Indian Spy Ravindra Kaushik: रविंद्र कौशिक...इस नाम से तो आप वाकिफ होंगे. इन्हें ब्लैक टाइगर का खिताब मिला था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें इस खिताब से नवाजा था. रविंद्र कौशिक में देशभक्ति कूट-कूटकर भरी थी. उन्होंने देश की हिफाजत के लिए अपनी कुर्बानी दी. रविंद्र कौशिक राजस्थान के श्रीगंगानगर के रहने वाले थे. उन्हें बचपन से थियटर का शौक था.


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एक्टिंग से प्रभावित हुए थे रॉ के अधिकारी


पिता उनके एयरफोर्स में थे. घर में 4 भाई-बहन थे. रविंद्र कौशिक दूसरे नंबर पर थे. रविंद्र कौशिक ने श्रीगंगानगर के ही कॉलेज से बीकॉम की पढ़ाई की. थियटर में उन्हें रूचि थी और उसमें वो जो रोल अदा करते थे वो ज्यादातर देशभक्ति की ही हुआ करती थी. वो देश के लिए कुछ करना चाहते थे. 1975 में बीकॉम पास करने के बाद उन्होंने लखनऊ में एक प्ले किया था, जिसमें उन्होंने सैनिक का रोल किया था.


उस प्ले में दिखाया गया था कि कैसे भारतीय सेना का एक जवान चीनी फौज के कब्जे में आ जाता है और उससे राज उगलवाने के लिए उसे बुरी तरह टॉर्चर किया जाता है. ये किरदार निभाया रविंद्र कौशिक ने. लखनऊ के जिस थियटर हॉल में ये प्ले हो रहा था वहां पर भारतीय खूफिया एजेंसी रॉ के कुछ अधिकारी भी बैठे हुए थे. आमतौर पर जासूसी के लिए खूफिया एजेंसी ऐसे लोगों को चुनती है जो बॉर्डर के आसपास रहते हैं.



श्रीगंगानगर पाकिस्तान की सीमा के पास है. रॉ की नजर रविंद्र कौशिक पर थी. लखनऊ में प्ले के दौरान रॉ के अधिकारियों की रविंद्र कौशिक से मुलाकात हुई और उन्होंने उनकी एक्टिंग की तारीफ की. रविंद्र कौशिक से कहा गया कि अगर तुम्हारे अंदर देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा है तो तुम दिल्ली में आकर मिलो.तुम्हारे लिए हमारे पास एक काम है. रविंद्र कौशिक ने कहा कि ठीक है.


1975 के आखिर में वो दिल्ली आते हैं. दो लोग उनसे मिलते हैं. उन्हें रॉ के ऑफिस ले जाया जाता है. रॉ के अधिकारी रविंद्र कौशिक को ऑफर देते हैं कि अगर तुम्हें जासूस बनना है तो बताओ. रविंद्र कौशिक बिना सोचे-समझे हामी भर देते हैं.


घरवालों को दुबई जाने की दी जानकारी


इसके बाद ट्रेनिंग की शुरुआत होती है. रविंद्र कौशिक को पहली चीज ये बताई गई थी कि वो अपने घर में भी नहीं बताएगा कि वो क्या करने जा रहा है.रविंद्र कौशिक की पंजाबी अच्छी थी और पाकिस्तान के ज्यादातर इलाकों में पंजाबी बोली जाती है. रविंद्र कौशिक ने पहली बाधा तो यहां पार कर ली.


लेकिन पाकिस्तान में रहना है तो उर्दू आनी चाहिए.जासूस के तौर पर वहां रहने के लिए नाम भी बदलना पड़ा. एक पाकिस्तानी कैसे रहता है उन्हें उसकी पूरी ट्रेनिंग दी जाती है. पाकिस्तान भेजने से पहले रविंद्र कौशिक को छोटे देशों में भेजा जाता है. उन्हें आसान एसाइनमेंट दिए जाते हैं. रविंद्र कौशिक ने इस दौरान अपने संपर्क मजबूत किए.  


सारी ट्रेनिंग और अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद रविंद्र कौशिक को साल 1977 में पाकिस्तान भेजा जाता है.नए नाम और नए पहचान के साथ रविंद्र कौशिक जाते हैं. उनका धर्म भी बदल जाता है. पाकिस्तान की धरती पर कदम रखने के साथ रविंद्र कौशिक की नई पहचान होती है. उनका नाम बदलकर नबी अहमद शाकिर होता है. उन्हें आम लोगों की तरह पाकिस्तान में रहना था. रविंद्र कौशिक ने अपने घरवालों को बताया था कि वो दुबई में नौकरी करने जा रहे हैं.


रॉ ने जितना सोचा था रविंद्र कौशिक उससे ज्यादा तेजी से काम करने वाले जासूस निकले. पाकिस्तान में जाने के बाद रविंद्र कौशिक वहां के लॉ कॉलेज में दाखिला लेते हैं. वो लॉ की डिग्री हासिल करते हैं. रविंद्र कौशिक पाकिस्तान में ऐसा काम करते हैं जिसकी उम्मीद रॉ को भी नहीं थी.


उन्होंने पाकिस्तान के अखबार में सेना में भर्ती का विज्ञापन देखा. रविंद्र कौशिक उसके लिए अप्लाई करते हैं. उनका चयन भी हो जाता है. वो पाकिस्तानी सेना का हिस्सा हो चुके होते हैं. इसके बाद सेना में वो नौकरी करते हैं. उन्हें समय-समय पर प्रमोशन मिलता रहा और वो मेजर के पद तक पहुंच गए. इस पद तक पहुंचने का मतलब था कि वो रॉ को पाकिस्तान की बहुत सारी गोपनीय जानकारी दे सकते थे जो उन्होंने किया भी. कहा जाता है कि उससे हिंदुस्तान को बहुत फायदा भी हुआ.


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