचड़ उछालो वो बोलता नहीं है. वो जवाब नहीं देता है.'
किताब में दिया है स्पष्ट मैसेज
रंजन गोगोई ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जज जवाब नहीं देता लेकिन एक पॉलिटिशन जवाब देता है, पब्लिक फोरम में जवाब देता है. लेकिन जज चुप रहता हैं इसका मतलब ये है कि वो न्यायिक अनुशासन का पालन कर रहे हैं, इसका फायदा नहीं उठाना चाहिए, आप कमजोरी मत समझो कि आप कुछ भी बोले जाओ बोले जाओ. क्योंकि अगर आप इसको सही ढंग से नहीं देखोगे तो आप जज को तो नुकसान कर ही रहे हो, आप इंस्टिट्यूशन और न्याय व्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रहे हो, इस किताब में ये मैसेज है.
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