Gandhi refuse to salute indian flag: गांधी जी चाहते थे कि तिरंगे में चरखे का इस्‍तेमाल होना चाहिए लेकिन जब उन्‍हें पता चला कि तिरंगे से चरखे को हटाया जा रहा है और उसकी जगह अशोक चक्र लगाया जाएगा, तो वे बहुत क्षुब्ध हुए थे. उस समय वे लाहौर में थे. उन्‍होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सामने नाराजगी भी जाहिर की थी. उन्‍होंने कहा था कि "मैं भारत के ध्वज में चरखा हटाए जाने के प्रस्‍ताव को स्वीकार नहीं करूंगा और अगर ऐसा होता है तो मैं इस झंडे को सलामी नहीं दूंगा." गांधी जी ने ऐसा क्‍यों बोला और वे क्‍या चाहते थे? आइए जानते हैं.   


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क्‍या चाहते थे गांधी जी 


गांधीजी को जब पता चला कि तिरंगे से चरखे को हटाया जा रहा है और उसकी जगह अशोक चक्र लाया जाएगा तो वे बड़े परेशान हुए. गांधीजी ने 1919 में देश के तिरंगे को अपनी संस्तुति दी थी. इसके बाद से ही कांग्रेस के अधिवेशन में इसे फहराया जाता था. मसूलीपट्टनम के पी. वैकेय्या ने कई डिजाइन पेश किए थे. इस मामले को लेकर गांधी जी ने अपने विचार यंग इंडिया के माध्‍यम से लोगों को बताए थे.  


तिरंगे में चरखे का मतलब


गांधी जी  के मुताबिक, चरखा केवल सूत कातने का उपकरण नहीं था. ये न सिर्फ गरीबों  को रोजगार और आमदनी मुहैया करा रहा था बल्कि ये मानवीयता, सादगी और किसी को कष्ट न देने के अलावा गरीबों और अमीरों के बीच अटूट बंधन का प्रतीक भी था. इस तरह उनके मुताबिक, चरखा अहिंसा का सिंबल था. 


गैर कांग्रेसी नहीं चाहते थे तिरंगे में चरखा 


संविधान सभा में गैर-कांग्रेसी सदस्यों ने तिरंगे में चरखे पर एतराज जताया था. उनका मानना था कि चरखा किसी राजनीतिक पार्टी का प्रतिनिधित्‍व करता है. इसे राष्ट्र के लिए कैसे स्वीकार कर सकते हैं? बीआर अंबेडकर के ग्रुप ने बताया कि कांग्रेस के तिरंगे को बरकरार रख सकते हैं लेकिन इसमें चरखे की जगह आठ तीलियों वाले बौद्ध चक्र को शामिल करना चाहिए. इसके बाद सहमति बनी कि इस चक्र में 24 तीलियां रखना चाहिए.


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