Total Fertility Rate: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने जनसंख्या वृद्धि में गिरावट पर चिंता जताई है. उन्होंने रविवार (1 दिसंबर) को कहा कि भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) मौजूदा 2.1 के बजाए कम से कम तीन होनी चाहिए. मोहन भागवत ने कहा कि जनसांख्यिकी अध्ययनों से पता चलता है कि जब किसी समाज की कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो उसके विलुप्त होने का खतरा होता है. इस गिरावट के लिए जरूरी नहीं कि बाहरी खतरे हों; कोई समाज धीरे-धीरे अपने आप ही विलुप्त हो सकता है.


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अब ये टीएफआर यानी कुल प्रजनन दर क्या है?


संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने नागपुर में 'कठाले कुलसम्मेलन' के दौरान कुल प्रजनन दर यानी टीएफआर (TFR) का जिक्र किया, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये क्या है? टीएफआर का तात्पर्य एक महिला द्वारा जन्म दिए जाने वाले बच्चों की औसत संख्या से है. प्रजनन दर का अर्थ किसी जनसंख्या की कुल प्रजनन दर (TFR) उन बच्चों की औसत संख्या है, जो एक महिला अपने जीवनकाल में जन्म लेती है.


भारत की जनसंख्या वृद्धि दर?


भारत की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि साल 1951 में इसकी वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर 1.3 प्रतिशत थी, जो 1961 में बढ़कर 2 प्रतिशत हो गई. इसके बाद अगले 30 सालों में 1971-91 तक भारत की वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत पर स्थिर रही. हालांकि, 1990 के दशक में इसमें गिरावट शुरू हुई और साल 2011 आते-आते भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 1.6 प्रतिशत पहुंच गई.


क्या हिंदू कम बच्चे पैदा कर रहे?


भारत में हिंदुओं की आबादी सबसे ज्यादा है और इसके बाद दूसरे नंबर पर मुस्लिमों की जनसंख्या है. पिछले कुछ सालों में हिंदुओं की आबादी कम हुई है, जबकि मुसलमानों की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1950 से 2015 के बीच भारत में हिंदुओं की आबादी 7.82 प्रतिशत घट गई, जबकि इस दौरान मुस्लिमों की आबादी 43.15 प्रतिशत बढ़ गई. इसकी मुख्य वजह कुल प्रजनन दर (TFR) से है. हिंदू महिलाओं का फर्टिलिटी रेट मुस्लिम महिलाओं से कम है. CSDS के आंकड़ों के अनुसार, हिंदू महिलाओं का फर्टिलिटी रेट 2.13 है, जबकि मुस्लिम महिलाओं का टीएफआर 2.61 है. यानी मुस्लिम महिलाओं में प्रजनन दर हिंदू महिलाओं के मुकाबले 0.28 ज्यादा है.


गर्भनिरोधक का इस्तेमाल भी बढ़ा


राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के 2021 में जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर यानी टीएफआर (TFR) 2.2 से घटकर 2 हो गई है, जबकि गर्भनिरोधक इस्तेमाल की दर 54 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई है. कुल प्रजनन दर 2.1 को प्रतिस्थापन दर माना जाता है, जो जनसंख्या वृद्धि में एक महत्वपूर्ण कारक है.


जनसंख्या वृद्धि को लेकर क्या है संघ की चिंता?


नागपुर में 'कठाले कुलसम्मेलन' में मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने परिवारों की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला और आगाह किया कि जनसंख्या विज्ञान के अनुसार, यदि किसी समाज की कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो यह विलुप्त होने के कगार पर पहुंच सकता है. उन्होंने कहा कि जनसंख्या में कमी गंभीर चिंता का विषय है. जनसांख्यिकी अध्ययनों से पता चलता है कि जब किसी समाज की कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो उसके विलुप्त होने का खतरा होता है. इस गिरावट के लिए जरूरी नहीं कि बाहरी खतरे हों; कोई समाज धीरे-धीरे अपने आप ही विलुप्त हो सकता है.


मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा, 'इस मुद्दे के कारण कई भाषाएं और संस्कृतियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं. इसलिए, प्रजनन दर को 2.1 से ऊपर बनाए रखना आवश्यक है.' उन्होंने कहा कि कुटुंब (परिवार) समाज का अभिन्न अंग है और हर परिवार की समाज के गठन में अहमियत है. आरएसएस प्रमुख ने कहा, 'हमारे देश की जनसंख्या नीति, जो 1998 या 2002 के आसपास तैयार की गई थी, कहती है कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं होनी चाहिए. यह कम से कम तीन होनी चाहिए. (जनसंख्या) विज्ञान ऐसा कहता है.'


तो क्या सरकार बदलेगी 'हम दो हमारे दो' का नारा?


भारत में तेजी से बढ़ती जनसंख्या को कंट्रोल करने के लिए इंदिरा गांधी सरकार ने 'हम दो, हमारे दो' का नारा दिया था. 'हम दो, हमारे दो' नारे का उद्देश्य परिवार नियोजन से है और इसका मतलब पति-पत्नी और दो बच्चों से है· 1970 और 1980 के दशक में भारत सरकार द्वारा परिवार नियोजन के कार्यक्रम चलाए गए थे और इसके तहत इस नारे को प्रचलित किया गया था. हालांकि, उस समय सरकार के जनसंख्या नियंत्रण अभियान पर सवाल भी उठाए गए थे. अब मोहन भागवत के बयान के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या सरकार 'हम दो हमारे दो' का नारा बदलेगी?